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वार्ता के लिए तालिबान ने रखीं 15 शर्ते

तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने दो दिन के विचार-विमर्श के बाद शांति वार्ता के लिए 15 मांगों का एजेंडा तैयार कर लिया है। इनमें शरई कानून लागू करना, प्रशासन को इस्लामी तंत्र से चलाना, जेल में बंद आतंकियों को छोड़ना और अमेरिका से रिश्ते तोड़ने जैसी मांगें शामिल हैं। पाकिस्तान सरकार संविधान और आतंकी

By Edited By: Updated: Mon, 10 Feb 2014 08:07 AM (IST)
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इस्लामाबाद। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने दो दिन के विचार-विमर्श के बाद शांति वार्ता के लिए 15 मांगों का एजेंडा तैयार कर लिया है। इनमें शरई कानून लागू करना, प्रशासन को इस्लामी तंत्र से चलाना, जेल में बंद आतंकियों को छोड़ना और अमेरिका से रिश्ते तोड़ने जैसी मांगें शामिल हैं।

पाकिस्तान सरकार संविधान और आतंकी संगठन कुरान के आधार पर वार्ता को आगे बढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में शांति वार्ता की पहली ही सीढ़ी पर इसके असफल होने के संकेत मिलने लगे हैं।

पढ़ें: वार्ता का उद्देश्य शरिया लागू करना है: तालिबान

डॉन अखबार की वेबसाइट के मुताबिक, टीटीपी की शूरा ने देश के अशांत उत्तार-पश्चिम इलाके वजीरिस्तान में उप सरगना शेख खालिद हक्कानी के नेतृत्व में विचार शुरू किया था। शूरा ने वार्ता के एजेंडे में कबायली इलाकों से सेना हटाने की मांग भी रखी है। रिपोर्ट के मुताबिक, प्रतिबंधित संगठन टीटीपी की शूरा में जमात-ए-इस्लामी के नेता इब्राहिम खान और जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के यूसुफ शाह भी मौजूद थे। ये लोग सरकारी वार्ताकारों के समक्ष टीटीपी की मांगें रखेंगे।

जियो न्यूज का दावा है कि तालिबान ने जेल में बंद साथियों को छोड़ने के अलावा हिंसा से प्रभावित हुए लोगों को मुआवजा देने की मांग भी रखी है। अदालतों में आतंकी संगठन शरई कानून लागू करवाना चाहता है। शर्तो में ड्रोन हमले रुकवाने, सरकारी एवं निजी संस्थानों को इस्लामी तंत्र से चलाने और कबायली इलाकों से सेना के चेकपोस्ट खत्म करने जैसी मांगें शामिल हैं। इसके अलावा तालिबान के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले बंद करने, ड्रोन हमले में मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी के साथ ही कर्ज पर ब्याज खत्म करने की शर्त रखी गई है। आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में अमेरिका की मदद बंद करने और उससे सभी तरह के संबंध तोड़ने की मांग रखकर तालिबान ने सरकार की मुश्किल बढ़ा दी है।

गुरुवार को दोनों पक्षों के वार्ताकार इस्लामाबाद में मिले थे। सरकार का कहना है कि वार्ता संविधान के दायरे में की जाए। हालांकि, इस प्रक्रिया को शुक्रवार को ही धक्का पहुंच गया था। तालिबान वार्ता समिति के सदस्य एवं लाल मस्जिद के मौलवी अब्दुल अजीज ने संविधान के बजाय कुरान के हिसाब से वार्ता का प्रस्ताव रख सरकार के लिए दिक्कत खड़ी कर दी थी।

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