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ये करती है महिलाओं पर तीन गुना अधिक मार

मल्टीपल स्कलेरोसिस एक ऐसी ही बीमारी है जो महिलाओं को पुरुषों से तीन गुना अधिक प्रभावित करती है। जो लोग ऊंचे स्थानों पर रहते हैं, उनमें यह बीमारी ज्यादा मार करती है।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Sat, 04 Jun 2016 11:51 PM (IST)
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जागरण संवाददाता, चंडीगढ़ : क्या कोई ऐसी बीमारी है जो पुरुषों के बजाय महिलाओं पर अधिक मार करती है। जी हां मल्टीपल स्कलेरोसिस एक ऐसी ही बीमारी है जो महिलाओं को पुरुषों से तीन गुना अधिक प्रभावित करती है। जो लोग ऊंचे स्थानों यानी हाई एल्टीट्यूड या यूं कहें की भूमध्य रेखा से दूरी पर रहते हैं, उनमें यह बीमारी ज्यादा मार करती है।

ऐसा माना जाता है कि धूप न लगने की वजह से इन लोगों में यह बीमारी पनपती है। विटामीन डी की कमी भी इसके होने का एक कारण माना जाता है। धूम्रपान करने वालों में भी इसकी अधिक मार देखी गई है। कई जेनेटिक फेक्टर और तनाव भी बीमारी होने का प्रमुख कारण हैं।
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क्या है बीमारी
पीजीआइ में शुक्रवार को हुई पत्रकारवार्ता में डॉ. धीरज खुराना, डॉ. मनीष मोदी और डॉ. मनोज गोयल ने बताया कि मल्टीपल स्कलेरोसिस सेंट्रल नर्वस सिस्टम की बीमारी है जो दिमाग, ऑप्टिक नर्व और स्पाइनल कोर्ड को प्रभावित करती हैं जिससे ब्रेन और रीढ़ की हड्डी दोनों डैमेज होने लगते हैं। सेंट्रल नर्वस सिस्टम की नसों के इर्द-गिर्द लिपटी कवरिंग जिसे माइलिन कहा जाता है को यह बीमारी नष्ट कर देती है। कई नसों को भी पूरी तरह से ध्वस्त कर देती है। 20 से 40 साल की उम्र के श स इस बीमारी से ज्यादा प्रभावित होते हैं।
पश्चिम में बीमारी से ज्यादा लोग पीडि़त हैं। यहां बीमारी होने की दर प्रति लाख के पीछे 50 से 100 लोगों में यह मार करती है। भारत में प्रति लाख के पीछे 9 से 10 लोगों में यह होती है। ऐसा माना जाता है कि फिलहाल भारत में इस बीमारी के 10 लाख मरीज हैं। यह एक आटो इ यून डिजीज है जिसमें शरीर के अपने ही हिस्सों को खत्म करने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। एमएस में माइलिन को बाहरी तत्व मान कर शरीर इसे समाप्त करना शुरू कर देता है। सेंट्रल नर्वस सिस्टम हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है। बीमारी इसे नष्ट कर देती है तो पूरे शरीर की संचार व्यवस्था जिससे आपसी क यूनिकेशन होता है नष्ट हो जाती है। इससे कई शारीरिक, मेंटल व मानसिक गतिरोध पैदा हो जाते हैं।
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ये हैं बीमारी के लक्षण

-दोहरा दिखाई देना।
-एक आंख से दिखाई न देना।
-मांसपेशियों में शिथिलता।
-शरीर में सनसनाहट न होना।

-शरीर के तालमेल में कमी।
-स्थायी न्यूरोलॉजिकल समस्याएं।
-शौच व पेशाब करने में परेशानी।
-शरीर का एक तरफ का हिस्सा कम काम करने लगता है।

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इस साल 20 हजार लोग गंवा चुके हैं अपनी जान

वर्ष 2013 के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में इस बीमारी के 2.3 मिलियन मरीज थे। इस साल में बीमारी से 20 हजार लोग मारे गए जबकि इसकी तुलना में 1990 की बात करें तो महज 12 हजार लोगों के ही इससे मरने की सूचना थी। इस बीमारी में जो दवाएं दी जाती हैं वे प्रभावी तो हैं लेकिन इनसे कई तरह की समस्याएं भी पेश आती हैं। फिजिकल थेरेपी से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। बीमारी का जितनी जल्दी इलाज होगा उतना बेहतर रिजल्ट आएगा।

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लोगों को किया जाएगा जागरूक

पीजीआइ एमएस के मरीजों की जिंदगी बेहतर करने के प्रयासों के तहत 5 जून को न्यूरोलॉजी विभाग में लोगों को जागरूक करेगा। उनकी जरूरतों व समस्याओं के बारे बताया जाएगा। विभाग ने इसी साल एमएस क्लीनिक भी लांच किया है। जनवरी 2016 से बीमारी के 34 मरीज रजिस्टर्ड हो चुके हैं। प्रति क्लीनिक चार से पांच मरीज यहां आते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट के साथ मनोविज्ञानी, फिजियोथेरेपिस्ट, आक्यूपेशनल थेरेपिस्ट और काउंसलर की इलाज में जरूरत पड़ती है।

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