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खूबसूरत बंधन है शादी: असित-नीला मोदी

टीवी धारावाहिक 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के निर्माता हैं असित कुमार मोदी। उनकी हमसफर हैं नीला। 20 वर्ष पहले इनकी अरेंज्ड मैरिज हुई। ये मानते हैं कि समय के साथ शादी पर इनका भरोसा बढ़ा है। मिलें इस दंपती से।

By Edited By: Updated: Wed, 23 Sep 2015 03:50 PM (IST)
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टीवी धारावाहिक 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के निर्माता हैं असित कुमार मोदी। उनकी हमसफर हैं नीला। 20 वर्ष पहले इनकी अरेंज्ड मैरिज हुई। ये मानते हैं कि समय के साथ शादी पर इनका भरोसा बढा है। मिलें इस दंपती से।

थिएटर, प्रॉडक्शन मैनेजमेंट से लेकर निर्माता बनने तक की असित मोदी की कहानी बहुत प्रेरक है। 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा , 'प्यार में ट्विस्ट, 'कृष्णा बेन खाखरावाला, 'मेरी बीवी वंडरफुल, 'ये दुनिया है रंगीन व 'हम सब एक हैं जैसे धारावाहिकों के निर्माता हैं असित। उनकी हमसफर हैं नीला। शादी को बीस साल हो गए हैं। मिलें इस सहज-सरल दंपती से।

अपरिभाषित रहने दें

असित : शादी क्या है, वह जानना टेढी खीर है। जो जान लेगा, मोक्ष हासिल हो जाएगा उसे। शादी ज्िांदगी का अहम पडाव है। इससे गुज्ार कर ही इंसान रिश्तों की नई परिभाषाओं से वािकफ हो पाता है। यह ज्िांदगी को व्यवस्थित बनाने का काम करती है।

नीला : हमारी अरेंज्ड मैरिज है। मैं इनके बारे में कुछ नहीं जानती थी। हमारे ज्ामाने में इतना पता लगाने की ज्ारूरत नहीं समझी जाती थी। मुझे बताया गया कि लडका टीवी में कुछ करता है। मैं सोचती थी कि टीवी में क्या करता होगा? कहीं टीवी मकैनिक तो नहीं है? मैंने बस इतना कहा कि लडका ग्रेजुएट होना चाहिए। मुझे लगता है कि विवाह एक प्यारा सा बंधन है, जिसमें बंधना किसी को बुरा नहीं लगता।

अलग-अलग पृष्ठभूमि

असित : नीला का परिवार पूना से है। सौ-डेढ सौ साल पहले इनके वंशज गुजरात से पूना आए थे और सोने-चांदी के कारोबार में लग गए थे। इनके मायके में आज भी संयुक्त परिवार का चलन है। हमारी शादी 6 जनवरी 1995 को हुई थी। एक साल पहले सगाई हुई और उससे कुछ पहले देखने-दिखाने की रस्म। मज्ोदार था सब कुछ। इनके परिवार में 40-45 लोग थे। मैं एक जगह बुत सा बैठा रहा। इनके घर वाले एक-एक कर आते और चले जाते। तब ऐसा लग रहा था कि मैं किसी अजायबघर का प्राणी हूं।

नीला : असित के परिवार में सब नौकरीपेशा थे। पिता इंडियल ऑयल में थे। भाई भी नौकरी में थे। इसलिए जब इन्होंने थिएटर, टीवी व फिल्मों से जुडऩे की बात की तो सब अवाक थे। सिर्फ इनके पिता ने इनका साथ दिया।

असित : मैं ग्लैमर इंडस्ट्री में आ तो गया, मगर मन में शुरू से यही सोचा था कि शादी उसी लडकी से करूंगा जो घर संभाले। अपने फील्ड की लडकी से शादी करता तो वह घर पर भी काम की बातें करती। मैं घर में ऑफिस नहीं चाहता था और वहां थोडा सुकून चाहता था।

इस तरह बनी बात

नीला : इसीलिए इन्हें अपनी फील्ड की लडकी से प्यार नहीं हुआ। शायद एक वजह यह भी थी कि अपने फील्ड में कई रिश्ते टूटते देखे थे। इसके अलावा इनके परिवार में नौकरी से लोग जीवन चलाते थे। ये अपनी ज्िाद से ग्लैमर की दुनिया में आए थे। ऐसे में अगर इसी दुनिया की कोई लडकी घर में आती तो परिवार में घमासान मच जाता। लिहाज्ाा एक काम इन्होंने परिवार की मज्र्ाी से किया और वह था-शादी।

असित : मेरी मां पूना की हैं। वहां ननिहाल होने के चलते मुंबई से पूना आना-जाना लगा रहता था। मेरी ममेरी बहन ने मुझे इनके बारे में बताया। जब हम मिले तो लगा कि तालमेल बैठ सकता है। अलग पारिवारिक पृष्ठभूमि के बावजूद मैंने घर वालों से इनके यहां रिश्ता भेजने की बात की। पूना में सालों से रहने के कारण इन पर मराठी रंग चढ चुका था। हम ठहरे ठेठ गुजराती, लेकिन इनमें मुझे आदर्श गृहिणी के सारे लक्षण दिख गए थे।

नीला : हमारे परिवार वालों की तरफ से कोई बाधा नहीं थी। सगाई और शादी के बीच एक साल का अंतराल था, लिहाज्ाा लंबी कोर्टशिप चली। इसमें एक-दूसरे को जाना-समझा। सगाई के बाद तो मैं इनके घर आकर भी रहा करती थी। इनके छोटे भाई ने हमारा बहुत साथ दिया। उनकी मदद से ही मैं इनसे मिल पाती थी।

