हमेशा दिल की सुना
फिल्मकार अब्बास अब फिल्म ‘मशीन’ से अपने बेटे मुस्तफा को लांच कर रहे हैं मुस्तफा ने कॅरियर की शुरुआत उनके साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की थी। वहां से हीरो बनने तक के सफर को मुस्तफा कर रहे हैं साझा...
By Srishti VermaEdited By: Updated: Thu, 16 Mar 2017 02:05 PM (IST)
शाहरुख खान, सलमान खान, अक्षय कुमार, जैसे सितारों के साथ अनेक हिट फिल्में देने वाले फिल्मकार अब्बास अब फिल्म ‘मशीन’ से अपने बेटे मुस्तफा को लांच कर रहे हैं मुस्तफा ने कॅरियर की शुरुआत उनके साथ बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर की थी। वहां से हीरो बनने तक के सफर को मुस्तफा कर रहे हैं साझा...
फिल्मकार अब्बास-मस्तान ने अक्षय कुमार, शाहरुख खान, सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, करीना कपूर, के साथ ‘खिलाड़ी’, ‘बाजीगर’, चोरी-चोरी चुपके चुपके, ‘एतराज’, ‘हमराज’ जैसी अनेक हिट फिल्में दी हैं। अब अब्बास फिल्म ‘मशीन’ से अपने बेटे मुस्तफा को लांच करने जा रहे हैं। हालांकि अपनी फिल्म में यह मौका उन्होंने मुस्तफा के एक्टिंग टैलेंट को परखने के बाद दिया।डायरेक्शन का शौक
ग्लैमर जगत में प्रवेश को लेकर मुस्तफा कहते हैं, ‘मेरी ग्रूमिंग फिल्मी परिवार में जरूर हुई, लेकिन मुझपर किसी किस्म की बंदिश नहीं रही। मुझे कॅरियर चुनने की पूरी आजादी मिली। मेरी दिलचस्पी निर्देशन में थी। मैंने न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से फिल्ममेकिंग का कोर्स किया। वहां से वापस आकर मैंने डैड और चाचा को ‘रेस 2’, ‘प्लेयर्स’ और ‘किस किस को प्यार करूं’ में असिस्ट किया। मैं उन्हें सीन सुनाने के साथ एक्ट करके भी बताता था। उसके पीछे मेरा मकसद एक्टिंग में आना नहीं था। दरअसल कलाकारों से काम कराने के लिए सीन पर पकड़ होना जरूरी है। मैं ‘मशीन’ से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर जुड़ा था। स्क्रिप्ट लॉक होते समय मन में दबी इच्छा थी कि मैं यह फिल्म करूं। हालांकि मैंने यह बात किसी से साझा नहीं की थी।’
ग्लैमर जगत में प्रवेश को लेकर मुस्तफा कहते हैं, ‘मेरी ग्रूमिंग फिल्मी परिवार में जरूर हुई, लेकिन मुझपर किसी किस्म की बंदिश नहीं रही। मुझे कॅरियर चुनने की पूरी आजादी मिली। मेरी दिलचस्पी निर्देशन में थी। मैंने न्यूयॉर्क फिल्म एकेडमी से फिल्ममेकिंग का कोर्स किया। वहां से वापस आकर मैंने डैड और चाचा को ‘रेस 2’, ‘प्लेयर्स’ और ‘किस किस को प्यार करूं’ में असिस्ट किया। मैं उन्हें सीन सुनाने के साथ एक्ट करके भी बताता था। उसके पीछे मेरा मकसद एक्टिंग में आना नहीं था। दरअसल कलाकारों से काम कराने के लिए सीन पर पकड़ होना जरूरी है। मैं ‘मशीन’ से बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर जुड़ा था। स्क्रिप्ट लॉक होते समय मन में दबी इच्छा थी कि मैं यह फिल्म करूं। हालांकि मैंने यह बात किसी से साझा नहीं की थी।’
ऐसे मिला हीरो का रोल
