दक्षिण चीन सागर पर चीन चित, जानिए - अब इस मामले में क्या होगा
चीन ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इस फैसले को मानने से न सिर्फ इन्कार कर दिया है बल्कि संप्रभुता की रक्षा के लिए सेना तैयार होने की धमकी भी दे डाली है।
द हेग, एएफपी/ प्रेट्र। अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ने दक्षिण चीन सागर पर सिर्फ चीन के अधिकार को नहीं माना है। उसने सागर के एक हिस्से पर फिलीपींस के दावे की पुष्टि की है। चीन ने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के इस फैसले को मानने से न सिर्फ इन्कार कर दिया है बल्कि संप्रभुता की रक्षा के लिए सेना तैयार होने की धमकी भी दे डाली है। फैसले का फिलीपींस ने स्वागत किया है लेकिन संयम बरतने की अपील भी की है। भारत और अमेरिका ने चीन से फैसले का सम्मान करने की अपील की है।
भारत सरकार के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों के आधार पर नौवहन तथा निर्बाध वाणिज्य की स्वतंत्रता का समर्थन करता है। भारत का मानना है कि संबंधित देशों को धमकी या बल प्रयोग किए बिना शांतिपूर्ण ढंग से विवादों को निवारण करना चाहिए तथा ऐसी गतिविधियां करने में संयम बरतना चाहिए जिससे विवाद जटिल हो अथवा बढ़े।
फिलीपींस सागर पर अपने अधिकार को लेकर 2013 में अंतरराष्ट्रीय अदालत के तौर पर जाने जाने वाले हेग स्थित न्यायाधिकरण में गया था। मंगलवार को इसी पर ऐतिहासिक फैसला आया। फैसले में कहा गया कि उसे कोई ऐसा ऐतिहासिक तथ्य नहीं मिला जो दक्षिण चीन सागर पर पहले कभी रहे चीनी अधिकार को साबित करे। चीन और फिलीपींस ने अन्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत गठित इस न्यायालय के जरिये विवाद सुलझाने के अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इस लिहाज से चीन को यह आदेश मानना चाहिए।
पढ़ेंः दक्षिण चीन सागरः फैसले पर चीन से ज्यादा भारत की है नजर
सुनवाई में भागीदारी नहीं:
दक्षिण चीन सागर पर अधिकार को लेकर दशकों से विवाद है। खरबों रुपये मूल्य की वस्तुओं के इस व्यापार मार्ग को चीन हथियाना चाहता है। वह सागर के 85 प्रतिशत भाग पर अपना अधिकार बताता है। इसके चलते फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रूनेई आदि से उसकी तनातनी बनी हुई है। वैसे, यह चीन की हठधर्मिता ही है कि उसने न्यायाधिकरण की सुनवाई में भी हिस्सा नहीं लिया।
किसी हाल में स्वीकार नहीं: शी
फैसले के तुरंत बाद चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि बीजिंग किसी भी हाल में इसे स्वीकार नहीं करेगा। यूरोपीय परिषद अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क और यूरोपीय आयोग के अध्यक्ष जीन-क्लॉड जंकर के साथ बैठक में शी ने कहा कि न्यायाधिकरण के फैसले का चीन की संप्रभुता और समुद्री हितों पर कोई असर नहीं होगा। चीनी विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि यह फैसला बाध्यकारी नहीं है।
अब क्या होगा
- अदालत का फैसला मानना चीन के लिए बाध्यकारी। अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया में यह बात कही भी है।
- लेकिन अदालत के पास इसे लागू कराने का तंत्र नहीं।
- चीन का रुख नहीं बदला तो अमेरिका के साथ खड़े होकर कई देश उस पर दूसरे मंचों से दबाव बनाएंगे। चीन भी गोलबंदी करेगा। इससे हथियारों की होड़ बढ़ेगी।
- चीन इस इलाके को वायु सुरक्षा चिह्नित क्षेत्र (एडिज) घोषित कर सकता है।
- वह स्कारबोरो द्वीपसमूह पर कब्जा भी कर सकता है।
भारत के लिए इसलिए महत्वपूर्ण
- लुक ईस्ट नीति के खयाल से यह महत्वपूर्ण है। अगर चीन की स्थिति मजबूत होती गई तो भारत के लिए समुद्री परिवहन में मुश्किलें आएंगी। समुद्री सुरक्षा पर भी खतरा।
- चीनी दावे को गलत ठहराने के लिए अमेरिका ने यह भी तर्क दिया है कि कई देशों के पास ऐसे नक्शे जो बताते हैं कि पिछले कई सौ सालों से भारत, मलय और अरब के व्यापारी इस इलाके से गुजरते रहे हैं।
- वियतनाम ने सबसे पहले 1970 में इस इलाके में तेल और गैस होने का पता लगाया। सर्वेक्षण और अध्ययन के लिए ओएनजीसी से करार। भारत का कहना है कि इस काम में लगी अपनी संपत्ति और अपने लोगों की सुरक्षा के लिए उसके पास नौसेना के उपयोग का अधिकार।
- अमेरिका और जापान के साथ मिलकर नौसैनिक युद्धाभ्यास का प्रयास चीन पर दबाव बनाए रखने के लिए ही।
क्यों है विवाद
-चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ताइवान और ब्रूनेई दक्षिण चीन सागर के 35 लाख वर्ग किमी पर करते हैं अपना दावा। इस समुद्री क्षेत्र में 213 अरब बैरल तेल और नौ हजार खरब क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस होने का अनुमान। इस रास्ते से हर साल करीब 70 खरब डॉलर का होता है व्यापार।
- क्षेत्र में पिछले सात-आठ साल में चीन ने कृत्रिम द्वीप तक बनाए हैं।
- फिलीपींस का तर्क स्पार्टलीज और स्कारबोरो द्वीपसमूह आते हैं उसके क्षेत्र में। वियतनाम स्पार्टलीज के साथ पैरासेल्स द्वीप पर दावा करता है वियतनाम। ताइवान भी इन पर जताता है हक। चीन ये दावे खारिज करता है।
इटली में दो ट्रेनें दुर्घटनाग्रस्त, देखें तस्वीरें
पढ़ेंः 'दक्षिण चीन सागर' पर चीन का दावा खारिज, फिलीपींस ने जताई खुशी