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हीरो साइकिल के चेयरमैन ओमप्रकाश मुंजाल का निधन

प्रसिद्ध उद्यमी व साइकिल किंग आेम प्रकाश मुंजाल का बृहस्‍पतिवार सुबह निधन हो गया। 88 वर्षीय मुंजाल ने सुबह 10.35 बजे अंतिम सांस ली। वह हीरो साइकिल के चेयरमैन थे और काफी दिनों से अस्वस्थ थे। वह डीएमसी (दयानंद मेडिकल कालेज) में दाखिल थे।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Fri, 14 Aug 2015 10:41 AM (IST)

लुधियाना। प्रसिद्ध उद्यमी व साइकिल किंग आेम प्रकाश मुंजाल का बृहस्पतिवार सुबह निधन हो गया। 88 वर्षीय मुंजाल ने सुबह 10.35 बजे अंतिम सांस ली। वह हीरो साइकिल के चेयरमैन थे और काफी दिनों से अस्वस्थ थे। वह डीएमसी (दयानंद मेडिकल कालेज) में दाखिल थे। अभी उनके पुत्र पंकज मुंजाल कंपनी का कारोबार संभाल रहे थे।

यादों के झरोखे से... एक कार्यक्रम के दौरान ओपी मुंजाल।

उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को मॉडल टाउन एक्सटेशन श्मशान घाट में शाम 4.30 बजे होगा। उनके परिवार में एक बेटा पंकज मुंजाल और चार बेटियों हैं। उनके निधन पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, उद्यमियों व संगठनों ने शोक जताया है। मुंजाल ने देश में साइकिल इंडस्ट्री को नई ऊंचाइयां दीं। उनकी कंपनी हीरो रोजाना करीब 19 हजार साइकिलें बनाती है। उनकी पत्नी का भी कुछ महीने पहले देहांत हो गया था।

यादों के झरोख्ो से...परिवार व हीरो साइकिल की टीम के साथ ओपी मुंजाल।

ऐसे किया था कारोबार शुरू
ओम प्रकाश मुंजाल का जन्म 26 अगस्त 1928 को कमालिया (अब पाकिस्तान) में हुआ था। बाद में उनका परिवार अमृतसर आ गया। उन्हाेंने करीब 16-17 साल की उम्र में कारोबार शुरू कर दिया था। उन्होंने 1944 में अमृतसर में अपने तीन भाइयों बृजमोहन लाल मुंजाल, दयानंद मुंजाल और सत्यानंद मुंजाल के साथ साइकिल स्पेयर पार्ट्स का कारोबार शुरू किया।

भारत का बंटवारा हुआ तो इसका बुरा असर अमृतसर में उनके कारोबार पर पड़ा। इसके बाद ओपी मुंजाल भाइयों के साथ लुधियाना आ गए। यहां उन्हाेंने हीरो साइकिल कंपनी की स्थापना की जो बाद में देश में साइकिल उद्योग का प्रतीक बन गई।

बैंक से कर्ज लेकर की थी कंपनी की शुरूआत
उन्होंने 1956 में बैंक से कर्ज लेकर 50,000 रुपये की पूंजी के साथ हीरो साइकिल कंपनी की शुरूआत की। कंपनी ने लुधियाना में साइकिल पार्ट बनाने की यूनिट लगाई और उसी साल पूरी साइकिल बनानी भी शुरू कर दी। उस समय रोजाना 25 साइकिलें ही बन पाती थीं।

तमाम कठिनाइयोें के बावजूद मुंजाल बधुंओं ने हार नहीं मानी और कंपनी व साइकिल उद्योग को नया रूप और रंगत देने के प्रयास में जुटे रहे। उस समय मुंजाल बंधु टायर-ट्यूब लेने लुधियाना से जालंधर जाते थे और तब भी उन्हें अपनी जरूरत के मुताबिक यह नहीं मिल पाते थे। इसके अलावा चेन, हब और फ्री व्हील के लिए भी पूरी तरह से आयात पर निर्भर रहना पड़ता था।

