Move to Jagran APP

पंजाब में आप ने बनाया तिकोना मुकाबला, घर में चुनौतियां भी कम नहीं

2017 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में इस बार आम आदमी पार्टी के आ जाने से राज्य में चुनाव रोचक होगा। कई सीटों पर आप भी मुकाबले में होगी।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sat, 25 Jun 2016 05:16 PM (IST)
Hero Image

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। पहली बार पंजाब विधानसभा चुनाव में तिकोना मुकाबला होने जा रहा है। अब तक अकाली दल और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होता था, इस बार आम आदमी पार्टी ने तिकोना बना दिया है। बेशक, शिअद व कांग्रेस यह कहते आ रहे हैं कि चुनावी जंग इन दोनों दलों में ही होगी और आप कहीं मुकाबले में नहीं है, मगर गत लोकसभा चुनाव में अकाली दल के बराबर चार सीटें जीतने वाली आप को विरोधी दल हल्के में नहीं ले रहे हैं। अंदरखाते आप को लेकर भी खूब रणनीति बन रही है।

निचले स्तर पर बने काडर से आप भी पूरी तरह से आश्वस्त है कि वह इन दलों को टक्कर देकर दिल्ली के बाद अब पंजाब की सत्ता पर काबिज हो जाएगी, मगर कई ऐसे मुद्दे हैं जिनसे उसे चुनाव से पहले पार्टी में ही जूझना होगा। चाहे टिकट बंटवारे की बात हो या फिर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का मसला, आप के लिए दोनों मुद्दे किसी चुनौती से कम नहीं हैं। इसके अलावा समय से काफी पहले अपने हक में चुनावी माहौल बनाने के लिए जो कसरत उसने शुरू की थी, उसे चुनाव तक मजबूती से चलाने का भी बड़ा जिम्मा प्रदेश के आप नेताओं पर होगा।

पढ़ें : सिद्धू की पंजाब की राजनीति में वापसी, कोर टीम में शामिल

दरअसल, चुनाव से छह-सात महीने पहले ही राजनीतिक सरगर्मियां जोर पकड़ती हैं, मगर आप इसे 2017 के विधानसभा चुनाव से करीब डेढ़ साल पहले ही पंजाब में शुरू कर चुकी है। दूसरी ओर अकाली दल और कांग्रेस ने अब रफ्तार पकड़ी है। साल भर से लगातार पार्टी कार्यक्रमों के कारण पार्टी वर्करों का जोश अब जहां कम पडऩे लगा है, वहीं अकाली व कांग्रेसी वर्कर अब मैदान में कूदे हैं। मुख्यमंत्री बादल ने धड़ाधड़ संगत दर्शन किए तो अमरिंदर ने भी राजसी ठाठ-बाठ छोड़कर सीधे संपर्क शुरू कर दिया है। इन दोनों नेताओं की जमीनी स्तर पर शुरू की रणनीति के बाद आप के लिए संभलना मुश्किल हो गया है।

आप में इस समय सबसे बड़ी दिक्कत सीएम पद के उम्मीदवार को लेकर है। अकाली-भाजपा गठबंधन जहां इस बार भी मुख्यमंत्री बादल को ही आगे करेगा, वहीं कांग्रेस कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम प्रत्याशी घोषित कर चुकी है। इनके कद का कोई नेता आम आदमी पार्टी में नहीं है, जो नेता इस समय पार्टी का झंडा उठाए हुए हैं उनमें प्रदेश कनवीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर और सांसद भगवंत मान प्रमुख हैं। छोटेपुर दो बार विधायक रहे हैं। पहले 1985 से 88 तक बरनाला सरकार में मंत्री रहे, मगर ऑपरेशन ब्लैक थंडर के विरोध में कैप्टन अमरिंदर सिंह समेत बरनाला सरकार से बाहर आ गए।

पढ़ें : बसपा काे अब हरियाणा में लगा झटका, पूर्व सांसद अरविंद शर्मा ने छोड़ी पार्टी

यह भी चर्चा रही कि अमरिंदर से नजदीकी के चलते ही वह 2002 में निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीते थे। इसके बाद वह कोई चुनाव नहीं जीत पाए और कांग्रेस में शामिल हो गए थे। जबकि भगवंत मान का राजनीतिक करियर महज दो साल का ही है, पहली बार वह 2014 में चुनाव लड़े थे। एडवोकेट एचएस फुलका का नाम भी सीएम पद के दावेदारों में गिना जाता है, मगर उनका कोई राजनीतिक तजुर्बा नहीं रहा है। लुधियाना से वह लोकसभा चुनाव हार गए थे।

पार्टी के लिए अगले विधानसभा चुनाव के प्रत्याशी घोषित करना भी कड़ी चुनौती होगी। राज्य में हर छोटा-बड़ा नेता हर हलके में टिकट पर दावा ठोक रहा है। आप की रैलियों में जुटती रही भीड़ का एक बडा कारण यह भी रहा कि टिकट के दावेदार अपना आधार दिखाने के लिए अपने समर्थकों को रैलियों में लेकर जाते थे। आज हालात यह हैं कि मोहाली में ही 19 लोग आप की टिकट पर दावा जता रहे हैं। अन्य दलों में जहां करीब 70-80 फीसद टिकट पहले से तय होते हैं और महज 20-30 प्रतिशत सीटों पर ही दो-तीन दावेदार होते हैं, वहां पहली बार विधानसभा चुनाव लडऩे वाली आप के पास औसतन दर्जन दावेदार हर विस क्षेत्र से पूरी संजीदगी से दावा ठोक रहे हैं। टिकट कटी तो आप में बिखराव होना तय है।