फिल्म से बतौर हीरो जुड़ने के संदर्भ में मुस्तफा कहते हैं, ‘डैड और चाचा नए चेहरे की तलाश में थे। मेरे चचेरे भाई ने उन्हें मेरे नाम का सुझाव दिया। डैड और चाचा स्क्रिप्ट के मुताबिक ही कलाकार चुनते हैं। उन्हें लगा कि अगर मैं कास्ट नहीं हुआ तो निराश हो जाऊंगा। बहरहाल, उसके बाद दो माह तक इस विषय में उनकी मुझसे कोई बात नहीं हुई। फिर, अचानक एक दिन उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि आज राइटर नहीं आए हैं। तुम हमें ‘मशीन’ की स्क्रिप्ट नैरेट करो। मैंने उन्हें एक्ट करते हुए नैरेट की। जैसे ही नैरेशन खत्म हुआ उन्होंने कहा मुस्तफा तुम यह फिल्म कर रहे हो। यह सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ा। थोड़ा नर्वस भी हुआ। अपने अभिनय में निखार के लिए मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा गया। वहां पर छह महीने तक एनके शर्मा के सानिध्य में अभिनय की बारीकियां सीखीं। मैं फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन से भी जुड़ा रहा। असिस्टेंट निर्देशक रहने के दौरान मैं डबिंग की प्रैक्टिस करता था। ‘मशीन’ में वह अनुभव काम आया।इमोशन कभी नहीं बदलते
मुस्तफा आगे कहते हैं, ‘डैड और चाचा जमीन से जुड़े शख्स हैं। वे सादगी से रहते हैं, लेकिन उनके आइडिया मॉडर्न होते हैं। वह इमोशन का खास ख्याल रखते हैं। उनका कहना है कि दुनिया कितनी आधुनिक हो जाए, पर इमोशन नहीं बदलेंगे। माता-पिता के प्रति प्यार और सम्मान का भाव हमेशा बरकरार रहेगा। मशीन में सब-कुछ मॉडर्न है। हमने दो महीने जार्जिया में रहकर फिल्म की पूरी शूटिंग की। मेरे किरदार का नाम रंश है। थोड़ा रहस्यमयी किरदार है। उसमें थोड़ा रोमांटिक एंगल भी है। यह ‘मशीन’ गाड़ी की कहानी नहीं है। शरीर में मौजूद दिल मशीन की तरह काम करता है। हमें हमेशा दिल की सुननी चाहिए। इसी विचार के साथ यह फिल्म बनाई है।’
फिल्म से बतौर हीरो जुड़ने के संदर्भ में मुस्तफा कहते हैं, ‘डैड और चाचा नए चेहरे की तलाश में थे। मेरे चचेरे भाई ने उन्हें मेरे नाम का सुझाव दिया। डैड और चाचा स्क्रिप्ट के मुताबिक ही कलाकार चुनते हैं। उन्हें लगा कि अगर मैं कास्ट नहीं हुआ तो निराश हो जाऊंगा। बहरहाल, उसके बाद दो माह तक इस विषय में उनकी मुझसे कोई बात नहीं हुई। फिर, अचानक एक दिन उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि आज राइटर नहीं आए हैं। तुम हमें ‘मशीन’ की स्क्रिप्ट नैरेट करो। मैंने उन्हें एक्ट करते हुए नैरेट की। जैसे ही नैरेशन खत्म हुआ उन्होंने कहा मुस्तफा तुम यह फिल्म कर रहे हो। यह सुनकर मैं खुशी से उछल पड़ा। थोड़ा नर्वस भी हुआ। अपने अभिनय में निखार के लिए मैं नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा गया। वहां पर छह महीने तक एनके शर्मा के सानिध्य में अभिनय की बारीकियां सीखीं। मैं फिल्म के पोस्ट प्रोडक्शन से भी जुड़ा रहा। असिस्टेंट निर्देशक रहने के दौरान मैं डबिंग की प्रैक्टिस करता था। ‘मशीन’ में वह अनुभव काम आया।इमोशन कभी नहीं बदलते
मुस्तफा आगे कहते हैं, ‘डैड और चाचा जमीन से जुड़े शख्स हैं। वे सादगी से रहते हैं, लेकिन उनके आइडिया मॉडर्न होते हैं। वह इमोशन का खास ख्याल रखते हैं। उनका कहना है कि दुनिया कितनी आधुनिक हो जाए, पर इमोशन नहीं बदलेंगे। माता-पिता के प्रति प्यार और सम्मान का भाव हमेशा बरकरार रहेगा। मशीन में सब-कुछ मॉडर्न है। हमने दो महीने जार्जिया में रहकर फिल्म की पूरी शूटिंग की। मेरे किरदार का नाम रंश है। थोड़ा रहस्यमयी किरदार है। उसमें थोड़ा रोमांटिक एंगल भी है। यह ‘मशीन’ गाड़ी की कहानी नहीं है। शरीर में मौजूद दिल मशीन की तरह काम करता है। हमें हमेशा दिल की सुननी चाहिए। इसी विचार के साथ यह फिल्म बनाई है।’
