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Modi vs Imran: UNGA में पहली बार बोलेंगे इमरान, लेकिन कश्‍मीर पर कुछ नहीं होगा हासिल

इमरान खान पहली बार 27 सितंबर को यूएनजीए के मंच पर दिखाई देंगे। उनका एजेंडा क्‍या होगा ये सब जानते हैं लेकिन इससे उन्‍हें हासिल कुछ नहीं होने वाला है।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Fri, 27 Sep 2019 08:46 AM (IST)
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Modi vs Imran: UNGA में पहली बार बोलेंगे इमरान, लेकिन कश्‍मीर पर कुछ नहीं होगा हासिल
नई दिल्‍ली जागरण स्‍पेशल। संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा में शुक्रवार (27 सितंबर 2019) का दिन बेहद खास है। इस वैश्विक मंच पर कल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्‍तान के प्रधानमंत्री इमरान खान अपना संबोधन करेंगे। इमरान खान की बात करें तो उनके लिए यूएनजीए (United Nation General Assembly) में बोलने का यह पहला मौका है, जबकि पीएम मोदी 2014 से अब तक करीब तीन बार इस मंच सेअपना पक्ष विभिन्‍न मुद्दों पर रख चुके हैं। इस बार भी उनके यहां से दिए जाने वाले संबोधन में वैश्विक मुद्दे छाए रहेंगे। वहीं, पाकिस्‍तान की बात करें तो उसके सबसे बड़े एजेंडे के रूप में हर बार की तरह इस बार भी कश्‍मीर मसला ही रहने वाला है। इमरान खान खुद इसकी तस्दीक कर चुके हैं।

पाकिस्‍तान में सियासी उफान

जम्‍मू-कश्‍मीर पर भारत सरकार द्वारा लिए गए फैसले के बाद से ही पाकिस्‍तान में इसको लेकर सियासी उफान जोरों पर है। बीते एक माह की ही बात करें तो खुद इमरान खान ने गुलाम कश्‍मीर के मुजफ्फराबाद में एक जलसे को संबोधित करते हुए यहां तक कहा था कि वह बताएंगे कि कब एलओसी (Line of Control) पर जाना है।इमरान खान का इशारा यहां पर बेहद साफ और स्‍पष्‍ट था। जम्‍मू-कश्‍मीर को लेकर इमरान को अपने ही लोगो की नाराजगी झेलनी पड़ रही है। हालांकि, पाकिस्‍तान के सभी नेताओं की चाहत जम्‍मू-कश्‍मीर को हथियाना है और इसका रोडमैप आतंकी कैंप की तरफ से होकर गुजरता है। इस मसले पर इमरान खान का रूख भी कोई अलग नहीं है। वह भी आतंक के ही रास्‍ते इस ख्‍वाब को पाले हुए हैं।

यूएनजीए का 74वें सत्र

यूएनजीए के 74वें सत्र (74th session of UNGA) में जो इमरान खान बोलने वाले हैं। उसके एजेंडे के बाबत वह खुद भी कई बार बता चुके हैं। वह साफ कर चुके हैं कि कश्‍मीर का मसला वह इस महासभा में उठाएंगे। इससे पहले वह बीते एक माह से इस मसले पर अंतरराष्‍ट्रीय समुदाय का समर्थन पाने में लगे हैं, लेकिन इसमें वह किस कदर नाकाम रहे हैं इसका जिक्र खुद पाकिस्‍तान की संसद में बैठे पूर्व प्रधानमंत्री से लेकर राष्‍ट्रपति तक सभी कर चुके हैं। बहरहाल, यूएनजीए (UNGA) में हर बार भारत पाकिस्‍तान को कड़ा जवाब देता आया है। यह जवाब हर बार दोतरफा होता आया है।

