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मन की खूबसूरती ज्यादा जरूरी है: कोयल

दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाली कोयल राना वर्ष 2008 में मिस टीन इंडिया, वर्ष 2009 में मिस यूनिवर्सल टीन और फेमिना मिस इंडिया दिल्ली का खिताब जीत चुकी हैं। कोयल से बातचीत के अंश...

By deepali groverEdited By: Updated: Sat, 29 Nov 2014 02:23 PM (IST)
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दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई करने वाली कोयल राना वर्ष 2008 में मिस टीन इंडिया, वर्ष 2009 में मिस यूनिवर्सल टीन और फेमिना मिस इंडिया दिल्ली का खिताब जीत चुकी हैं। कोयल से बातचीत के अंश...

आप मिस वल्र्ड प्रतियोगिता में भाग ले रही हैं? कैसा महसूस कर रही हैं?

मेरे लिए गर्व और सम्मान की बात है कि मैं दुनिया के इतने बड़े मंच पर भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रही हूं। बहुत उत्साहित हूं मैं। मेरी तैयारी पूरी है। कोई कसर बाकी नहीं रखना चाहती। अपना सौ प्रतिशत देकर भारत के लिए विश्व सुंदरी का ताज लाने के लिए कमर कस ली है मैंने।

आपकी नजर में खूबसूरती क्या है?

खूबसूरती... यह शब्द सुनते ही हर किसी के मन में सबसे पहले सुंदर नैन-नक्श और तराशी हुई कद-काठी का ख्याल आता है, पर जेहन की खूबसूरती सब पर भारी है...। वास्तव में बाहरी सुंदरता तब तक व्यर्थ है, जब तक हम खुद को दिमागी तौर पर नहीं संवार पाते। जो लोग भीतर से खूबसूरत होते हैं, उन्हीं में दुनिया बदलने की ताकत होती है, क्योंकि वे खुद के दायरे से आजाद होकर हर वक्त बस अपने आसपास उजाला फैलाने के बारे में सोचते रहते हैं...। यदि आप सचमुच खूबसूरत हैं तो लोग खुद ब खुद आपकी ओर खिंचे चले आएंगे। मेरे ख्याल से खूबसूरती की यही एक सटीक परिभाषा हो सकती है।

इस प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के बारे में पहली बार कब सोचा था?

बहुत छोटी थी तब इसका ख्याल नहीं आया था। आम लड़कियों की तरह ही था सब कुछ। बाद में मॉडलिंग की, पर सोशल कंसर्न शुरू से रहा है। सामाजिक मुद्दों पर सोचना, कुछ करने की चाहत है, जिसकी वजह से मैंने अपनी एक फ्रेेंड के साथ मिलकर अपना एनजीओ शुरू किया। काम अभी शुरुआती दौर में ही था, पर देखा कि लोग मुझे जानने लगे हैं। एक दिन कोई बच्ची मेरे पास मदद मांगने आई तो उस दिन लगा कि सचमुच मैं कुछ ऐसा कर रही हूं, जो मायने रखता है। ऐसा लगा जब एक छोटी सी संस्था की बदौलत लोग मुझे जानते हैं, मैं उनसे जुड़ सकती हूं, उनके लिए कुछ कर सकती हूं तो मिस इंडिया और मिस वल्र्ड जैसा प्लेटफॉर्म सूटेबल है मेरे लिए।

परिवार ने कितना साथ दिया?

मेरा परिवार भी एक आम भारतीय परिवार की तरह ही है। मैं एक कंजरवेटिव सोच वाले परिवार और सोसायटी में पली-बढ़ी हूं। इसके बावजूद मेरे पैरेंट्स ने पूरा साथ दिया। उनके बिना तो मैं एक कदम आगे नहीं बढ़ सकती थी। पापा का साथ और मां की परवाह ही है कि मैं यहां तक पहुंची हूं। पापा ने किस तरह के समझौते किए हैं, कितनी परेशानियां झेली हैं, यह हर वो आम मां-बाप समझ सकते हैं, जो बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए अनुभव करते हैं।

मध्यमवर्गीय परिवार की लड़कियां भी नए मुकाम तय कर रही हैं?

हां, क्योंकि सोसायटी में उनके लिए जो सोच है, अब वह बदल रही है। इस बदलाव के लिए खुद लड़कियों का आत्मविश्वास और उनके अभिभावकों का भी योगदान है, जो परंपरागत चोले को छोड़ रहे हैं। अभिभावक समझने लगे हैं कि अब इस उड़ान को रोकना मुश्किल है।

एक स्त्री में कौन से गुण होना ज्यादा जरूरी मानती हैं आप?

