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तालिबान की एक शर्त बनी अफगानिस्‍तान की शांति में बाधा, सरकार को कतई नहीं मंजूर

तालिबानी कैदियों की रिहाई पर अफगान सरकार से होने वाली वार्ता खटाई में पड़ गई है। दोनों पक्ष अपनी-अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। ऐसे में यहां शांति की कोशिशें विफल हो सकती हैं।

By Kamal VermaEdited By: Updated: Tue, 17 Mar 2020 04:59 PM (IST)
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तालिबान की एक शर्त बनी अफगानिस्‍तान की शांति में बाधा, सरकार को कतई नहीं मंजूर
काबुल। तालिबान और अफगानिस्‍तान सरकार के बीच होने वाली संभावित शांति वार्ता पर अब पेंच फंस गया है। ये पेंच तालिबान लड़ाकों की रिहाई को लेकर फंसा है। अफगानिस्‍तान के अखबार टोलो न्‍यूज के मुताबिक तालिबान चाहता है कि सरकार उनके सभी 5 हजार लड़ाकों की रिहाई एक ही बार में करे। इसके बिना वो सरकार से किसी भी तरह से वार्ता को राजी नहीं हैं। वहीं अफगान सरकार का कहना है कि ये लड़ाके युद्ध अपराध के तहत कैद किए गए हैं, इन्‍हें इनके द्वारा शांति की गारंटी दिए जाने के बिना रिहा नहीं किया जाएगा। इसके अलावा सरकार पहले ही साफ कर चुकी है कि वह प्राथमिकता के आधार पर इनकी रिहाई करेगा। इसमें भी सरकार सभी लड़ाकों की रिहाई एक ही बार न करके कुछ-कुछ अंतराल पर कुछ-कुछ लड़ाकों को रिहा करेगी, लेकिन ये भी तालिबान-सरकार की वार्ता पर तय होगा। अब इस मांग पर ही दोनों पक्षों के बीच तनातनी बढ़ गई है। 

अफगान राष्‍ट्रपति के सलाहकार वाहिद उमर का कहना है कि सरकार जेल में बंद तालिबान लड़ाकों की सूची को रिव्‍यू कर रही है। सभी लड़ाकों की रिहाई में कुछ समय जरूर लगेगा। अफगान सरकार के बयान के बाद तालिबान ने सभी लड़ाकों की रिहाई तक किसी भी तरह की वार्ता में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया है। 

अफगान नेता सैयद इशाक गिलानी हाल ही में शांति वार्ता को लेकर अमेरिका के विशेष दूत जालमे खलिजाद के साथ चार बार मुलाकात कर चुके हैं। उनका कहना है कि आए हुए मौके को गंवाना नहीं चाहिए। उनका ये भी कहना है कि सरकार ने कैदी तालिबानी लड़ाकों की उम्र, सजा और अपराध को देखते हुए उनकी रिहाई की प्राथमिकता तैयार की है।  

आपको यहां पर बता दें कि 29 फरवरी को तालिबान और अमेरिका के बीच 18 माह लंबी शांति वार्ता के बाद समझौता हुआ था। इसी समझौते में तालिबान लड़ाकों की रिहाई की बात भी कही गई थी। लेकिन शुरुआत से ही अफगान सरकार समझौते में शामिल इस बिंदु पर नाराज थी। अफगान राष्‍ट्रपति का कहना था कि इस समझौते में तालिबान कैदियों की रिहाई को लेकर कुछ नहीं है। न ही ये बिना अफगान सरकार से बातचीत के हो सकता है। लेकिन उनकी बड़ी समस्‍या ये भी थी कि इस शांति वार्ता में अफगान सरकार को शामिल ही नहीं किया गया था।टोलो न्‍यूज के मुताबिक, तालिबान के पूर्व सदस्‍य  सैयद अकबर आगा का कहना है कि उन्‍हें नहीं लगता है कि तालिबानी नेता अफगान सरकार की शर्तों को मानेंगे और लड़ाकों की बिना रिहाई के बातचीत की मेज पर आएंगे 

आपको यहां पर ये भी बता दें कि समझौते के एक सप्‍ताह बाद ही तालिबान ने अफगान सरकार के ठिकानों पर जबरदस्‍त हमला किया था। इसके बाद अमेरिका ने भी तालिबान पर हवाई हमला किया था। मंगलवार को ही तालिबान ने गोर प्रांत में हमला कर 11 अफगान सैनिकों को मार गिराया था। ऐसे में अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता पर संकट के बादल मंडराते दिखाई दे रहे हैं। 

जानकारों की मानें तो अमेरिका ने तालिबान से समझौता केवल यहां से अपने जवानों की वापसी सुनिश्चित करने के लिए किया है। विदेश मामलों के जानकार कमर आगा का कहना है कि अमेरिका यहां से जाना चाहता है, लेकिन इसके बावजूद वह अपने ठिकानों को बनाए रखेगा। ऐसा करना उसके लिए इसलिए भी जरूरी है, क्‍योंकि ईरान भविष्‍य में सिर उठा सकता है। लिहाजा उसको दबाने के लिए वो अफगानिस्‍तान में मौजूद अपने सैन्‍य ठिकानों को पूरी तरह से बंद नहीं करेगा। आगा को ये भी लगता है कि तालिबान और अमेरिका दोनों ही एक-दूसरे को फिलहाल अपने पक्ष में देख रहे हैं और दोनों एक दूसरे से फायदा उठाना चाहते हैं। हालांकि, तालिबान और अफगान सरकार के बीच वार्ता का होना फिलहाल मुश्किल ही दिखाई दे रहा है। 

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