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कैप्टन अमरिंदर सिंह बोले- राष्ट्रपति ने पंजाब के कृषि बिलों को सहमति नहीं दी तो सुप्रीम कोर्ट जाएंगे

पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Capt Amarinder Singh) ने कहा कि यदि राष्ट्रपति ने पंजाब विधानसभा द्वारा कृषि कानून को लेकर लाए गए बिलों को मंजूरी नहीं तो राज्य सरकार इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Thu, 18 Mar 2021 04:26 PM (IST)
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पत्रकारों से बातचीत करते पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह।
जेएनएन, चंडीगढ़। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि उनकी सरकार केंद्र के कृषि कानूनों के पूरी तरह खिलाफ है। केंद्र सरकार से अपील है कि वह हठपूर्ण रवैया अपनाने के बजाय इन कानूनों को तुरंत रद करे और इस मामले पर किसानों के साथ नए सिरे से बातचीत करके नए कानून लाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर राष्ट्रपति ने पंजाब द्वारा लाए गए संशोधन बिलों को सहमति नहींं दी तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि दुख की बात है कि विधानसभा में सभी पार्टियों की वोटिंग के साथ सर्वसम्मति से पास किए बिलों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए आगे भेजने के बजाय राज्यपाल ने अपने पास रोक कर रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि यह दुखद था कि इस मुद्दे पर अकालियों और आप की तरफ के बाद में राजनीतिक खेल खेलना शुरू कर दिया गया।

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कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर पत्रकारों से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने ऐलान किया कि किसानों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत में आई रुकावट को खत्म करने के लिए उनको कोई भी बीच का रास्ता नहीं सूझ रहा। उन्होंने कहा कि केंद्र को कृषि कानून रद करने चाहिए और किसानों के साथ बैठकर इनकी जगह नए कानून बनाने चाहिए।

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उन्होंने केंद्र को पूछा, ‘‘इसको प्रतिष्ठा का सवाल बनाने की क्या जरूरत है?’’ किसान आंदोलन में महिलाओं और बुजुर्गों के साथ बैठे गरीब किसानों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा ‘‘अपने अड़ियल रवैयेे के साथ आप और कितने किसानों की मौत होने देना चाहते हो?’’ उन्होंने कहा कि जब से आंदोलन शुरू हुआ है, तब से लेकर अब तक अकेले पंजाब के ही 112 किसान मारे जा चुके हैं। उन्होंने पूछा, ‘‘गत समय में संविधान में 100 से अधिक संशोधन हो चुके हैं तो इन कानूनों को रद करने के लिए फिर ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता?’’

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मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा कि वह यह बात समझ नहीं पा रहे हैं कि केंद्र सरकार किसानों और आढ़तियों के बीच लंबे समय से अजमाए संबंधों को तोड़ने की कोशिश क्यों कर रही है। उन्होंने कहा कि ये नए  कानून मौजूदा प्रणाली में कोई सुधार नहीं करेंगे, बल्कि कृषि सेक्टर को तबाह कर देंगे। उन्होंने कहा कि आढ़तियों की जगह अनजान काॅर्पाेरेटों के आने से गरीब किसान (पंजाब के 75 प्रतिशत किसान) जरूरत पड़ने पर कहां जाएंगे? उन्होंने किसानों को सीधी अदायगी संबंधी एफसीआइ की नई नीति के बारे में पूछे एक सवाल के जवाब में कहा कि दिल्ली कृषि को समझ नहीं रही। मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इस नीति के हक में नहीं हैं।

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मुख्यमंत्री ने कहा कृषि राज्य का विषय है और केंद्र को इस मामले संबंधी कानून बनाने का कोई अधिकार नहीं था। उन्होंने राज्य के अधिकारों में रुकावट पैदा करके संविधान में दर्ज संघीय ढांचे को कमजोर करने की कोशिश करने के लिए केंद्र सरकार की निंदा की। कृषि कानूनों संबंधी फैसले के लिए केंद्र सरकार की उच्चस्तरीय समिति के मेंबर होने संबंधी उनके बारे गलत जानकारी फैलाने वालों पर बरसते हुए मुख्यमंत्री ने फिर से स्पष्ट किया कि जब पैनल की शुरुआत की गई थी तो पंजाब इसका मैंबर ही नहीं था और इसकी पहली मीटिंग में नीतिगत फैसले (पंजाब की अनुपस्थिति में) पहले ही ले लिए गए थे और पंजाब को बाद में शामिल किया गया था। दूसरी मीटिंग में वित्तीय एजेंडे संबंधी चर्चा हुई और तीसरी मीटिंग में कृषि सचिव मौजूद थे। उन्होंने इस संबंधी विपक्ष के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा ‘‘मैं इस प्रक्रिया का हिस्सा कहां से बन गया?’

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राज्यपाल की तरफ से राज्य के बिलों को अभी तक रोके रखने संबंधी मुख्यमंत्री ने पूछा, ‘‘क्या हम लोकतंत्रीय देश का हिस्सा हैं या नहीं?’’ पंजाब ने सर्वसम्मति के साथ फैसला लिया और राज्यपाल द्वारा इनको रोके रखना शोभा नहीं देता। संविधान की धारा 254 (2) के अंतर्गत राज्यपाल का फर्ज बनता था कि वह इन बिलों को सहमति के लिए राष्ट्रपति के पास भेजते। उन्होंने याद दिलाया कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम के मामलेे में, भाजपा के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार ने भी इसी तरह के संशोधन बिल पास किए थे जिस संबंधी तत्कालीन राष्ट्रपति ने सहमति दी थी।

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