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ईछापुरी का प्राचीन शिव मन्दिर

ईछाुपरी स्थित प्राचीन शिव मन्दिर क्षेत्र का एक मात्र ऐसा शिव मन्दिर है जो यहां के शिव मन्दिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है तथा यह जमीन से लगभग पन्द्रह फुट नीचे बना हुआ है। काफी मान्यता है इस शिव मन्दिर की इस क्षेत्र में ही नहीं अपितु दूर-दूर तक काफी मान्यता है। वर्ष में दो बार शिवरात्रि एवं मह

By Edited By: Tue, 06 Aug 2013 11:41 AM (IST)
ईछापुरी का प्राचीन शिव मन्दिर

पटौदी [गुड़गांव]। का ईछाुपरी स्थित प्राचीन शिव मन्दिर क्षेत्र का एक मात्र ऐसा शिव मन्दिर है जो यहां के शिव मन्दिरों में सबसे प्राचीन माना जाता है तथा यह जमीन से लगभग पन्द्रह फुट नीचे बना हुआ है।

काफी मान्यता है इस शिव मन्दिर की इस क्षेत्र में ही नहीं अपितु दूर-दूर तक काफी मान्यता है। वर्ष में दो बार शिवरात्रि एवं महाशिव रात्रि पर्व पर बड़े मेले लगते हैं।

मन्दिर में ही दो दो शिवलिंग-

मन्दिर का गर्भ गृह जमीन से लगभग पन्द्रह फुट नीचे है तथा इसमें दो दो शिव लिंग स्थापित हैं। इनमें से एक के बारे में मान्यता है कि वह स्वयं उद्भूत हुआ था जबकि दूसरा स्थापित किया गया था।

मन्दिर के निर्माण को लेकर धारणा-

मन्दिर के निर्माण को लेकर यहां लागों में मान्यता है कि यहां शिव लिंग स्वयं प्रकट हुआ था। मन्दिर के पुजारी पं अशोक शर्मा के मुताबिक तथा प्रचलित दन्त कथा के अनुसार यहां अतीत में केवल खेत थे। एक बार यहां का खेत मालिक खेत में हल चला रहा था कि हल का फल एक पत्थर से जा टकराया। इस पर उसने उक्त पत्थर को खोदने का प्रयास किया परन्तु जितना वह उसे खोदता गया, पत्थर नीचे धंसता गया। आखिरकार थक हारकर उसने यह घटना ग्रामीणों को बताई। अगले दिन गांव वालों ने भी इसे खोदने का प्रयास किया परन्तु जितना जितना उसे खादते गए शिवलिंग नीचे धंसता गया। इस पर पड़ोसी गांव जटशाहपुर के विद्वान पं. हुकम चन्द वत्स को बुलाकर राय ली गई तो उन्होंने इसे शिवलिंग बताया। इस पर खोदी गई जगह पर शिव मन्दिर की स्थापना की गई तथा पूजा अर्चना शुरू हुई। तब काफी समय से बारिश नहीं हुई थी। मन्दिर स्थापना के बाद बारिश हुई तथा कई अन्य चमत्कार हुए तो लोगों की मान्यता बढ़ती गई।

उत्तराभिमुख है मन्दिर-

मन्दिर का द्वार उत्तर दिशा में है। मन्दिर के बिल्कुल सामने नन्दी देव की मूर्ति बनाई गई है। मन्दिर के पास हनुमान मन्दिर तथा अन्य देवी देवताओं के मन्दिर भी बने हुए हैं।

पुराना है मन्दिर-

मन्दिर की स्थापना कब हुई इसका कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है परन्तु लोग इसे सैकड़ों वर्ष पुराना मन्दिर मानते हैं। मन्दिर की भूमि पं. हुकम चन्द वत्स के परिवार को दोहली में दी गई थी। 1863 में हुई पहली कच्ची चकबन्दी में इस दोहली का जिक्र है। इससे यह तो स्पष्ट है कि यह मन्दिर कम से कम उससे तो पुराना है ही।

रेल और बस से पहुंच सकते हैं मंदिर

ईच्छापुरी रेलवे स्टेशन भी है जो रेवाड़ी-दिल्ली रेल खंड पर है और यहां लोकल ट्रेन रुकती हैं। सड़क मार्ग से भी यहां पहुंचा जा सकता है।

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