मेहनत से बनी बात
मुस्तफा डांस और ड्राइविंग का भी शौक रखते हैं। वह बताते हैं, ‘मुझे बॉलीवुड डांस अच्छा लगता है। हमारे कोरियोग्राफर बॉस्को सर ने डांस पर काफी मेहनत कराई। ‘चतुर नार...’ गाने के लिए मैंने बहुत मेहनत की। शूटिंग शुरू होने के एक महीने बाद गानाशूट होना था। मैं रोजाना दो घंटे डांस की प्रैक्टिस करता था। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है। मुझे गाड़ी चलाने का भी बेहद शौक है। खुशकिस्मती से फिल्म में यह मौका भी मिला है। फिल्म में रेसिंग कार का एक सीन है। उसमें फार्मूला कार चलानी थी। उसके लिए मुझे दो सप्ताह ट्रेनिंग लेनी पड़ी। दरअसल, पहली बार मैंने रेसिंग ट्रैक पर गाड़ी चलाई है। वह काफी शानदार अनुभव रहा।’अलग है घर का माहौल
घर में फिल्मी माहौल के संबंध में मुस्तफा कहते हैं, ‘घर में डैड और चाचा के साथ फिल्म पर चर्चा नहीं होती थी। हमने फिल्म पर चर्चा तब शुरू की जब मैं उनका असिस्टेंट बना। बहरहाल, डैड और चाचा का होमवर्क बहुत स्ट्रांग होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य और संयम कायम रखते हैं। मैं थोड़ा हाइपर हो जाता हूं पर वे नहीं। सेट पर हम प्रोफेशनल की तरह काम करते थे। मैं उन्हें ‘सर’ कहकर संबोधित करता था। शूटिंग के दौरान मेरे साथ कोई रियायत नहीं होती थी। मुझे किसी भी समय बुला लिया जाता था।’प्रस्तुति- स्मिता श्रीवास्तवयह भी पढ़ें : उम्र नहीं टैलेंट रखता है मायने- आलिया भट्ट
मुस्तफा डांस और ड्राइविंग का भी शौक रखते हैं। वह बताते हैं, ‘मुझे बॉलीवुड डांस अच्छा लगता है। हमारे कोरियोग्राफर बॉस्को सर ने डांस पर काफी मेहनत कराई। ‘चतुर नार...’ गाने के लिए मैंने बहुत मेहनत की। शूटिंग शुरू होने के एक महीने बाद गानाशूट होना था। मैं रोजाना दो घंटे डांस की प्रैक्टिस करता था। मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की है। मुझे गाड़ी चलाने का भी बेहद शौक है। खुशकिस्मती से फिल्म में यह मौका भी मिला है। फिल्म में रेसिंग कार का एक सीन है। उसमें फार्मूला कार चलानी थी। उसके लिए मुझे दो सप्ताह ट्रेनिंग लेनी पड़ी। दरअसल, पहली बार मैंने रेसिंग ट्रैक पर गाड़ी चलाई है। वह काफी शानदार अनुभव रहा।’अलग है घर का माहौल
घर में फिल्मी माहौल के संबंध में मुस्तफा कहते हैं, ‘घर में डैड और चाचा के साथ फिल्म पर चर्चा नहीं होती थी। हमने फिल्म पर चर्चा तब शुरू की जब मैं उनका असिस्टेंट बना। बहरहाल, डैड और चाचा का होमवर्क बहुत स्ट्रांग होता है। प्रतिकूल परिस्थितियों में धैर्य और संयम कायम रखते हैं। मैं थोड़ा हाइपर हो जाता हूं पर वे नहीं। सेट पर हम प्रोफेशनल की तरह काम करते थे। मैं उन्हें ‘सर’ कहकर संबोधित करता था। शूटिंग के दौरान मेरे साथ कोई रियायत नहीं होती थी। मुझे किसी भी समय बुला लिया जाता था।’प्रस्तुति- स्मिता श्रीवास्तवयह भी पढ़ें : उम्र नहीं टैलेंट रखता है मायने- आलिया भट्ट