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देसी घूंघट पर फिदा हुई विदेशी मेम

पेरिस की इनालको यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली मानव विज्ञानी 45 वर्षीय डॉ. लॉरेंस जहारा घूंघट पर शोध करने के लिए भारत आई हैं। वह दस भाषाओं की ज्ञाता हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Updated: Thu, 25 Aug 2016 05:22 PM (IST)
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जालंधर [राजेश भट्ट]। दस दिन पंजाब में क्या गुजारे, पेरिस की एक यूनिवर्सिटी की लेक्चरर पंजाब की दीवानी हो गईं। भारतीय संस्कृति की कद्रदान यह महिला लेक्चरर वैसे तो 14 बार भारत आ चुकी हैं, लेकिन इस बार प्रसिद्ध पर्यावरण प्रहरी संत बलबीर सिंह सींचेवाल से उन्होंने जब पंजाब और पंजाबियों का जिक्र सुना तो पहली बार पंजाब का रुख किया। वह पंजाबी लोगों की दरियादिली और पंजाबी जुबान की कायल हो गईं।

पेरिस की इनालको यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाली मानव विज्ञानी 45 वर्षीय डॉ. लॉरेंस जहारा विभिन्न विषयों को लेकर अलग-अलग देशों के लोगों पर शोध करती हैं। इस बार वह घूंघट पर शोध करने भारत आई हैं। उनका कहना है कि भारत में दो तरह के घूंघट हैं। एक तो लाज के लिए ओढ़ा जाता है, दूसरा परंपरा का हिस्सा बन चुका है। वह इस विषय पर किताब लिख रही हैं। अब तक वह दस से ज्यादा देशों में शोध कर चुकी हैं।

पेरिस की लेक्चरर डॉ. लॉरेंस जहारा, जोकि घूंघट पर शोध कर रही हैैं।

दस भाषाओं की जानकार लॉरेंस हिंदी में कहती हैं, कई देशों में घूमी हूं, पर भारत सबसे ज्यादा पसंद आया। यहां कुछ ऐसा है जो मुझे जोड़े हुए है। चार साल केरल में रही, चार साल राजस्थान में। इस बार बस से लखनऊ जा रही थी, साथ वाली सीट पर संत सीचेवाल थे। उनसे बातें हुईं तो उन्होंने पंजाब, पंजाबियत और सिख पंथ के बारे में बताया। संत सीचेवाल से पंजाब के बारे में जो सुना, उसने तो मुझे जैसे अपनी ओर खींच लिया। सोचा, देखूं तो क्या सच में पंजाब उतना ही महान और वीरों का प्रदेश है, जैसा यह संत बता रहे हैं।

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लॉरेंस कहती हैं, पंजाब पहुंचने पर संत सीचेवाल की निर्मल कुटिया में संगत ने इतना प्यार दिया कि मैं भावुक हो गई। पंजाब के बारे में जो सुना था, उससे कहीं बढ़कर देखा। दो दिन के लिए आई थी, दस दिन से यहीं हूं। लोगों से मिलीं, पंजाबी सभ्याचार को जाना, कई जगहें घूमीं। वह संत सीचेवाल और उनके अनुयायी हरविंदर का आभार जताना नहीं भूलती, जिनकी वजह से वह पंजाब आईं। वीरवार को लॉरेंस फ्रांस लौट जाएंगी।

पंजाब के लोग रब से जुड़े हैं

लॉरेंस का कहना है कि पंजाब अन्य देशों और अन्य राज्यों से बेहद अलग है। क्यों अलग है, यह बयां नहीं कर सकती। यहां के लोग दरियादिल हैं, भावुक हैं। इतने देशों में घूम चुकी हूं, पर जो शांति अमृतसर के श्री दरबार साहिब में मिली वो कहीं नहीं मिल पाई। पंजाब के लोग रब से सीधे जुड़े हैं। यहां का खाना, यहां की भाषा, यहां का कल्चर सब अद्भुत है।

कीर्तन सुनते ही रोने लगती हैं डॉ. लॉरेंस

डॉ. लॉरेंस का जन्म ईसाई परिवार में हुआ। पति मुस्लिम होने के कारण बाद में इस्लाम धर्म कबूल कर लिया, लेकिन मंदिरों और गुरुद्वारों में कीर्तन सुनते ही उनके आंसू निकलने लगते हैं और वह घंटों खामोश बैठे कीर्तन सुनती रहती हैं।

मक्की की रोटी की दीवानी

लॉरेंस कई भारतीय पकवान बनाने में दक्ष है। कढ़ी-चावल, दाल सब्जी बना लेती हैं, पर मक्की की रोटी उसकी फेवरेट है। वह मक्की की रोटी बहुत बढिय़ा बना लेती हैं।

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