एनटी रामा राव, जिन्होंने अपने दम पर महज 9 माह में कांग्रेस को सत्ता से कर दिया था बेदखल
फिल्मी दुनिया को छोड़कर जब एनटीआर ने राजनीति की तरफ रुख किया तो इसका नतीजा महज 9 माह के अंदर ही सामने आ गया। उन्होंने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर बड़ी जीत हासिल की।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Thu, 28 May 2020 11:00 AM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। एनटी रामा राव का पूरा नाम नन्दमूरि तारक रामाराव था। वे दक्षिण के बड़े नेता के अलावा दिग्गज अभिनेता, निर्देशक, निर्माता भी थे। उन्होने 1982 में तेलुगु देशम पार्टी की स्थापना की और आंध्र प्रदेश के 10वें मुख्यमंत्री थे। इसकी स्थापना के पीछे कांग्रेस की खींची लकीर को खत्म करना था। उन्होंने अपने दम पर इस पार्टी को सींचा। उनकी इस कामयाबी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पार्टी के गठन के महज 9 माह बाद ही यह राज्य की सत्ता तक पहुंच गई थी। 1984-1989 के बीच रामा राव ने पार्टी को इतनी मजबूती दी कि टीडीपी केंद्र में मुख्य विपक्षी पार्टी बनी। ये देश की पहली ऐसी राज्य स्तरीय पार्टी थी जिसने ये जगह पाई थी।
उन्हें प्राय: एनटीआर के उपनाम से जाना जाता है। जब एनटी रामा राव ने राजनीतिक पारी की शुरूआत की उस समय वह एक लोकप्रिय अभिनेता थे। वर्ष 1983 में सर्वसम्मति से एन.टी. रामा राव को तेलुगु देशम विधायक दल का नेता चयनित किया गया, जिसमें दस कैबिनेट मंत्री और पांच राज्य मंत्री थे। 1983 से 1994 के बीच वह तीन बार राज्य के सीएम पद के लिए चुने गए थे। दक्षिण भारत में लोगों ने फिल्मी कलाकारों को राजनीति में आने के बाद भी अपने सिर-माथे पर रखा है। इसका जहां एक उदाहरण रामा राव खुद हैं तो वहीं एमजी रामाचंद्रन, जयललिता और करुणानिधि भी इसी फहरिस्त का हिस्सा हैं। इन सभी ने राजनीति में आने के बाद सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का स्वाद चखा और ये दक्षिण में राजनीति के महानायक के तौर पर उभरे।
रामाराव राजनीति के कद्दावर नेताओं में से एक थे। उनकी राजनीतिक जमीन इस कदर मजबूत थी कि उन्हें कोई भी सीधी टक्कर देने से बचता था। लोगों के बीच उनकी लोकप्रियता जबरदस्त थी। वर्ष 2013 में सीएनएन-आईबीएन के नेशनल पोल में उन्हें ग्रेटेस्ट इंडियन एक्टर ऑफ ऑल टाइम के लिए चुना गया था। ये पोल भारतीय सिनेमा के सौ वर्ष पूरे होने के अवसर पर किया गया था। उन्हें 1968 में भारत सरकार ने पद्म श्री सम्मान से नवाजा था। 1951 में फिल्मी दुनिया में कदम रखने वाले रामा राव करीब तीन दशकों तक लगातार इससे जुड़े रहे।
वर्ष 1988 में इलाहाबाद संसदीय सीट के लिए उपचुनाव हो रहा था। कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में सुनील शास्त्री खड़े थे। उनका मुकाबला निर्दल (जनमोर्चा) उम्मीदवार विश्वनाथ प्रताप सिंह से था। प्रचार अंतिम दौर में था। वीपी के समर्थन में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला, छोटे लोहिया के नाम से मशहूर जनेश्वर मिश्र, एसपी मालवीय जैसे दिग्गज नेता प्रचार में थे। कांग्रेस पार्टी ने भी सुनील शास्त्री के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। डॉ. राजेंद्र कुमारी वाजपेयी जैसी नेत्री कांग्रेस का प्रचार कर रही थीं। मतदान 18 जून को था। उससे दो दिन पहले 16 जून को पीडी टंडन पार्क में वीपी सिंह के समर्थन में चुनावी सभा आयोजित की गई थी। पूरे देश से गैर कांग्रेसी नेताओं का जमावड़ा यहां हुआ था। कई बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे एनटी रामाराव भी मंच पर मौजूद थे।
उनके भाषण देने की बारी आई, तब सभा के संचालक ने कहा कि एनटी रामाराव अपनी बात तेलगू भाषा में रखेंगे। अनुवाद हिंदी में होगा। वह अपना भाषण तेलगू में दे रहे थे। अनुवादक उनके संबोधन का अर्थ ङ्क्षहदी में बता रहा था। करीब 15 मिनट का भाषण चला होगा कि अनुवादक ने किसी वाक्य का गलत अनुवाद कर दिया। एनटी रामाराव हिंदी भले ही नहीं बोल पाते थे, लेकिन समझ जरूर लेते थे। गलत अनुवादन होने पर एनटीआर अनुवाद पर भड़क गए और उसको कड़ी फटकार लगाई। इस पर अनुवादक ने तुरंत माफी मांग ली। यह प्रसंग प्रयाग के राजनीतिक इतिहास में अनूठा है। इस चुनाव में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सुनील शास्त्री को भारी मतों से हराया था।