Move to Jagran APP

लघुकथा: खुद को छोड़ दो

आश्रम के प्रधान साधू ने कहा जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे छोड़ दो। परमात्मा को पाना तो बहुत ही सरल है तो राजा ने यही किया और अपनी सारी सम्पति जो है वो गरीबों में बाँट दी।

By Babita kashyapEdited By: Updated: Thu, 03 Nov 2016 10:32 AM (IST)
एक राजा था उसने परमात्मा को खोजना चाहा। वह किसी आश्रम में गया तो उस आश्रम के प्रधान साधू ने कहा कि जो कुछ तुम्हारे पास है, उसे छोड़ दो। परमात्मा को पाना तो बहुत ही सरल है तो राजा ने यही किया और अपनी सारी सम्पति जो है वो गरीबों में बाँट दी। वह बिलकुल भिखारी बन गया लेकिन साधू ने उसे देखते हुए कहा कि, अरे तुम तो सभी कुछ अपने साथ लाये हो। राजा को कुछ भी समझ नहीं आया तो उसने कहा नहीं साधू ने आश्रम के सारे कूड़े करकट को फेंकने का काम उसे सौंपा। आश्रमवासियों को यह बड़ा कठोर लगा। किन्तु साधू ने कहा 'राजा अभी सत्य को पाने के लिए तैयार नहीं है और इसका तैयार होना तो बहुत जरुरी है।' कुछ दिन बीते आश्रमवासियों ने साधू से कहा कि 'अब तो राजा को उस कठोर काम से छुट्टी देने के लिए उसकी परीक्षा ले लें' साधू बोला अच्छा !

अगले दिन राजा कचरे की टोकरी सिर पर रखकर गाँव के बाहर कूड़ा फेंकने जा रहा था, तो रास्ते में एक आदमी उस से टकरा गया तो राजा बोला आज से पंद्रह दिन पहले तुम इतने अंधे नहीं थे। साधू को जब पता लगा तो उसने कहा 'मैंने कहा था न अभी समय नहीं आया है। वह अभी भी वही है। कुछ दिन बाद राजा को फिर से एक राही जो वहां से गुजर रहा था टकरा गया तो राजा ने इस बार कुछ नहीं कहा सिर्फ उसे देखा पर उससे कहा कुछ भी नहीं ,फिर भी आँखों ने जो कहना था कह दिया। साधू को जब पता लगा तो उसने कहा कि, सम्पति को छोडऩा कितना आसान है पर अपने आप को छोडऩा उतना ही मुश्किल। तीसरी बार फिर यही घटना हुई तो राजा ने रास्ते में बिखरे कूड़े को समेटा और ऐसे आगे बढ़ गया जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं हो।

उस दिन साधू ने कहा कि 'अब ये तैयार है 'जो खुद को छोड़ देता है वही प्रभु को पाने का असली हकदार होता है।

शिक्षा: हमारा जिदंगी में कुछ भी हासिल करने केलिए विनम्र और दयावान होना आवश्यक है।

लघुकथा: कर्मो का फल

साभार: गाइड 2 इंडिया