बीमारियों की जड़ है यह
थायरॉयड ग्लैंड में होने वाली मामूली सी गड़बड़ी की वजह से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं परेशान करने लगती हैं। क्यों होता है ऐसा और क्या है इसका समाधान, आइए जानते हैं सखी के साथ।
By Edited By: Updated: Mon, 03 Nov 2014 03:30 PM (IST)
अति व्यस्तता की वजह से ज्यादातर स्त्रियां सेहत के प्रति लापरवाह हो जाती हैं और वे थायरॉयड के लक्षणों को मामूली थकान समझकर अनदेखा कर देती हैं, पर ऐसा करना उचित नहीं है क्योंकि भविष्य में इससे कई स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस समस्या के बारे में बात करने से पहले यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर थायरॉयड है क्या और यह हमारी सेहत को किस तरह प्रभावित करता है।
क्या है थायरॉयड थायरॉयड ग्लैंड हमारे गले के निचले हिस्से में स्थित होता है। इससे खास तरह के हॉर्मोन टी-3, टी-4 और टीएसएच (थायरॉयड स्टिम्युलेटिंग हॉर्मोन) का स्राव होता है, जिसकी मात्रा के असंतुलन का हमारी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पडता है। शरीर की सभी कोशिकाएं सही ढंग से काम कर सकें, इसके लिए इन हॉर्मोस की जरूरत होती है। इसके अलावा मेटाबॉलिज्म की प्रक्रिया को नियंत्रित करने में भी टी-3 और टी-4 हॉर्मोन का बहुत बडा योगदान होता है। इसीलिए इनके सिक्रीशन में कमी या अधिकता का सीधा असर व्यक्ति की भूख, वजन, नींद और मनोदशा पर दिखाई देता है। क्यों होती है समस्या
आमतौर पर दो प्रकार की थायरॉयड संबंधी समस्याएं देखने को मिलती हैं। पहले प्रकार की समस्या को हाइपोथॉयरायडिज्म कहा जाता है। इस में थॉयरायड ग्लैंड धीमी गति से काम करने लगता है और यह शरीर के लिए आवश्यक हॉर्मोन टी-3, टी-4 का निर्माण नहीं कर पाता, लेकिन शरीर में टीएसएच का स्तर बढ जाता है। दूसरी ओर हाइपर थायरॉयडिज्म की स्थिति में थॉयरायड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है। इससे टी-3 और टी-4 हॉर्मोन अधिक मात्रा में निकल कर रक्त में घुलनशील हो जाता है और टीएसएच का स्तर कम हो जाता है। अब तक हुए रिसर्च में यह पाया गया है कि किसी भी देश की कुल आबादी में से 4 से 10 प्रतिशत लोगों को हाइपोथायरॉयडिज्म और मात्र 1 प्रतिशत लोगों को हाइपरथायरॉयडिज्म की समस्या होती है। ये दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए नुकसानदेह हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों को यह समस्या ज्यादा परेशान करती है। क्या है वजह
इस समस्या के सही कारणों के बारे में डॉक्टर और वैज्ञानिक अभी तक किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं क्योंकि यह सर्दी-जुकाम की तरह संक्रामक बीमारी नहीं है, न ही इसका संबंध खानपान, प्रदूषण और जीवनशैली आदि से है। चिकित्सा विज्ञान की शब्दावली में इसे ऑटो इम्यून डिजीज कहा जाता है। अर्थात थायरॉयड ग्लैंड से निकलने वाले टी-3, टी-4 हॉर्मोंस और टीएसएच हॉर्मोस के असंतुलन की वजह से शरीर के भीतर अपने आप इसके लक्षण पनपने लगते हैं। फिर भी इन कारणों से यह समस्या हो सकती है : - यह समस्या ज्यादातर आनुवंशिक कारणों से होती है। -कई बार ऐसा भी होता है कि जन्म के समय शिशु का थॉयरायड ग्लैंड अच्छी तरह विकसित नहीं होता या कुछ स्थितियों में इस ग्लैंड के विकसित होने के बावजूद इससे हॉर्मोन का स्राव नहीं होता। इस वजह से बच्चे में जन्मजात रूप से यह समस्या हो सकती है। -कुछ ऐसी एंटीबॉयोटिक और स्टीरॉयड दवाएं होती हैं, जिनके प्रभाव से भी थॉयरायड ग्लैंड से हॉर्मोन का स्राव रुक जाता है। इससे शरीर में हाइपोथायरॉडिज्म के लक्षण दिखने लगते हैं। हाइपो-थायरॉयडिज्म के लक्षण -एकाग्रता