Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस का 'बाप' को समर्थन, फिर भी चुनावी मैदान में प्रत्याशी; बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर रोचक मुकाबला
लोकसभा चुनाव में राजस्थान के आदिवासी इलाके की बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर मुकाबला काफी रोचक है। यह सीट चर्चा का विषय बनी हुई है क्योंकि यहां कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) में गठबंधन हो गया। कांग्रेस ने इस सीट पर चुनाव लड़ रहे बाप के राजकुमार रोत को समर्थन दे दिया लेकिन फिर भी कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।
नरेंद्र शर्मा, जागरण, जयपुर। लोकसभा चुनाव में राजस्थान के आदिवासी इलाके की बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर मुकाबला काफी रोचक है। यह सीट चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि यहां कांग्रेस और भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) में गठबंधन हो गया। कांग्रेस ने इस सीट पर चुनाव लड़ रहे बाप के राजकुमार रोत को समर्थन दे दिया, लेकिन फिर भी कांग्रेस के प्रत्याशी चुनाव लड़ रहे हैं।
दरअसल, गठबंधन को लेकर कांग्रेस और बाप के बीच नामांकन दाखिल करने को लेकर अंतिम दिन तक खींचतान चलती रही। इस खींचतान के बीच कांग्रेस ने अपने कार्यकर्ता अरविंद डामोर से नामांकन-पत्र दाखिल करवा दिया। नाम वापसी से एक दिन पहले कांग्रेस और बाप में गठबंधन हो गया। कांग्रेस नेतृत्व ने डामोर को नाम वापसी के निर्देश दिए, लेकिन डामोर गायब हो गए।
कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत डामोर को तलाशते रहे, लेकिन वह अपना मोबाइल बंद कर के गायब हो गए। दो दिन बाद सामने आए और खुद को कांग्रेस का अधिकारिक प्रत्याशी बताते हुए चुनाव लड़ने की बात कही।
इस सीट के चर्चित होने का दूसरा बड़ा कारण यह है कि गहलोत के विश्वस्त और पार्टी की सर्वोच्च नीति निर्धारण करने वाली कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य महेंद्र मालवीया अपनी जिला प्रमुख पत्नी रेशम व समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने उन्हे टिकट भी दे दिया। करीब दो दशक तक आदिवासी क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता रहे मालवीया के अचानक भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस को संभलने का मौका ही नहीं मिला।
दोनों ही पार्टियों में असंतोष
मालवीया को टिकट देने से भाजपा के पुराने नेता नाराज हैं। इन नेताओं का तर्क है कि टिकट मिलने से कुछ दिन पहले तक मालवीया ने भाजपा को भला-बुरा कहा। भाजपा के स्थानीय नेताओं से उनके रिश्ते बेहद खराब रहे। ऐसे में अब वह कैसे मालवीया का सहयोग करें। पीएम नरेन्द्र मोदी की सभा के बाद कार्यकर्ताओं में तो उत्साह नजर आ रहा है, लेकिन नेता अब भी मन से मालवीया के साथ नहीं है।
उधर, कांग्रेस के स्थानीय नेता बाप से गठबंधन के पक्ष में नहीं है। पूर्व सांसद ताराचंद मीणा व पूर्व मंत्री अर्जुन बामनिया ने पार्टी नेतृत्व केसमक्ष नाराजगी भी जताई। लेकिन कांग्रेस नेतृत्व ने गठबंधन धर्म का पालन करने के लिए शांत रहने के निर्देश दिए। ऐसे में अब कांग्रेस के नेता बाप प्रत्याशी के पक्ष में खुलकर काम नहीं कर पा रहे हैं।
आदिवासियों को लुभा रहा बाप का मुद्दा
बाप जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक का मुदद उठाकर प्रचार अभियान में जुटी है। यह मुददा आदिवासियों को बाप के पक्ष में लुभा रहा है। करीब चार महीने पहले विधानसभा चुनाव से पहले बनी बाप के बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र में तीन विधायक हैं।
आदिवासी बहुत दो दर्जन विधानसभा सीटों पर बाप का प्रभाव है। युवा बाप के साथ लगातार जुड़ रहे हैं। उधर बाप का मुकाबला करने के लिए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का संगठन वनवासी कल्याण परिषद भी सक्रिय है। वनवासी कल्याण परिषद आदिवासियों को भाजपा के पक्ष में करने की कोशिश में जुटी है।
यह है जातिगत गणित
कुल 22 लाख मतदाताओं में आदिवासी (एसटी)15 लाख, ओबीसी तीन लाख 25हजार, सामान्य एक लाख 80 हजार, अनुसूचित जाति 90 हजार एवं अन्य एक लाख दस हजार। करीब 70 फीसदी वोट आदिवासियों के हैं। भाजपा सामान्य वर्ग और एससी के साथ ही ओबीसी को साधने में जुटी है। यह माना जा रहा है कि आदिवासी वोट में ज्यादा हिस्सा बाप लेगी,लेकिन मालवीया भी अपनी पुरानी पकड़ के कारण समर्थन जुटा लेंगे।