सबसे जरूरी गुणों में से तीन को महत्वपूर्ण मानती हूं मैं। ये हैं संतुलन साधने की क्षमता, विनम्रता और आत्मविश्वास।

जो लड़कियां इस फील्ड में आना चाहती हैं, उनके लिए क्या सुझाव देना चाहेंगी?

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आप जैसे हैं, खुद को वैसे ही स्वीकार करें। यदि हम खुद को नहीं प्यार करेंगे, उसे नहीं समझेंगे तो सारी तैयारी बेकार है। ईमानदारी जरूरी है, पर अपनी छवि को लेकर या अपने शारीरिक कमियों को देखकर ज्यादा आलोचनात्मक रवैया न रखें। अपनी कमियों को कैसे कम या खत्म किया सकता है, इस ओर ध्यान दें और इसमें कोई लापरवाही न बरतें। स्वास्थ्य के प्रति सजग होना भी जरूरी है। अपने सामाजिक सरोकारों को समझें। समाज के लिए कुछ करने का न केवल जज्बा रखें, बल्कि खुद को इस जिम्मेदारी से जोड़ने का प्रयास भी करें। दरअसल, ब्यूटी कंटेस्ट में आना ही मकसद नहीं होना चाहिए, बल्कि यह एक बड़ा फैसला है, अहम् जिम्मेदारी है, यह समझना भी बेहद जरूरी है।

आपको सबसे ज्यादा सुकून कब महसूस होता है?

ऐसा पल तभी आता है, जब मैं मेडिटेशन करती हूं। इस दौरान पूरी दुनिया एक तरफ और मैं खुद के साथ। इस दौरान समय का पता ही नहीं चलता। खो जाती हूं खुद में। खुद से बात करना सबसे ज्यादा सुकून भरा क्षण होता है, जहां बाहर का शोर, भीड़भाड़, बेतरतीबी के लिए कोई जगह नहीं होती।

क्या भीड़-भाड़ पसंद नहीं?

नहीं, ऐसी बात नहीं है, पर कहीं न कहीं हम भीड़ में गुम होकर खुद से दूर हो जाते हैं। इन दिनों शायद इसी वजह से जिसे देखिए वही परेशान है। स्ट्रेस हावी है। मुझे इसका एक ही इलाज नजर आता है कि हमें खुद से बात करने का वक्त जरूर निकालना चाहिए।


टेक्नोसेवी हैं आप?

हां, लेकिन इतना भी नहीं कि टेक्नोलॉजी सवार हो जाए मेरे दिलो-दिमाग पर! मैं गैजेट प्रेमी तो हूं, पर क्रेजी बिल्कुल नहीं। टेक्नोलॉजी हमारी जरूरत है, इसे जरूरत भर ही समझती हूं मैं।

क्या यह सही है कि टेक्नोलॉजी ने रिश्तों में दूरियां पैदा की हैं?

टेक्नोलॉजी से यदि आपका मतलब मोबाइल फोन और सोशल नेटवर्किंग साइट्स से है तो मैं यह नहीं मानती। रिश्तों में दूरी या खराबी आने की वजह व्यक्तिगत समझ पर निर्भर है। इसके लिए टेक्नोलॉजी को बेजा दोषी ठहराया जा रहा है। आज पूरी दुनिया कनेक्ट है, हम ग्लोबल स्तर पर आपस में जुड़ चुके हैं। दुनिया के किसी कोने में कोई बात घटती है तो असर हम तक भी पहुंचता है, ये बड़ी बात है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स तो सोशल मूवमेंट का भी माध्यम बन चुका है, यह खराब कैसे हो सकता है!

मिस वल्र्ड जीत गईं तो अगला लक्ष्य क्या होगा?

मैंने जिस एनजीओ से अपनी प्रोफेशनल लाइफ की शुरुआत की है, उसे और आगे बढ़ाना चाहती हूं। इसके अलावा, फाइनेंस और बिजनेस स्टडीज की पढ़ाई की है तो बिजनेस वुमन के तौर पर भी एक विकल्प खुला है। भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कौन जानता है, पर इरादे बुलंद हों तो मंजिल भी जरूर मिलती है।

(सीमा झा)