असित : उन दिनों मोबाइल फोन तो थे नहीं। लैंडलाइन था, इसलिए एक-दूसरे से फोन पर बातें करना भी कई बार संभव नहीं होता था। अगर ये फोन रिसीव नहीं कर पातीं तो दिक्कत होती थी। इस तरह लुका-छिपी का खेल खूब चला करता था।

अपेक्षाएं ज्य़ादा नहीं

नीला : इनकी सबसे बडी ख्ाूबी इनका मिलनसार व्यवहार है। ये बडों-छोटों को सम्मान देते हैं। इनमें लगातार आगे बढऩे की महत्वाकांक्षा है। वैसे मुझे भावी हमसफर से ख्ाास अपेक्षाएं नहीं थीं। बस इतना चाहती थी कि भावी पति अपने दम पर अलग पहचान बनाए। यह टेंपरामेंट इनमें तो था ही।

असित : इस मामले में मेरी अपेक्षाएं ज्य़ादा थीं। पहली ख्वाहिश यह थी कि वह मेरे परिवार को संभाल सकेें। मेरे माता-पिता के सम्मान में कोताही न बरतें। ये गुण इनमें थे, क्योंकि इनकी परवरिश ऐसे परिवार में हुई थी, जहांं 40-45 लोगों के साथ सामंजस्य बिठाना होता था। यहां मेरा छोटा सा परिवार था। इसे वह आसानी से संभाल सकती थीं। मैं बहुत फूडी हूं और संयोग से नीला को कुकिंग बहुत पसंद है। ये माहिर कुक हैं। तो मेरी यह ख्वाहिश भी पूरी हो गई।

नीला : मैं साधारण जीवन चाहती थी, बहुत ऊंचे सपने नहीं देखे थे। मैं बहुत कम में भी ख्ाुश रहने वालों में हूं। इनकी ख्ाास बात यह थी कि ये मेरा हद से ज्य़ादा ख्ायाल रखते थे। संघर्ष के दिनों में तंगहाली के बावजूद ये मुझे कोई कमी महसूस नहीं होने देते थे। वह फीलिंग ही मेरे लिए बडी बात थी। ये मुझे सदा पलकों पर बिठा कर रखना चाहते थे, जिसके लिए इन्होंने लगातार प्रयास किया।

शादी बाधा नहीं

असित : क्रिएटिव फील्ड में काम करने वालों के पास सदा वक्त की किल्लत रहती है। वे अलग धुन में रहते हैं। ऐसे में उनका व्यवहार आम पति-पत्नी जैसा नहीं हो सकता। उनकी नौ से पांच वाली जॉब नहीं होती। पार्टनर को समझदारी दिखानी पडती है। अपनी प्राथमिकताओं को समझने वाले व्यक्ति के संग ब्याह रचाएं तो रिश्ता बेहतर होगा और ज्िांदगी सुकून से चलेगी।

नीला : मैं नहीं मानती कि शादी करियर में बाधा होती है। अगर वैसा होता तो महात्मा गांधी बडे मकसद को अंजाम तक नहीं पहुंचा पाते। शादी के बाद आप और ज्य़ादा केंद्रित बनते हैं। ज्िाम्मेदारियां आपको ग्ालत कदम उठाने से रोकती हैं, जो अंतिम तौर पर आपके विकास में ही सहायक होता है।

शादी से डर की वजह

असित : आज की पीढी शादी को बोझ समझती है, इसलिए डरती है। पत्नी को वे मित्र कम ज्िाम्मेदारी ज्य़ादा समझते हैं।

नीला : मुझे तो ऐसी सोच रखने वाले लोगों पर तरस आता है। ऐसे लोग वफादारी निभाने में यकीन नहीं रखते। जो वफादारी नहीं निभा सकते, वे ब्याह न रचा कर भी कामयाब हो पाएंगे, उसकी कम उम्मीद है।

पसंद-नापसंद

नीला : हम दोनों आस्तिक हैं। धर्म में हमारी गहरी आस्था है। परिवार के प्रति समर्पित हैं। हमें घूमने-फिरने का शौक है। असित को ग्ाुस्सा जल्दी आता है। मीठी नोक-झोंक होती रहती है। लेकिन यह तो जीवन का हिस्सा है। वह न हो तो ज्िांदगी नीरस हो जाती है।

असित : नीला खाना बहुत बढिय़ा बनाती हैं, मगर मुझे तीखा खाना पसंद है, इन्हें मीठा। मैं ज्य़ादा महत्वाकांक्षी हूं। हर दिन के परफॉर्मेंस से खुद का आकलन करता हूं। नीला शांत हैं। मैं इनके विज्ान का मुरीद हूं। संघर्ष के दिनों से उबर कर मैंने जब कुछ पैसे कमा लिए तो बडा घर लेने की सोची। इन्होंने मुझसे कहा कि पहले ऑफिस लो, अपना कारोबार बढाओ, तब बडा घर ले लेना। 'तारक मेहता के शुरुआती दिनों में ज्य़ादा पैसे नहीं आ रहे थे। कम बजट में शो बनाना पडता था। एक समय आया कि लगा, शो बनाना ही बंद कर दूं, पर इन्होंने मुझे रोका। कहा कि शो इतना अच्छा बना दो कि सब इसके दीवाने हो जाएं। चैनल की आमदनी बढेगी तो तुम्हारी कमाई भी बढ जाएगी।

अमित कर्ण