भारत हमारा ख्याल रखे तो हम उसका ख्याल रखेंगे: चीन
साउथ चाइना सी पर अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले के बाद दुनिया में खलबली मची हुई है। जानकारों का मानना है कि इस फैसले की परिणति वैश्विक कूटनीति में एक भारी बदलाव का कारण बन सकती है।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। वैसे भारत और चीन के रिश्ते भी फिलहाल बहुत बेहतर दौर से नहीं गुजर रहे। भारत स्थित चीन के चार्ज डी'अफेयर्स (राजदूत की अनुपस्थिति में उनका दायित्व संभालने वाला) लिऊ जिनसोंग ने 'दैनिक जागरण' के साथ बातचीत में साउथ चाइना सी से लेकर दोनो देशों के मौजूदा रिश्तों पर पूरी साफगोई से अपनी बात रखी।
प्रश्न : साउथ चाइना सी (सीएससी) पर संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान वाले अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले को चीन कैसे देख रहा है?
उत्तर : वास्तव में हम इस फैसले की प्रतीक्षा में थे। इस फैसले का कोई आधार नहीं है। यह पक्षपातपूर्ण है। हम उसे नहीं मानते हैं और न ही स्वीकार करते हैं। यह रद्दी के कागज की तरह है। ट्रिब्यूनल के सदस्यों को फिलीपींस की सरकार ने लंबे समय तक वेतन दिया है। फिलीपींस की सरकार ने अपने करदाताओं के पैसे को बर्बाद किया है। चीन में एक कहावत है कि अगर आपके पास पैसा हो तो भूत भी आपके लिए काम करेंगे। आप पैसे से न्यायाधीशों को रिश्वत भी दे सकते हैं। यह पेशवर तरीका नहीं है और इसमें कई कमियां हैं।
प्रश्न : किस तरह की कमियां हैं?
उत्तर : सबसे पहले तो इसका कोई कानूनी आधार नहीं है। इसे जिस अंतररराष्ट्रीय समझौते के तहत लागू किया गया है वह सिर्फ समुद्री सीमा तय करने के लिए स्थापित किया गया है। यह किसी देश की सार्वभौमिकता को प्रभावित करने वाले या उसके प्रभुत्व को लेकर कोई फैसला नहीं दे सकता। संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में ही चीन समेत तीस देशों ने एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किया है जिसमें यह साफ तौर पर अंकित है कि प्रभुसत्ता से जुड़े मामलों को समझौतों से नहीं सुलझाया जा सकता। यह फैसला उस समझौते का भी उल्लंघन है। साथ ही मैं यह बताना चाहूंगा कि चीन का इस क्षेत्र पर ऐतिहासिक आधार है जिससे इनकार नहीं किया जा सकता। अब आप यह समझिए कि संस्कृत का हजारों साल पुराना इतिहास है लेकिन क्या अंग्रेजी का प्रभाव बढ़ने से इसकी मौजूदगी खत्म हो सकती है? सीएससी में बहुत सारे ऐसे टापू हैं जहां चीन के लोग सदियों से रहते हैं और जीवकोपार्जन के लिए उसका इस्तेमाल करते हैं। ट्रिब्यूनल के जिन न्यायाधीशों ने यह फैसला किया है उन्होंने पश्चिमी जगत के हिसाब से पक्षपातपूर्ण फैसला दिया है।
प्रश्न : पंचाट के फैसले पर भारत की प्रतिक्रिया को कैसे देखते हैं?
उत्तर : भारत के विदेश मंत्रालय ने मंगलवार को एक बयान दिया है लेकिन मैं आपका ध्यान अप्रैल, 2016 के अंत में भारत, रूस और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान की तरफ आकर्षित करूंगा। उस बैठक में साउथ चाइना सी पर विस्तार से चर्चा हुई थी। बयान में साफ कहा गया है कि इस विवाद का सभी प्रत्यक्ष (प्रभावित) देश आपसी विचार विमर्श से हल निकालेंगे। तथा शांतिपूर्ण तरीके से विवादों का समाधान होना चाहिए। चीन मानता है कि अंतरराष्ट्रीय पंचाट के फैसले से पूरे क्षेत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है जो यहां की शांति को प्रभावित कर सकती है। हम इस तमाशा को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि इससे जुड़े देश शांति बनाये हुए हैं लेकिन अमेरिका, जापान व कुछ अन्य देश इसे लागू करने का दबाव बनाने में जुटे हैं। किसी भी देश को इस बारे में बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
प्रश्न : भारत व चीन के मौजूदा रिश्तों को आप किस तरह से देखते हैं खास तौर पर तब जब द्विपक्षीय कारोबार बढ़ रहा है, निवेश बढ़ रहा है लेकिन राजनीतिक भरोसा कम हुआ है। एनएसजी व मौलाना मसूद अजहर का मुद्दा भी इस दौरान हुआ है?
उत्तर : भारत व चीन के संबंध बहुत जटिल है। आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं लेकिन कुछ चुनौतियां भी हैं। दोनो बड़े पड़ोसी हैं और इनके नेताओं को भी दूरगामी दृष्टिकोण से इन रिश्तों के बारे में सोचना चाहिए। सही बात यह है कि द्विपक्षीय रिश्तों में सकारात्मक उपलब्धियां ज्यादा हैं लेकिन कुछ नकारात्मक बातों से इन उपलब्धियों को नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। भारत व चीन के बीच कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो एक-दो रातों में नहीं सुलझाये जा सकते। हमें धैर्य रखना चाहिए। हम समय के साथ सभी लंबित मुद्दों का समाधान कर सकते हैं। कूटनीति के जरिए हम ऐसा समाधान खोज सकते हैं जो दोनो पक्षों को मान्य होगा। लेकिन एक दूसरे के हितों और पारस्परिक हितों का भी ख्याल रखना बहुत जरुरी है। मेरा मानना है कि चीन के हितों के बारे में भारत को कम मालूम है। यहां मेरे कई मित्र कहते हैं कि हम पाकिस्तान को ज्यादा समर्थन देते हैं। यह इसलिए है कि वह हमारे हितों का ख्याल रखता है। मसलन, साउथ चाइना सी पर उसने हमारा समर्थन किया है। इसलिए हम भी पाक के हितों का ख्याल रखते हैं। चीन चाहता है कि भारत व पाक के बीच रिश्ते सामान्य रहे। भारत व पाक आपस में ही सारे मामलों का समाधान निकालें। मसूद जैसे मामले का समाधान भी ये दोनो देश आसानी से निकाल सकते हैं। एनएसजी पर हमारा विरोध भारत से नहीं है बल्कि परमाणु अप्रसार को लेकर है। चीन का सुरक्षा पर्यावरण काफी कठिन है। हमारा विरोध भारत विशेष को लेकर नहीं है।
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