और अश्वमेघ यज्ञ के फल की होती प्राप्ति
आश्विन कृष्ण चतुर्थी सोमवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का पंचम दिवस है। इस तिथि को सर्वप्रथम ब्रह्म सरोवर तीर्थ पर श्राद्ध होता है। गयाधाम के दक्षिण फाटक से बाईपास पथ जाने के मार्ग में वैतरणी सरोवर से दक्षिण ब्रह्म सरोवर है। ब्रह्म सरोवर के तट पर श्राद्ध होता है। श्राद्ध के बाद ब्रह्मकूप वेदी का दर्शन एवं प्रदक्षिणा की जाती है। इस वेदी की प्रदि
By Edited By: Updated: Tue, 24 Sep 2013 05:37 AM (IST)
गया। आश्विन कृष्ण चतुर्थी सोमवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का पंचम दिवस है। इस तिथि को सर्वप्रथम ब्रह्म सरोवर तीर्थ पर श्राद्ध होता है। गयाधाम के दक्षिण फाटक से बाईपास पथ जाने के मार्ग में वैतरणी सरोवर से दक्षिण ब्रह्म सरोवर है। ब्रह्म सरोवर के तट पर श्राद्ध होता है। श्राद्ध के बाद ब्रह्मकूप वेदी का दर्शन एवं प्रदक्षिणा की जाती है।
इस वेदी की प्रदक्षिणा से अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है। ब्रह्मकूप वेदी सरोवर में दक्षिण पश्चिम भाग में पत्थर का स्तंभ है। जल में डूबे हुए रहने के कारण इसकी प्रदक्षिणा बाहर से ही होती है। ब्रह्मजी ने गयाधाम में यज्ञ करके ब्रह्म सरोवर में यज्ञान्त स्नान किया था तथा उक्त ब्रह्मकूप स्तंभ स्थापित किया था। इस सरोवर के उत्तर पश्चिम दिशा में स्थित काक शिला वेदी पर कुत्ता एवं कौआ के निमित्त बलि दी जाती है। काकबलि वेदी से पश्चिम जाकर ब्रह्मसरोवर के पश्चिमी गेट से माड़नपुर तिनमुहानी पर जाने का मार्ग है। तिनमुहानी से उत्तर तारक ब्रह्म वेदी है। एक छोटे मंदिर में गली के भीतर तारक ब्रह्म हैं। मुख्य पथ पर पूर्व मुख ब्रह्म वेदी है। इनके दर्शन से पितरों का उद्धार हो जाता है। इन्हें पितृतारक ब्रह्म कहा जाता है। उसके बाद माड़नपुर तिनमुहानी से पश्चिम जाकर उत्तर की ओर गल में आम्र सिंचन वेदी है। यह वेदी गोप्रचार वेदी से दक्षिण है। यहां आम का वृक्ष है। इसकी जड़ में कुशा के सहारे जल अर्पण किया जाता है। यहां पिंडदान नहीं होता है। यह भी दर्शन एवं नमस्कार की वेदी है। उक्त आम के वृक्ष को बह्मसरोवर से उखाड़कर ब्रह्म ने यहां रोपा था। उक्त तीन वेदियां दर्शनीय वेदियां हैं जो 360 वेदियों में से प्रधान है। इनका पुराणों में उल्लेख है। -[आचार्य लाल भूषण मिश्र]
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