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सूतक के कारण बंद रहे मंदिरों के कपाट

वर्ष के अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण के कारण सूतक लगने से शनिवार को रामनगरी में मंदिरों के कपाट बंद रहे। हनुमानगढ़ी समेत कुछ मंदिरों के कपाट परंपरागत पूजा के बाद प्रात: नौ बजे बंद हुए, जबकि अधिग्रहीत परिसर में रामलला का दर्शन नहीं हो सका।

By Edited By: Updated: Sun, 11 Dec 2011 12:47 AM (IST)
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अयोध्या। वर्ष के अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण के कारण सूतक लगने से शनिवार को रामनगरी में मंदिरों के कपाट बंद रहे। हनुमानगढ़ी समेत कुछ मंदिरों के कपाट परंपरागत पूजा के बाद प्रात: नौ बजे बंद हुए, जबकि अधिग्रहीत परिसर में रामलला का दर्शन नहीं हो सका। यही नहीं पूर्णिमा स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालु भी मंदिरों में दर्शन नहीं कर सके।

2011 का अंतिम पूर्ण चंद्र ग्रहण शनिवार की शाम 6.15 बजे से लगा। नौ घंटे पहले यानी प्रात: 9.15 बजे ही ग्रहण का सूतक लग गया। सूतक से पहले ही हनुमानगढ़ी, कनकभवन, श्रीरामजन्मभूमि, श्रीरामवल्लभाकुंज, श्रीजानकी महल, दशरथ महल, मणिराम दास जी की छावनी, जानकीघाट बड़ास्थान, सियाराम किला व लक्ष्मण किला आदि मंदिरों के कपाट सुबह नौ बजे तक बंद कर दिए गए। इस दौरान मंदिरों में सीताराम नाम का जप होता रहा। पूर्ण चंद्रग्रहण शाम 7.36 बजे व मध्य चंद्रग्रहण 8.28 बजे रहा। उधर पूर्णिमा पर्व पर शनिवार को भोर से ही रामनगरी में स्नान-दान का सिलसिला चलता रहा।

श्रद्धालुओं ने स्नान कर पुण्यलाभ अर्जित किया। बड़ी संख्या में बाहर से आए श्रद्धालु अभी अयोध्या में डेरा डाले हुए हैं। वे ग्रहण समाप्ति के बाद रविवार को सरयू स्नान के बाद मंदिरों में पूजन करके घर वापस जाएंगे। ग्रहण का मोक्ष रात्रि दस बजे से होने के कारण रविवार को बड़ी संख्या में श्रद्धालु ग्रहण के मोक्ष का स्नान करेंगे। रामलला के प्रधान अर्चक आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि रविवार को रामलला का दर्शन निर्धारित समय प्रात: सात बजे से पूर्वाह्न 11 बजे तक व दोपहर एक बजे से सायं पांच बजे तक किया जा सकेगा।

चंद्रमा की मुक्ति को आस्थावानों की युक्ति

वाराणसी: मार्गशीर्ष पूर्णिमा तद्नुसार शनिवार को राहु के आगोश से चंद्रमा की मुक्ति को धर्मानुरागियों ने हर युक्ति लगा दी। लगभग बारह घंटे उपवास और भजन-कीर्तन तो कमर तक गंगजल में खड़े होकर देवाराधना किया। पूरी तरह ढके चंद्रमा (खग्रास चंद्र ग्रहण) के मोक्ष के बाद स्नान ध्यान और दान किया गया। इसके लिए शाम से ही गंगा के तट पर जुटान शुरू हो गयी थी। राहु के ग्रास से चंद्रदेव के छूटते ही लोगों ने डुबकी लगाई और देवालयों में घंटा घडि़याल गूंज उठे।

सायंकाल आसमान में चंद्र किरणें अभी खिली भी नहीं थीं कि 6.15 बजे राहु का शिकंजा कसने लगा। कांति विहीन होते चंद्रमा की पीड़ा को महसूसते श्रद्धालुजनों का घंटों पहले से ही दशाश्वमेध घाट समेत विभिन्न घाटों पर आना शुरू हो गया था। हरिहर यानी विष्णु और शिव को समर्पित अंताक्षर व महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर आराध्य देवों से भी चंद्र मुक्ति की कामना की। रात 8.02 बजे (मध्य) चंद्र किरणें आसमान से ओझल हो गई और आसमान में घटाटोप अंधेरा छा गया। लगभग एक घंटे बाद अंशत: चंद्रमुक्ति का क्रम शुरू हुआ। रात 9.48 बजे चंद्र किरणें आसमान से धरती तक बिखर आयीं। स्नान दान के साथ ही लोगों नें मंदिरों में दर्शन पूजन भी किया। हालांकि ग्रहण से नौ घंटे पहले यानी पूर्वाह्न 9.15 बजे सूतक लगने के साथ ही ही धर्मानुरागियों ने उपवास शुरू कर दिया था। मान्यता के अनुसार सूतक अवधि में बालक, वृद्ध, रोगी और आतुर के अलावा अन्य के लिए भोजन निषिद्ध है। इस दौरान मंत्र-जाप, कीर्तन लाभकारी माना जाता है। लिहाजा श्रद्धालुजन सवेरे से मोक्षकाल तक इसमें जुटे रहे। चंद्रग्रहण के दौरान विदेशी भी श्रद्धा के रंग में रंगे रहे। विभिन्न घाटों पर दान किया तो गंगजल में स्नान भी किया।

बंद रहे मंदिरों के पट

संकट मोचन समेत कई मंदिरों के कपाट भी आरती के बाद 10 बजे बंद कर दिए गए थे। वहीं काशी विश्वनाथ मंदिर, काशी के कोतवाल बाबा कालभैरव व अन्य मंदिरों के पट अपराह्न में बंद हुए। मोक्ष के बाद स्नान और श्रृंगार के बाद दर्शन के लिए पट खोले गए।

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