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दशहरे पर यहां हुए हादसे से पूरा देश कांप गया था, आज भी लोग नहीं भूले वो चीख व चीत्‍कार

दशहरा आते ही अमृतसर के लोगों की रूह कांप उठी है और जौड़ रेल फाटक के पास 19 अक्‍टूबर 2018 का भीषण हादसा याद आ गया है। ट्रैक पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे लोगों को रौंद दिया था।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Tue, 08 Oct 2019 12:47 PM (IST)
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दशहरे पर यहां हुए हादसे से पूरा देश कांप गया था, आज भी लोग नहीं भूले वो चीख व चीत्‍कार
अमृतसर, [नितिन धीमान]। उस शाम रावण जल रहा था। बच्चे, बूढ़े और जवान बदी पर नेकी की विजय का प्रतीक दशहरा के रंग में पूरी तरह रंग चुके थे। अचानक, वो हुआ जिसका किसी को आभास न था। जौड़ा फाटक के समीप रेलवे ट्रैक पर खड़े 59 लोग एक ही पल में लाश बन गए। पठानकोट से आ रही डीएमयू ट्रेन सभी को रौंदते हुए चली गई। रेलवे ट्रैक के इर्द-गिर्द लाशें बिखर गईं। आज भी उस मंजर को याद कर लोगों की रूह कांप जाती है और फिर दशहरे पर लोगों का दर्द जाग गया है।

19 अक्‍टूबर 2018 को जौड़ा फाटक रेल फाटक के पास ट्रैक पर खड़े होकर रावण दहन देख रहे लोगों को तेज गति से आ रही ट्रेन रौंदती चली गई थी। थाेडी़ देर पहले उत्‍सव में झूम रहे लोगों में चीख-पुकार मच गई। लाेगों की चीत्‍कार से पूरा माहौल गूंज उठा। इस दर्दनाक घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। किसी ने अपना बेटा खो दिया तो किसी ने अपना पिता, किसी की बेटी नहीं रही तो कोई मां की ममता से महरूम हो गया। दर्जनों आंगन दुखाें में डूब कर सूने हो गए।

हादसे में मृत्यु का शिकार बने 59 लोगों के परिजनों को सरकार से मिली रुसवाई

इसके बाद जांच-दर-जांच हुई, नेताओं के दौरे हुए और लोगों के जख्‍म पर मरहम लगाने की तमाम घोषणाएं हुईं। लेकिन, तकरीबन एक वर्ष बाद भी इस हादसे की भेंट चढ़ गए लोगों के परिजनों का दर्द कम नहीं हुआ है। आज भी जौड़ा फाटक की गलियां गम से बोझिल हैं। मंगलवार को एक बार फिर पूरा देश दशहरा उत्सव मनाने की तैयारियों में जुटा है, पर पीड़ित परिवारों के लिए यह दिन एक बुरे सपने की तरह है।

 

19 अक्‍टूबर 2018 को यूं देख रहे थे लोग रावण दहन।

इस बार जौड़ा फाटक में दशहरा उत्सव नहीं मनाया जा रहा है। हां, पीड़ित परिवारों ने सरकार के खिलाफ उसी रेलवे ट्रैक पर बैठ कर प्रदर्शन करने की चेतावनी दी है जहां उनके अपने लाश बने थे। सोमवार को पुलिस ने पीड़ित परिवारों को बुलाकर धरना न लगाने की अपील की, लेकिन परिजनों ने स्पष्ट कहा कि सरकार ने उनकी  पुकार नहीं सुनी, इसलिए अब वे विरोध का रास्ता अपना रहे हैं। सरकारी कार्यालयों के चक्कर लगाकर थक चुके हैं। इस अवधि में उनसे पांच बार सरकारी नौकरी देने के नाम पर फॉर्म भरवाए गए, पर नौकरी नहीं दी। 

जौड़ा फाटक पर इस बार नहीं मनाया जाएगा दशहरा उत्सव, मृतकों के परिजन ट्रैक पर करेंगे प्रदर्शन

हादसे में अपने पिता गुरिंदर कुमार व चाचा पवन कुमार को गंवा चुके दीपक का कहना है कि सरकार ने मुआवजे के नाम पर पांच-पांच लाख रुपये जारी कर दिए। सरकार ने मारे गए लोगों के परिजनों को सरकारी नौकरी देने की बात कही थी, जो आज तक पूरी नहीं हुई। हादसे में किसी का जवान बेटा चला गया, तो किसी का सुहाग उजड़ गया, किसी मां की गोद सूनी हुई तो किसी के सिर से मां का साया छिन गया। सभी लोग आर्थिक दृष्टि से बेहद कमजोर हैं। कमाने वाला ही नहीं रहा, तो घर का चूल्हा कैसे जले। मेरी मां अरुणा सिलाई करके परिवार पाल रही है। सरकार को शर्म क्यों नहीं आती?

