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नवरात्र पहले दिन इस विधि से करें माता शैलपुत्री की पूजा व घटस्‍थापन

शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार 1 अक्टूबर, शनिवार को प्रतिपदा तिथि है, इसलिए इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी।

By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 03 Oct 2016 04:37 PM (IST)
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शारदीय नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इस बार 1 अक्टूबर, शनिवार को प्रतिपदा तिथि है, इसलिए इस दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाएगी। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार, देवी का यह नाम हिमालय के यहां जन्म होने से पड़ा। हिमालय हमारी शक्ति, दृढ़ता, आधार व स्थिरता का प्रतीक है। मां शैलपुत्री को अखंड सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। नवरात्र के प्रथम दिन योगीजन अपनी शक्ति मूलाधार में स्थित करते हैं व योग साधना करते हैं। इनकी पूजन विधि इस प्रकार है-

पूजन विधि

सबसे पहले चौकी पर माता शैलपुत्री की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें। चौकी पर चांदी, तांबे या मिट्टी के घड़े में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका (16 देवी), सप्त घृत मातृका (सात सिंदूर की बिंदी लगाएं) की स्थापना भी करें। इसके बाद व्रत, पूजन का संकल्प लें और वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों द्वारा मां शैलपुत्री सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें। इसमें आवाहन, आसन, पाद्य, अध्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें। तत्पश्चात प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करें।

जानें, मां दुर्गा के किस दिन कौन सी देवी की पूजा हैं फलदायक

ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्राद्र्वकृतशेखराम्।

वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्॥

अर्थात- देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।

427 साल बाद बना है ग्रहों का ऐसा शुभ योग

ज्योतिषाचार्य के अनुसार,नवरात्र में तिथि की वृद्धि होने से देवी आराधना एक दिन ज्यादा होगी। यह संयोग शुभ फलदायी है। नवरात्र में तृतीया तिथि दो दिन 3 से 4 अक्टूबर तक रहेगी। इसलिए नवरात्रि नौ की बजाए 10 दिन की होगी। ग्यारहवें दिन 11 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। 457 साल पहले जब नवरात्र की तिथियों में घट-बढ़ की स्थिति बनी थी। और उस समय नौ में से सात प्रमुख ग्रहों की जो स्थिति थी। वह 2016 में इस समय भी वैसी ही है। सूर्य व गुरु कन्या राशि में, शुक्र तुला राशि में, मंगल धनु राशि में, केतु कुंभ राशि में और राहू व बुध सिंह राशि में विद्यमान है।

शैलपुत्री: मां दुर्गा का पहला रूप देवी शैलपुत्री का पूजन

घट स्थापना विधि, शुभ मुहूर्त

नवरात्र के पहले दिन माता दुर्गा की प्रतिमा तथा घट (कलश) की स्थापना की जाती है। इसके बाद ही नवरात्र उत्सव का प्रारंभ होता है।पवित्र स्थान की मिट्टी से वेदी बनाकर उसमें जौ, गेहूं बोएं। फिर उनके ऊपर अपनी इच्छा अनुसार सोने, तांबे अथवा मिट्टी के कलश की स्थापना करें। कलश के ऊपर सोना, चांदी, तांबा, मिट्टी, पत्थर या चित्रमयी मूर्ति रखें। मूर्ति यदि कच्ची मिट्टी, कागज या सिंदूर आदि से बनी हो और स्नानादि से उसमें विकृति आने की संभावना हो तो उसके ऊपर शीशा लगा दें।

मूर्ति न हो तो कलश पर स्वस्तिक बनाकर दुर्गाजी का चित्र पुस्तक तथा शालिग्राम को विराजित कर भगवान विष्णु की पूजा करें। नवरात्र व्रत के आरंभ में स्वस्तिक वाचन-शांतिपाठ करके संकल्प करें और सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर मातृका, लोकपाल, नवग्रह व वरुण का सविधि पूजन करें। फिर मुख्य मूर्ति की पूजा करें। दुर्गादेवी की आराधना-अनुष्ठान में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती का पूजन तथा मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत निहित श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ नौ दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए।

कलश स्थापना के शुभ मुहूर्त

सुबह 06 से 08.24 तक

सुबह 08.24 से 10.15 तक

सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 तक (अभिजित मुहूर्त)

दोपहर 03.15 से शाम 06.35 तक

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