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हर मुराद पूरी करती है भेलई माता

चंबा जिले के उपमंडल सलूणी से करीब 40 किलोमीटर दूर सुंदर पहाड़ी पर बसे छोटे से भलेई गांव के नाम से ही भद्रकाली माता के मंदिर का नाम भलेई पड़ा है। यह चंबा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है।

By Neeraj Kumar Azad Edited By: Updated: Tue, 12 Apr 2016 02:15 PM (IST)
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चंबा जिले के उपमंडल सलूणी से करीब 40 किलोमीटर दूर सुंदर पहाड़ी पर बसे छोटे से भलेई गांव के नाम से ही भद्रकाली माता के मंदिर का नाम भलेई पड़ा है। यह चंबा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। इस मंदिर में चंबा जिला व प्रदेश सहित जम्मू व पंजाब के श्रद्धालु माता के दर में शीश नवाने के लिए आते हैं। माता भद्रकाली में लोगों की असीम आस्था है। माना जाता है कि सच्चे दिल से मां के दरबार में आकर मांगी गई सभी मुरादें मां पूरी करती है। लोग माता भलेई को जागती ज्योत के नाम से भी पुकारते हैं। मंदिर के गृभ गृह में मां भलेई की जो मूर्ति स्थापित की गई है वह सैकड़ों वर्ष पूर्व भलेई के समीप भ्राण नामक स्थान पर एक बावड़ी में प्रकट हुई थी। चंबा रियासत के तत्कालीन राजा प्रताप ङ्क्षसह को माता भलेई ने स्वप्न में दर्शन देकर उन्हें चंबा ले जाने का आदेश दिया था। इस पर राजा ने भ्राण पहुंचकर विद्वानों के कहे अनुसार पूर्ण विधि-विधान से माता भद्रकाली भलेई की मूर्ति को सुंदर पालकी में विराजमान करवाकर चंबा की ओर प्रस्थान किया परंतु भलेई पहुंचने पर माता भलेई को यह स्थान भा गया और माता ने राजा को पुन: स्वप्न में दर्शन देकर इसी स्थान पर मंदिर बनवाने का आदेश दिया। माता के आदेश का राजा ने पालन किया और यहां मंदिर का निर्माण करवाया। पहले इस मंदिर में महिलाओं का आना वर्जित था परंतु बाद में माता भलेई ने ही अपनी एक भक्त को स्वप्न में दर्शन देकर महिलाओं को भी मंदिर में आकर दर्शन करने का आदेश दिया। नवरात्र के अलावा वर्ष भर यहां हिमाचल, पंजाब व जम्मू-कश्मीर से भक्तों का आना लगा रहता है और माता भलेई सबकी मनोकामना को पूर्ण करती हैं।

मंदिर की विशेषता
मंदिर के गर्भगृह में स्थापित मां भद्रकाली भलेई की प्रतिमा स्वयंभू प्रकट है। बताया जाता है कि मंदिर के निर्माण के लिए भी मां भलेई ने ही स्वयं चंबा के राजा प्रताप ङ्क्षसह को धन के चरुए (बड़े बर्तन) भी उपलब्ध करवाए थे। मां जब प्रसन्न होती है तो मां की की दो फुट उंची प्रतिमा से पसीना बहने लगता है। मां भलेई के दरबार में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है।

वास्तुकला
हजारों वर्ष पहले बने इस मंदिर की वास्तुकला सर्वश्रेष्ठ है। भलेई माता की चतुर्भुजी मूर्ति काले पत्थर से निर्मित है, जो स्वयं भू प्रकट हुई थी। माता के ऊपर वाले वाय हाथ में खप्पर, दायें हाथ में त्रिशूल है। भलेई माता मंदिर का मुख्य दरबार का निर्माण उड़ीसा के कलाकारों की ओर से करवाया गया है।
ऐसे पहुंचें भलेई मंदिर
भलेई माता के रूप में जाना जाने वाला भद्रकाली का मंदिर चंबा जिला की उपतहसील भलेई नामक स्थान पर समुद्र तल से 3800 फीट की उंचाई पर स्थित है। यह जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर है, जबकि डलहौजी से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। अन्य राज्य से आने वाले श्रद्धालु पठानकोट से डलहौजी होकर वाया खैरी के रास्ते से मंदिर पहुंच सकते हैं।
लंगर की व्यवस्था
भलेई माता के दर्शनार्थ आने वाले श्रद्धालुओं के लिए मंदिर कमेटी द्वारा भंडारे की व्यवस्था की गई है। श्रद्धालुओं के लिए भंडारे की सारी सामग्री 15 लाख रुपये से बनाए गए आधुनिक रसोई घर में तैयार की जाएगी। आधुनिक रसोई घर के लिए 16 गैस सिलेंडरों का विशेष प्लांट तैयार किया गया है।
सुरक्षा के कड़े प्रबंध
भलेई मंदिर में सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए हैं। किसी भी श्रद्धालु को बिना निरीक्षण के मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं होगी। पुलिस नियमित रूप से रात्रि गश्त भी करेगी।

तीसरी आंख का पहरा
नवरात्र में मंदिर कमेटी ने सुरक्षा व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में 12 सीसीटीवी कैमरे स्थापित किए हैं ताकि मंदिर में आने वाले हर श्रद्धालु पर नजर रखी जा सके। मंदिर प्रबंधन द्वारा नवरात्र को लेकर मंदिर को लाइट व फूलमालाओ के साथ सजाया गया है।

नारियल पर प्रतिबंध
नवरात्र में भलेई मंदिर में नारियल चढ़ाने पर पूरी तरह प्रतिबंध रहेगा। कमेटी द्वारा श्रद्धालुओं से मंदिर के मुख्य द्वार पर ही नारियल एकत्रित कर लिए जाएंगे। यह निर्णय मंदिर कमेटी द्वारा सुरक्षा की दृष्टि से लिया गया है।
सुरक्षा के लिए पुख्ता प्रबंध
मंदिर कमेटी के अध्यक्ष कमल ठाकुर का कहना है कि कमेटी ने श्रद्धालुओं को बेहतर सुविधा देने के पुख्ता प्रबंध किए हैं। मंदिर कमेटी द्वारा विशाल भंडारे का आयोजन किया जाएगा। साथ ही लोगों को पार्किंग व्यवस्था के लिए बेहतर प्रबंध किए गए हैं।