यादों के झरोखे से... पुत्र पंकज के साथ ओपी मुंजाल।

उनकी मेहनत अौर समर्पण ने रंग लाना श्ाुरू किया और हीरो का नाम जैसे साइकिल की पहचान बन गई। 1980 में हीरो देश की सबसे बड़ी साइकिल कंपनी बन गई। इतना ही नहीं 1980 के दशक में यह दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बन गई। इस उपलब्धि के लिए उनका नाम 1986 में विश्व रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज किया गया।

उपलब्धियों के लिए मिले कई अवार्ड व सम्मान
ओपी मुुंजाल को उनकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले। पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन, वीवी गिरि, जैल सिंह और एपीजे अब्दुल कलाम ने भी उन्हें सम्मानित किया। उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रेड एवं इंडस्ट्रीयल डेवल्पमेंट ने उद्योग पत्र अवार्ड दिया। बिजनेस में बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें पंजाब रत्न अवार्ड मिला। तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 1990 में इंदिरा गांधी नेशनल यूनिटी अवार्ड से नवाजा। निर्यात बढ़ाने और छोटे औद्योगिक यूनिट स्थापित करने में सहयोग के लिए भी उन्हें कई पुरस्कार मिले। ओपी मुंजाल सामाजिक रूप से भी काफी सक्रिय रहे और समाज सेवा में भी सदैव तत्पर रहते थे।

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मुंजाल का जाना बहुत बड़ा घाटा
' ओपी मुंजाल का जाना मेरे लिए निजी रूप से बहुत बड़ा घाट है, लेकिन मुझे यकीन है कि पंजाब के इस महान उद्यमी का जीवन आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणास्रोत होगा।

-प्रकाश सिंह बादल, मुख्यमंत्री, पंजाब।

'' मुंजाल का निधन उद्योग व खासकर साइकिल उद्योग को बहुत बड़ा झटका है, जिसको उन्होंने अपनी सारी जिंदगी लगाकर खड़ा किया। वह बहु प्रतिभाशाली व्यक्तित्व के मालिक थे, जो देश के प्रमुख उद्योगपतियों में एक होने के साथ ही साहित्य के विद्वान भी थे।

-कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री।

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''जीवन की इतनी ऊंचाइयों को छूने के साथ-साथ एक अच्छे इंसान की कल्पना करना आज के समय में शायद थोड़ा अचंभे वाला है, लेकिन ओम प्रकाश मुंजाल को मैैं 50 साल से जानता हूं। वह एक सफल उद्योगपति होने के साथ-साथ एक अच्छे भी इंसान थे।
-- सुशील वोहरा, उद्योगपत।

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^^40 साल से मैैं ओम प्रकाश मुंजाल का दोस्त हूं। वह अदीब इंटरनेशनल के फाउंडर सदस्य थे, अब भी चीफ पैटर्न थे। साहिर लुधियानवी को लुधियाना में जिंदा रखने के लिए इनका योगदान अहम रहा। हर तरह से उनकी याद को ताजा रखने में सहयोग करते रहे। उन्होंने उर्दू साहित्य को बढ़ाया। हीरो डायरी में हर साल हर पेज पर 150 के करीब शायरी लिखते थे। उनकी डायरी हर साल मैं कंपाइल करता था। संस्कृति, शिक्षा और साहित्य व सामाजिक जीवन में भी उनकी कमी खलेगी।
-- केवल धीर, प्रसिद्ध साहित्यकार व चेयरमैन अदीब इंटरनेशनल।

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''ओम प्रकाश मुंजाल एक अलग छवि के इंसान थे, जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। वह अपने अंतिम समय तक समय के पांबद रहे और इसके लिए सबको जागरूक करते रहे। पिछले लंबे समय से अस्वस्थ रहने के बावजूद वह रोजाना समय से तैयार होकर आफिस जाते और समय से घर आते।

-पदम औल, एमडी, अप्पू इंटरनेशनल।

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