जिदंगी का साथ निभाता चला गया
फिल्मों और थिएटर में समान रूप से सक्रिय मूलत: कश्मीरी फैजल रशीद इन दिनों नजर आ रहे हैं धारावाहिक ‘हर मर्द का दर्द’ में। वह साझा कर रहे हैं अपने दिल की बात-
थिएटर जगत के चर्चित नाम फैजल रशीद इन दिनों लाइफ ओके के शो ‘हर मर्द का दर्द’ के नायक विनोद के रोल में नजर आ रहे हैं। माता रानी से उसे लड़कियों के मन की बात समझ पाने की शक्ति हासिल हुई है। इसके बावजूद वह परेशान रहता है। फैजल इससे पहले ‘कुमकुम भाग्य’ में भी नजर आ चुके हैं। कई फिल्में भी उनके खाते में हैं।
अभिनय में दिलचस्पी
फैजल बताते हैं, ‘मैं मूलत: कश्मीर से ताल्लुक रखता हूं। मैं नौ साल शिमला के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ा। वहां हर विद्यार्थी को अनिवार्य रूप से एक बार स्टेज पर परफॉर्मेंस देना पड़ता है। मैंने भी परफॉर्म किया। वहीं से एक्टिंग के प्रति दिलचस्पी जगी। लिहाजा 10 साल पहले मुंबई आ गया। अभिषेक कपूर को ‘आर्यन अनब्रेकेबल’ पर असिस्ट किया। फिर एफटीआईआई पुणे से एक्टिंग का कोर्स किया। दिव्येंदु शर्मा मेरे बैचमेंट हैं जबकि राजकुमार मेरे जूनियर रहे हैं।’
एंजॉय करता हूं टीवी
अक्सर एफटीआईआई व एनएसडी के स्टूडेंट्स की दिलचस्पी कथ्यपरक सिनेमा में होती है। टीवी पर उनकी दिलचस्पी कम देखी जाती है। इस संबंध में कहते हैं, ‘हर माध्यम का अपना मजा व सजा है। इस शो में मैं मेन लीड हूं, जबकि चेहरे-मोहरे से मैं आम नायकों की तरह ‘हैंडसम’ नहीं हूं। इस तरह काम के लिहाज से छोटे पर्दे का चुनाव मेरे लिए अच्छा रहा। कई बार जिंदगी का साथ निभाने के अलावा हमारे पास और कोई विकल्प नहीं होता। वह करना भी फायदेमंद होता है। मसलन, मैंने नसीरूद्दीन शाह संग ‘एंटीगनी’ की। मुंबई में अलग-अलग थिएटर ग्रुप के साथ सक्रिय रहा। सभी सम्मिलित प्रयासों के चलते मैं आज आप सभी के समक्ष हूं। ’
कश्मीरी युवा कुछ अलग नहीं
फैजल कहते हैं, ‘मैं मूलत: कश्मीर से हूं। वहां के युवा भी हम आप जैसे ही हैं। उनको भी काम चाहिए। मनोरंजन करना है। फिल्में देखनी हैं व फुटबॉल खेलना है। हालांकि वहां की परिस्थितियां ऐसी हैं कि उनके लिए ये सब चाहतें पूरी कर पाना मुमकिन नहींहोता। यह सब उन्हें करने दिया जाए, तो वे विध्वंसक गतिविधियों में सक्रिय नहीं होंगे। जो बुरहान वानी के साथ हुआ, वह सही था या गलत? जो जायरा वसीम के संग हुआ, वह सही था गलत? मुझे नहीं पता।’
रियाज जरूरी है
फैजल अपने अभिनय की दिशा से संतुष्ट हैं। वह कहते हैं, ‘मैं खुशकिस्मत हूं, जो पहले एफटीआईआई में सीखने और उसके बाद नसीर साहब के साथ काम करने का मौका मिला। नसीर साहब भी किसी संस्थान से कम नहीं। वह आज भी रियाज करने में बड़ा यकीन रखते हैं। इससे अपने हुनर को लेकर आत्मसंतुष्ट होने के भाव मन में नहीं आते। मैंने उनसे यह सबक लिया है।’
प्रस्तुति- अमित कर्ण
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