लुधियाना की एक महिला की दुर्लभ ब्लड ग्रुप उसकी जान के लिए खतरा बन गया है। वह आंत सिकुड़न् की गंभीर बीमारी से ग्रस्त है और उसका ग्रुप का रक्त नहीं मिलने से उसका आपरेशन नहीं हो पा रहा है। उसका रक्त 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' यानि 'एचएच' ग्रुप का है।
By Sunil Kumar JhaEdited By: Updated: Thu, 04 Feb 2016 10:08 AM (IST)
रुपनगर, [अजय अग्निहोत्री]। यदि अापका रक्त भी इस खास ग्रुप है तो आप 28 साल की पुष्पा की जान बचा सकते हैं। देखने में पुष्पा दूसरी महिलाओं की तरह ही सामान्य है, लेकिन उसका खून काफी जुदा है और यही उसकी जिंदगी के लिए खतरा बन गया है। दरअसल, पुष्पा का रक्त 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप' यानि 'एचएच' ग्रुप से है। इस ग्रुप का रक्त आसानी से नहीं मिलता है। यही वजह है कि आंत में सिकुडऩ की गंभीर बीमारी से ग्रस्त पुष्पा मौत से जूझ रही है। पूरे मामले में दुखद और शर्मनाक बात यह है कि उसकी इस बीमारी की चपेट में आने का पता चलने पर ससुराल वालों ने उससे नाता ही तोड़ लिया।
डोनर नहीं मिलने की वजह से बॉम्बे ब्लड ग्रुप की पुष्पा की आंत के आपरेशन में हो रही है देरी 'बॉम्बे ब्लड ग्रुप हजारों लोगों में से किसी एक में पाया जाता है और पुष्पा की आंत के आपरेशन के लिए ढूंढने पर भी रूपनगर जिले में उसके ग्रुप का ब्लड डोनर नहीं मिल पा रहा है। रूपनगर के सदाव्रत क्षेत्र के रहने वाले काला सिंह की बेटी पुष्पा के लिए इस खास ब्लड ग्रुप का होने का दर्द शारीरिक ही नहीं भावनात्मक रूप से भी उठा रही है। ससुराल वालों को जब उसके इस रोग से पीडि़त होने और उसका ब्लड ग्रुप साख होने से इलाज में दिक्कत का पता चला तो उन्होंने उससे नाता ही तोड़ लिया।बीमारी का पता चला तो ससुराल ने भी नाता तोड़ा, पति ने दिया तलाक
पहले पुष्पा यहां प्राइवेट अस्पताल में दाखिल थी लेकिन ब्लड ग्रुप की समस्या की वजह से उसका आंत का आपरेशन नहीं हो पाया। जब ब्लड बैंक रूपनगर के डाक्टर ने उन्हें इस बाबत समझाया तो पहले तो वे समझ ही नहीं पाए, अब जब उन्हें जानकारी हुई तो बस इस ग्रुप के डोनर की तलाश में खाक छान रहे हैं। पुष्पा के पिता काला सिंह के मुताबिक वह तो कबाड़ बेचकर परिवार का पालन पोषण कर रहे हैैं। अब तो भगवान का ही भरोसा हे कि बेटी की जान किसी तरह बच जाए। पुष्पा के ताया नछतर सिंह ने बताया कि चार साल पहले पुष्पा के माता-पिता ने उसकी शादी बड़े चाव से कुराली में की थी, लेकिन जब उसकी बीमारी का पता चला और ब्लड ग्रुप नहीं मिला तो ससुराल परिवार ने उससे नाता तोड़ लिया। पति ने पुष्पा को तलाक दे दिया है।
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क्यों कहते हैैं बॉम्बे ग्रुप
बॉम्बे ब्लड ग्रुप (एचएच) की खोज 1952 में मुंबई के एक हॉस्पिटल में डा. वाइएम भेंडे ने की थी। पहली बार बाम्बे में पाए जाने के कारण इसका नाम ही बॉम्बे ब्लड ग्रुप रख दिया गया। भारत में 10 हजार लोगों में से एक में यह ब्लड ग्रुप पाया जाता है, जबकि यूरोप में 10 लाख लोगों में से एक व्यक्ति में यह ब्लड ग्रुप होता है।
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रिवर्स टेस्टिंग से स्पष्ट होता है बॉम्बे ग्रुप: डॉ.गुरविेंदर रूपनगर की जिला ट्रांसफ्यूजन आफिसर डॉ.गुरविंदर कौर बताती हैं कि बॉम्बे ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति में एच एंटीजन नहीं होता। यानी एच एंटीजन जोकि मदर एंटीजन भी कहा जाता है, न होने पर रेड ब्लड सेल (आरबीसी) कोई ग्रुप ए, बी या ओ ग्रुप नहीं बनाता। आम तौर पर ब्लड टेस्िटंग में ऐसे व्यक्ति का ओ ग्रुप ही पता चलता है लेकिन जब रिवर्स टेस्टिंग की जाती है तो पता चलता है कि ये बॉम्बे ब्लड ग्रुप है।-------------वेबसाइट है इस ब्लड ग्रुप वालों की एकजुटता के लिए संकल्प इंडिया फाउंडेशन की तरफ से बांबे ब्लड ग्रुप कम्यूनिटी को एक मंच पर इकट्ठा करने के लिए WWW.sankalpindia.net साइट भी चलाई जा रही है ताकि ऐसे ब्लड ग्रुप वाले लोग पहचान में आ सकें तथा उन्हें आसानी से ब्लड की जरूरत पडऩे ब्लड उपलब्ध हो सके।
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