में कमी, व्यवहार में चिडचिडापन और उदासी -सर्दी में भी पसीना निकलना -अनावश्यक थकान एवं अनिद्रा -तेजी से वजन बढना -पीरियड में अनियमितता -कब्ज, रूखी त्वचा एवं बालों का तेजी से गिरना -मिसकैरेज या कंसीव न कर पाना -कोलेस्ट्रॉल बढाना -हृदय की कार्य क्षमता में कमी -शरीर और चेहरे पर सूजन बचाव एवं उपचार -अगर कोई समस्या न हो तो भी हर स्त्री को साल में एक बार थायरॉयड की जांच जरूर करवानी चाहिए। -अगर कभी आपको अपने भीतर ऐसा कोई भी लक्षण दिखाई दे तो हर छह माह के अंतराल पर थायरॉयड टेस्ट करवाने के बाद डॉक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवा का सेवन करें। इससे शरीर में हार्मोस का स्तर संतुलित रहता है। -कंसीव करने से पहले हर स्त्री को थायरॉयड की जांच करवा के उसके स्तर को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। गर्भावस्था में इसकी गडबडी से एनीमिया, मिसकैरेज, जन्म के बाद शिशु की मृत्यु और शिशु में जन्मजात मानसिक दुर्बलता की आशंका बनी रहती है। -जन्म के बाद तीसरे से पांचवें दिन के भीतर शिशु का थायरॉयड टेस्ट जरूर करवाना चाहिए। हाइपर-थायरॉयडिज्म के लक्षण -वजन घटना -तेजी से दिल धडकना -लूज मोशन -ज्यादा गर्मी लगना -हाथ-पैर कांपना -चिडचिडापन और अनावश्यक थकान -पीरियड में अनियमितता क्या है उपचार अगर किसी स्त्री को ऐसी समस्या हो तो डॉक्टर से सलाह के बाद नियमित रूप से दवाओं का सेवन करना चाहिए। अगर समस्या ज्यादा गंभीर हो तो उपचार के अंतिम विकल्प के रूप में आयोडीन थेरेपी का या सर्जरी का इस्तेमाल किया जाता है। चाहे हाइपो हो या हाइपरथायरॉयडिज्म दोनों ही स्थितियां सेहत के लिए बेहद नुकसानदेह साबित होती है। इसलिए नियमित जांच और दवाओं का सेवन बेहद जरूरी है। कुछ जरूरी बातें थायरॉयड की समस्या को लेकर लोगों में कई तरह की गलतफहमियां हैं। कुछ स्त्रियां अपने मोटापे के लिए सिर्फ थायरॉयड को जिम्मेदार मानती हैं, पर वास्तव में ऐसा नहीं है। हाइपोथायरॉयडिज्म की स्थिति में आमतौर पर 3 से 4 किलोग्राम वजन बढता है और थायरॉयड का स्तर सामान्य होने पर वजन भी सामान्य अवस्था में वापस लौट आता है। इसलिए अगर आपका वजन तेजी से बढ रहा हो तो इसके लिए थायरॉयड को दोषी मानकर मोटापे का नजरअंदाज न करें, बल्कि इस विषय में डॉक्टर से सलाह लेकर नियमित एक्सरसाइज और सही खानपान की मदद से बढते वजन को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। इसी तरह कुछ स्त्रियां साइड इफेक्ट के बारे में सोचकर दवाओं के सेवन से डरती हैं, पर सच्चाई यह है कि थायरॉयड की दवाओं का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता और शरीर में टी-3, टी-4 और टीएसएच हॉर्मोन का स्तर संतुलित रखने के लिए दवाओं का नियमित सेवन बेहद जरूरी है। कुछ स्त्रियां डॉक्टर से सलाह लिए बिना लगातार थायरॉयड की दवा का सेवन करती रहती हैं। ऐसा करना सेहत के लिए नुकसानदेह हो सकता है। जिन स्त्रियों को यह समस्या होती है, उन्हें हर छह माह के अंतराल पर थायरॉयड की जांच करवाने के बाद डॉक्टर को रिपोर्ट जरूर दिखानी चाहिए क्योंकि थायरॉयड के घटते-बढते स्तर को ध्यान में रखते हुए दवा लेने की सलाह दी जाती है। समस्या न होने पर ज्यादा पावर की दवा लेना सेहत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। यह सच है कि ज्यादातर स्त्रियों में इसके लक्षण दिखाई देते हैं, पर पुरुषों और बच्चों को भी यह समस्या हो सकती है। इसलिए उन्हें भी थायरॉयड की जांच जरूर करवानी चाहिए। (एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, फरीदाबाद की सीनियर इंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. मनीषा पांडे से बातचीत पर आधारित)