क्यों धर्म और मर्म की नगरी है वाराणसी
शिव की नगरी काशी यानी बनारस हमेशा से पर्यटकों को लुभाता रहा है। बनारस में घूमते समय आप इस शहर की गलियों में संस्कृति और परंपरा को करीब से महसूस करेंगे। मथुरा-वृदावन और हरिद्वार की तरह यहां भी आपको हर घर में प्रचीन मंदिरों के दर्शन होते हैं। कहते तो
By Preeti jhaEdited By: Updated: Tue, 24 Feb 2015 11:19 AM (IST)
शिव की नगरी काशी यानी बनारस हमेशा से पर्यटकों को लुभाता रहा है। बनारस में घूमते समय आप इस शहर की गलियों में संस्कृति और परंपरा को करीब से महसूस करेंगे।
मथुरा-वृदावन और हरिद्वार की तरह यहां भी आपको हर घर में प्रचीन मंदिरों के दर्शन होते हैं। कहते तो यह भी हैं कि काशी के हर कंकड़ में शिव का वास है। मान्यता है कि भगवान शिव के त्रिशूल पर बसी काशी देवाधिदेव महादेव को अत्यंत प्रिय है। इसीलिए यह धर्म, कर्म और मोक्ष की नगरी मानी जाती है। काशी को यह गौरव प्राप्त है कि यह नगरी विद्या, साधना और कला तीनों का अधिष्ठान रही है।
काशी के घाट गंगा के मुहाने पर बसे इस शहर की छटा को निखारने वाले सौ से अधिक पक्के घाट पूरी नगरी को धनुषाकार स्वरूप प्रदान करते हैं। प्रात: काल सूर्योदय के समय इन घाटों की छटा देखने योग्य होती है। यहां के प्रमुख घाट इस प्रकार हैं...दशाश्वमेध घाट: गंगा के किनारे काशी के हर घाट का अपना अलग महत्व है। सबसे महत्वपूर्ण घाट दशाश्वमेध घाट है। इस घाट को सर्वप्रथम बाजीराव पेशवा ने बनवाया। यह घाट पंचतीर्थों में एक है। मणिकर्णिका घाट: इस घाट पर मणिकर्णिका कुंड अवस्थित है। मान्यता है कि यहां चिता कभी नहीं बुझती। जहां से गुजरते हुए बरबस संसार के सबसे बड़े सच से साक्षात्कार होता है। पंचगंगा घाट: पुराणों के मुताबिक, यहां गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण व धूतपाया नदियों का गुप्त संगम होता है। इसलिए इसे पंचगंगा घाट भी
कहा जाता है। हरिश्चंद्र घाट- यह काशी के पुराने घाटों में से एक है। माना जाता है कि यहीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की सत्य परीक्षा हुई थी। घाट पर उनकी प्राचीन प्रतिमा बनी है। कहा जाता है कि उन्हें इसी घाट पर अपने पुत्र रोहिताश के शव के लिए काशी के डोम राजा का कर अदा करना पड़ा था।तुलसी घाट- माना जाता है इस घाट पर गोस्वामी तुलसी दास ने रामचरित मानस के कई अंशों की रचना की थी। इस कारण यह 'तुलसी घाटÓ के नाम से भी प्रसिद्ध है।अस्सी घाट- नगर के दक्षिण छोर पर स्थित यह घाट काशी के घाटों की श्रृंखला का अंतिम घाट माना जाता है जो दो उप-नदियों का संगम स्थल है। यहां भगवान जगन्नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। इन प्रमुख घाटों के अलावा, अनेक ऐसे घाट हैं जिनका धार्मिक, पौराणिक व स्थापत्य कला की दृष्टि से महत्व है। इनमें केदार घाट, राजघाट, सिंधिया घाट, गायघाट, बूंदी पर कोटा घाट, रामघाट, गंगा महल घाट, चौसत्र्ी घाट और खिड़कियां घाट आदि हैं।मंदिरों का शहर वाराणसी माटी-पाथर का बना महज एक शहर नहीं, अपितु आस्था, विश्वास और मान्यताओं की ऐसी केंद्र भूमि है, जहां तर्कों के सभी मिथक टूट जाते हैं। यहां के प्रमुख मंदिर हैं...काशी विश्वनाथ मंदिर- काशी विश्वनाथ मंदिर अत्यंत प्राचीन है। मंदिर में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग स्थित है। काशी के इस मंदिर की कला अत्यंत प्राचीन है। आश्चर्य तो यह है कि सातवीं सदी में चीनी यात्री ज्ज्ेन सांग ने काशी में सौ फीट ऊंची जिस कांसे की प्रतिमा को देखा था, वह और कुछ नहीं बाबा विश्वनाथ की प्रतिमा थी। संकटमोचन मंदिर- यह हनुमान जी का प्राचीन मंदिर है। यहां साल में एक बार संगीत समारोह आयोजित होता, जिसमें विख्यात कलाकार प्रस्तुति देते हैं। इसके अलावा, इस शहर में जगन्नाथ मंदिर, केदारेश्र मंदिर, विष्णु चरणपादुका, काली भैरव, भारतमाता मंदिर आदि प्रमुख हैं। कबीर की जन्मस्थली लहरतारा और रविदास मंदिर की भी अपनी महत्ता है। गंगा आरती- गंगा नदी बनारस के लोगों की जीवनरेखा है। यहां सुबह से ही घाट पर लोगों का आना-जाना शुरू हो जाता है। दशाश्वमेध घाट पर होने वाली आरती को जरूर देखना चाहिए। यह आरती हर दिन सुबह और शाम को होती है। वाराणसी को विद्या की राजधानी भी कहा जाता है। महामना पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1916 में यहां बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। मनोरम वातावरण में विश्वविद्यालय परिसर का सौंदर्य देखने योग्य है। इसी प्रकार यहां सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ विश्वविद्यालय प्राचीन और ऐतिहासिक है। जब बनारस जाएं, तो बनारसी साड़ी, बनारसी मिर्च का अचार और वहां के मशहूर आलू के पापड़ खरीदना भी मत भूलें। वाराणसी देश के प्रमुख शहरों से रेल, बस व वायु मार्ग से जुड़ा हुआ है।