दोनों हाथों में लड्डू

अमेरिका में भारत की पूर्व राजदूत मीरा शंकर के मुताबिक, इस बार प्रधानमंत्री इमरान खान को जवाब सीधे तौर पर पीएम मोदी नहीं देंगे। यह जवाब भारतीय राजदूत के किसी अधिकारी की तरफ से दिया जाएगा। ऐसा पहली बार नहीं है। इसी तरह से पहले भी पाकिस्‍तान को जवाब दिया जा चुका है। उनका ये भी कहना है कि भारत जम्‍मू -कश्‍मीर को पूरी तरह से अंदरूनी मुद्दा है लिहाजा इसको वैश्विक मंच पर उठाए जाने का कोई औचित्‍य नहीं है। हालांकि, पाकिस्‍तान की बात करें तो वह वर्षों से इसको अंतरराष्‍ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करता रहा है। मीरा मानती हैं कि यूएनजीए में कश्‍मीर का मुद्दा (PM Imran Khan raise issue Jammu Kashmir in UNGA) इमरान खान के लिए दोनों हाथों में लडडू की तरह है।

पाकिस्‍तान आर्थिक तौर पर कमजोर

यह मुद्दा उन्‍हें ऐसे समय में मिला है जब पाकिस्‍तान आर्थिक तौर पर लगातार कमजोर होता जा रहा है। दूसरा पाकिस्‍तान की स्‍थानीय राजनीति में जम्‍मू-कश्‍मीर वर्षों से बड़ा मुद्दा रहा है। लिहाजा पाकिस्‍तान में अपनी जड़ों को मजबूत करने के लिहाज से भी यह उनके लिए अच्‍छा मौका है। वहीं, इस मुद्दे से उन्‍हें अपनी जनता का ध्‍यान वहां की बढ़ती महंगाई से भी हटाने का मौका मिल गया है। लिहाजा यह उनके लिए कहीं न कहीं फायदे का सौदा ही है। पूर्व राजदूत का कहना है कि कश्‍मीर का मसला इमरान खान के लिए एक मजबूरी भी है। मजबूरी इसलिए, क्‍योंकि इसके बिना पाकिस्‍तान की राजनीति के बारे में सोचना भी बेमानी है। यदि इमरान चाहें तो भी वह इससे जुदा नहीं हो सकते हैं। स्‍थानीय राजनीति उन्‍हें इसकी इजाजत कतई नहीं देगी।

पाकिस्‍तान को क्‍या हासिल होगा

यह पूछे जाने पर कि हर तरफ से मिली हार के बाद भी जम्‍मू कश्‍मीर के मुद्दे को यूएनजीए में उठाकर पाकिस्‍तान को क्‍या हासिल होगा, मीरा का कहना था कि इससे हासिल तो कुछ नहीं होगा, लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो पाकिस्‍तान में उनके लिए रास्‍ते कठिन हो जाएंगे और मुश्किलें बढ़ जाएंगी। यूएन में जम्‍मू-कश्‍मीर के मसले के बाबत मीरा का कहना था कि पाकिस्‍तान हमेशा से ही इसको अंतरराष्‍ट्रीय मुद्दा बनाने की कोशिश करता रहा है। चीन के अलावा गिने-चुने देशों ने ही उसका समर्थन किया, जबकि भारत के समर्थन में कहीं अधिक देश थे।

जम्‍मू-कश्‍मीर पर अमेरिकी रूख

जम्‍मू-कश्‍मीर पर अमेरिकी रूख पर बात करते हुए उन्‍होंने ये भी कहा कि कारगिल युद्ध के बाद अमेरिकी की नीति जम्‍मू-कश्‍मीर को लेकर काफी बदली है। उस वक्‍त राष्‍ट्रपति क्लिंटन ने पाकिस्‍तान से स्‍पष्‍ट शब्‍दों में अपनी सेना को एलओसी से पीछे हटाने को कहा था। पुलवामा हमले (Pulwama Attack) के बाद भारत द्वारा की गई कार्रवाई का भी अमेरिकी राष्‍ट्रपति ने खुलेतौर पर समर्थन किया था। राष्‍ट्रपति ट्रंप ने बेहद स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा है कि दोनों देश इस मसले को बातीचीत के जरिए हल करें। उन्‍होंने हाल ही में मीडिया में यह भी कहा है कि भारत इस मसले पर अपना स्‍पष्‍ट और कड़ा रुख उन्‍हें जता चुका है।

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