'नवजोत कौर सिद्धू समय पर कार्यक्रम में आ जातीं तो हादसा नहीं होता'

20 वर्षीय हर्ष की मौत ने परिवार को गमजदा कर दिया। उसके दिव्यांग पिता राजकुमार ने अपना दर्द बयां किया है। वह कहते हैं, हर्ष इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। सरकार ने सिर्फ दिखावा किया। हादसे के कसूरवार दशहरा उत्सव के आयोजक मिट्ठू मदान व नवजोत कौर सिद्धू हैं। नवजोत कौर सिद्धू तब तक आयोजन में नहीं पहुंचीं जब तक भीड़ इकट्ठी न हो गई। यदि वह समय पर आ जातीं तो शायद सबकी जान बच जाती। हादसे के 15 दिन बाद मैं नवजोत सिंह सिद्धू के आवास पर गया था। सिद्धू ने मुझसे कहा कि आपके लिए मेरे घर के दरवाजे हमेशा खुले हैं। हालांकि सिद्धू दंपती हादसे के बाद कभी भी जौड़ा फाटक क्षेत्र में नहीं आए।

पिता की नजर आज भी 16 साल के बेटे को तलाशती हैं

बिंदु का बेटा बॉबी 16 साल की अल्पायु में काल के गाल में समा गया। एक बेटा रोहित पांडे दिव्यांग है। बिंदु कहते हैं, बॉबी दसवीं में पढ़ता था। अकेला ही दशहरा देखने चला गया, फिर लौटकर नहीं आया। वह हमारा सहारा था। कंजक पूजन व रामनवमी के अवसर पर हम प्रतिवर्ष घर में हवन करते थे। बॉबी ही दौड़ भाग कर सारा काम करता था। मेरी आंखें आज भी उसे तलाशती हैं। अफसोस, हमें इस दुख के साथ ताउम्र जीना पड़ेगा। नवजोत सिंह सिद्धू ने घोषणा की थी कि वे पीडि़त परिवारों के बच्चों की शिक्षा का खर्च वहन करेंगे। सिद्धू ने किसी भी परिवार को सहायता प्रदान नहीं की। कई परिवारों की हालत इतनी दयनीय है कि वे अपने बच्चों के स्कूल की फीस नहीं भर पा रहे।

'रावण' की मां की आंखों में आक्रोश

दशहरा उत्सव में 'रावण' का किरदार निभाने वाले दलबीर सिंह भी दर्दनाक हादसे का शिकार बना। उसकी मां स्वर्ण कौर कहती है कि दशहरा आयोजक व नेताओं के खिलाफ सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। लोग रेलवे ट्रैक पर अपनों की लाशें ढूंढ रहे थे, तब सरकारी अधिकारी आए। हमने उनके सामने आक्रोश व्यक्त किया तो उन्होंने कहा कि इस आयोजन के लिए किसी ने सरकारी परमीशन नहीं ली थी। यदि सरकार हादसे के जिम्मेवार आयोजक व नेताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती तो शायद लोगों के जख्मों पर मरहम लग जाता।

200 से अधिक लोगों की हुई थी मौत!

रेल हादसे के बाद यह सवाल बरकरार है कि मृतकों की संख्या कितनी थी। लोगों के अनुसार हादसे में मरने वाले 200 से अधिक लोग थे। हालांकि प्रशासनिक आंकड़े मृतकों की संख्या 59 बताते हैं। लोगों का कहना है कि हादसे के बाद ज्यादातर लोगों के शरीर टुकड़ों में विभाजित हो गए। मौके पर एंबुलेंस आईं। शवों के टुकड़ों को उठाकर नहर में फेंक दिया गया। हालांकि इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण किसी के पास नहीं है।

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जौड़ा फाटक के पास कड़ी सुरक्षा

पीड़ित परिवारों के रोष को देखते हुए पुलिस ने जौड़ा फाटक के समीप सुरक्षा प्रबंध पुख्ता करने की बात कही है। डीसीपी जगमोहन सिंह के अनुसार पुलिस पूरी तरह से अलर्ट है। सुरक्षा की दृष्टि से चप्पे-चप्पे पर पुलिस लगा दी गई है।

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दशहरा आयोजक बेटे की शादी की तैयारियों में जुटा

हादसे में अपने बेटे को गंवा चुकी लवली ने कहा कि जौड़ा फाटक में बिखरी लाशें देखने वाला कोई भी शख्स इस हादसे को भुला नहीं पाया है, लेकिन दशहरा समारोह का आयोजक मिट्ठू मदान अपने बेटे की शादी धूमधाम से मनाने की तैयारी कर रहा है। पंजाब सरकार ने इस मामले की जांच की खानापूर्ति की, पर कसूरवार कौन यह किसी को नहीं मालूम।

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