अन्य दलों से किसी तरह अलग भी आप नजर नहीं आई, क्योंकि अन्य दलों से कई नेताओं को उसने खुले हाथों लिया है। इस कारण वह लोग अंदरखाते नाराज हैं जो शुरू से आप के साथ जुड़े थे और टिकट को लेकर आश्वस्त थे। शुरुआत में पार्टी का आधार मजबूत बनाने और हर घर तक पहुंच बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले कई नेता भी किनारे हो चुके हैं। पार्टी को लोकसभा चुनाव में केवल पंजाब में ही बेहतर रिस्पांस मिला था जब 13 में से चार सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते थे। इसके साल भर बाद ही इनमें पटियाला से डॉ. धर्मवीर गांधी और फतेहगढ़ साहिब से हरविंदर सिंह खालसा को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते निलंबित कर दिए गए।

हालांकि, उन्होंने केवल यही मांग उठाई थी कि सूबे में बाहरी नेताओं की बजाय स्थानीय नेताओं को ही तरजीह दी जाए। उनका विरोध अरविंद केजरीवाल के उस फैसले को लेकर था जिसमें जिला स्तर पर बाहरी नेताओं को ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया गया था। इसके अलावा कांग्रेस और अकाली दल का यह भी मानना है कि आप के आधार में पार्टी के असंतुष्ट नेता और खासकर प्रशांत भूषण व योगेंद्र यादव आदि तगड़ी सेंध लगाएंगे।

गरीब जुड़े मगर अमीर तबके को आप का डर

आम आदमी पार्टी के साथ देहात में गरीब लोग ज्यादा जुड़े। साथ ही वामपंथी दलों के वर्करों का झुकाव भी आप की ओर हुआ है क्योंकि उन्हें आप की विचारधारा भी कामरेडों सी लगती है। मगर अमीर तबका परंपरागत दलों कांग्रेस, अकाली दल व भाजपा से ही जुड़ा हुआ है। बसपा का आधार रहा दलित वर्ग भी आप के साथ इतना नहीं जुड़ा है, जितनी कि उम्मीद थी। पंजाब में 32 फीसद दलित आबादी है जो अनुपात के हिसाब से देशभर में सबसे ज्यादा है। दलित वर्ग अभी भी कांग्रेस और अकाली दल के साथ ही खड़ा है।

मुक्तसर के दो किसान भाइयों से आप को लेकर पिछले दिनों चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि उनकी लंबी-चौड़ी जमीन यहां है। दोनों कनाडा में बसे हैं जबकि बच्चे उनके यहीं डलहौजी में पढते हैं। उन्हें यह डर है कि यदि आप की यहां सरकार बनी तो गरीब तबके को रिझाने के लिए वह ऐसे फैसले ले सकती है जिसका असर उनकी जमीन या आमदनी पर पड़ सकता है।

व्यापारी व उद्योगपति वर्ग मे भी कुछ ऐसा ही डर है कि मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी व आय आदि को आप सत्ता में आने पर इतना ज्यादा बढ़ा सकती है जिसका असर सीधे तौर पर उन पर पड़ेगा।

केजरीवाल का दोहरा चरित्र : बादल

मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का कहना है कि हरियाणवी होने के नाते केजरीवाल पंजाब से जुड़े एसवाइएल, राजधानी चंडीगढ़ और पंजाबी भाषाई क्षेत्रों पर चुप्पी साधे हैं। वह क्षेत्रीय मसलों और खासकर पंजाब के हितों की रक्षा के मामले में अपना स्टेंड स्पष्ट करें। केजरीवाल का दोहरा चरित्र उस दिन सामने आ गया था जब दिल्ली सरकार ने एसवाइएल मामले सुप्रीम कोर्ट में पंजाब के हितों के खिलाफ एफीडेविट दिया था।

केजरीवाल व उनका पार्टी पैसों की लालची : कैप्टन

प्रदेश कांग्रेस प्रधान कैप्टन अमरिंदर सिंह,का कहना है कि केजरीवाल भगवान नहीं, इंसान है और उसके पंजाब आने पर उससे इंसानों की तरह ही निपटा जाएगा। केजरीवाल दिल्ली के लोगों को पानी, बिजली और अन्य सुविधाएं देने में विफल रहा है, जो आदमी दिल्ली में नाकाम साबित हुआ, वह पंजाब के लिए क्या करेगा? केजरीवाल और उसकी पार्टी पैसों की लालची है और दिल्ली में विधायकों के वेतन 400 गुणा बढ़ाकर उन्होंने लालच को कानूनी रूप दे दिया है। इतिहास में इतनी बढ़ोतरी किसी भी समृद्ध देश में भी नहीं की गई।

आप अब अमीरों की पार्टी : सांपला

केंद्रीय मंत्री व प्रदेश भाजपा प्रधान विजय सांपला का कहना है कि आम आदमी पार्टी पंजाब में न तो तीसरी ताकत बन सकेगी और न ही कोई चुनौती दे पाएगी। जो लोग अब तक विधानसभा हलकों में टिकट के दावेदार थे, वह अब कहीं नजर नहीं आते। नए और अमीर लोग आप में शामिल हो रहे हैं और आप किसी भी तरह से आम आदमी पार्टी नहीं रही, अब तो वहां जो भी ज्यादा बोली देगा, टिकट उसे मिलेगी।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।