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बोझ बन जाती है तारीफ

करीब 15 साल के अंतराल के बाद ‘आ गया हीरो’ में बतौर नायक नजर आएंगे गोविंदा। फिल्म के निर्माता और लेखक वह खुद हैं। स्मिता श्रीवास्तव से बातचीत के अंश...

By Pratibha Kumari Edited By: Updated: Mon, 20 Feb 2017 02:37 PM (IST)
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बोझ बन जाती है तारीफ

उनको यूं ही सदाबहार अभिनेताओं की सूची में शुमार नहीं किया जाता है। किरदार गंभीर हो, डांस, कॉमेडी या फिर मारधाड़ वाला, हर किस्म के रोल में खुद को फिट किया है गोविंदा ने। हीरो का तमगा तो उनको खुद दर्शकों ने दिया। वे एक बार फिर हीरो बनकर आ रहे हैं, अपने प्रशंसकों के लिए। इस बार उन्होंने न सिर्फ अभिनय किया है, बल्कि फिल्म के लेखक और निर्माता भी हैं। गोविंदा बताते हैं, ‘मुझे लगता है कि फिल्म ‘आ गया हीरो’ अच्छी बनी है। बुरी बनी होती तो डरा होता। फिल्म निर्माण महंगी प्रक्रिया है, इसे बनाने में बहुत धन लगता है। (हंसते हुए) मुझे हर समय पत्नी सुनीता का चेहरा दिखता था। लगता था, हाथ में बेलन लेकर दौड़ा रही है। बहरहाल, दर्शक मुझे नए अंदाज में देखेंगे। यह काफी दिलचस्प होगा। मैंने जब फिल्म ‘हत्या’ की थी, तब किसी को उम्मीद नहीं थी कि मैं उस मिजाज की फिल्म कर सकता हूं। उससे लोगों का मेरे प्रति नजरिया बदला। उन्हें लगा कि
मैं संजीदा अभिनय करने में भी सक्षम हूं।’

थोड़ी देर हो गई
प्रोडक्शन हाउस शुरू करने के बारे में गोविंदा कहते हैं, ‘सभी नामचीन सितारों का अपना प्रोडक्शन हाउस है। मुझे लगता है कि मैंने ही होम प्रोडक्शन का फैसला लेने में देर की। ‘आ गया हीरो’ की कहानी लिखने में मुझे काफी वक्त लगा। मैं अचानक लेखक नहीं बना। अपनी फिल्मों में छोटे-छोटे सीन पहले भी लिखता था। बहुत सारी फिल्मों के क्लाइमेक्स भी लिखे हैं। उस समय डायरेक्टर और बाकी लोगों का सहयोग मिलता था। अब पहली बार अकेले कहानी लिखी है। फिल्म में मनोरंजन के सारे जायके मौजूद हैं। उम्दा गीत-संगीत है। जोरदार एक्शन भी है। आजकल रियलिस्टिक और बायोपिक फिल्मों की बहार है। पर मेरा मानना है कि कंटेंट दमदार होना चाहिए। प्रचलित ट्रेंड के बारे में नहीं सोचना चाहिए। मेरी फिल्म में एक डायलॉग है आग बुझा देने वाली भूख। ओल्ड स्टाइल न्यू लुक्स। आपका स्टाइल क्या होगा? कैसा नया लुक लेकर आप आते हैं? यही गेम है।’

शुक्रगुजार हूं ईश्वर का
सोलो हीरो के तौर पर वापसी की वजह पूछने पर गोविंदा कहते हैं, ‘मल्टी हीरो फिल्म में मेरे काम की बहुत तारीफ हो जाती है। लिहाजा दूसरे कलाकार मेरे साथ दोबारा काम नहीं करते। कभी-कभी तारीफ आप पर बोझ बन जाती है। लोग आपसे दूर हो जाते हैं। दूसरे कलाकार दूर होने के ऊल-जलूल कारण भी देते हैं। मसलन मैं समय का पाबंद नहीं हूं। सेट पर देरी से आता हूं। मैं मणिरत्नम के सेट पर सुबह चार बजे पहुंचता था। उसका जिक्र तो कभी किसी खबर में नहीं हुआ। यह फिल्म बिरादरी का दस्तूर है। मैं तो ईश्वर का शुक्रगुजार हूं कि उसने मुझे वन मैन
शो बनाया।’

इंडस्ट्री नहीं है बेरहम
राजनीति में सक्रियता के चलते गोविंदा अभिनय पर फोकस नहीं कर पा रहे थे। बाद में उन्होंने राजनीति से तौबा
कर ली। पर अभिनय में सक्रिय होने पर भी उन्हें इंडस्ट्री ने हाथों-हाथ नहीं लिया था। उन्होंने चार साल तक बेरोजगार रहने की बात भी कही थी। उस बर्ताव के बावजूद उन्हें इंडस्ट्री बेरहम नहीं लगी। वे कहते हैं, ‘जलन और
कांप्टीशन से दुनिया का कोई क्षेत्र अछूता नहीं है। ऐसे में बेरहमी का प्रश्न ही नहीं उठता। अहम यह है कि उस कांप्टीशन और जलन से आप बाहर कैसे निकलते हैं? आपकी मेहनत और भाग्य कितना साथ देता है। सही फैसला लेकर आप हीरो बन सकते हैं।’

सलमान तो पक्के साथी हैं
गोविंदा और सलमान खान के बीच मनमुटाव की खबरें भी आईं। गोविंदा अपने ‘पार्टनर’ सलमान पर सार्वजनिक रूप से नाराज भी हुए। हालांकि अब वे उससे यू टर्न लेते हैं। वे कहते हैं, ‘सलमान ने आड़े वक्त में मेरा साथ दिया
है। वे मुझे फिल्म ऑफर कर रहे थे। मैंने इंकार कर दिया था। मैं फिल्म चयन को लेकर बहुत चूजी हूं। यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगती। सलमान की सोच मुझसे अलग है। मैं अब फूंक-फूंक कर कदम रख रहा हूं। अपने कड़वे अनुभवों के चलते जल्दबाजी नहीं करता हूं। यही वजह है कि ‘आ गया हीरो’ में ही मुझे करीब तीन साल लग गए।’

दवा बन गई कॉमेडी
गोविंदा ने डेविड धवन के साथ करीब 17 फिल्में कीं। उनमें से ज्यादातर कॉमेडी थीं। इन फिल्मों ने उन्हें कॉमिक हीरो के दायरे में कैद कर दिया था। उस छवि को तोड़ने का गोविंदा ने प्रयास भी नहीं किया। वे कहते हैं, ‘मैं जब दिलीप कुमार के साथ ‘इज्जतदार’ में काम कर रहा था, उसी दौरान बीमार पड़ गया था। उन्होंने कहा था कि काम का यह दबाव तुम्हारे द्वारा चयनित फिल्मों का परिणाम है। तुम कॉमेडी फिल्म करो। उसमें तुम्हें लुत्फ मिलेगा और बीमार नहीं होगे। वाकई जब मैंने कॉमेडी शुरू की उसके बाद बीमार नहीं पड़ा। कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ। उससे पहले तनाव और लगातार काम की वजह से नसें फूल जाती थीं। मैं काफी दिन अस्पताल में रहता था। मैंने दिलीप साहब की सलाह पर अमल किया। कॉमेडी की बदौलत ही मैंने सफलता की कुलांचें मारी।’

स्मिता श्रीवास्तव