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श्राद्ध करने वालों के 101 कुल का होगा उद्धार

आश्विन कृष्ण सप्तमी बृहस्पतिवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का 8वां दिवस है। उक्त तिथि को 16 वेदी नामक तीर्थ पर 6ठी वेदी से 10 वीं वेदी तक पांच वेदियों पर श्राद्ध होता है। यह तीर्थ गयासुर के सिर पर तथा धर्मशिला पर है। कठिन तपस्या करके विष्णु से वरदान प्राप्त करके गयासुर सभी तीर्थो एवं देवताओं से पवित्र हो चुका था। उसके दर्शन मात्र से पितर को स्वर्ग प्राप्ति हो जाती थी। उसके सिर पर ब्रह्म ने यज्ञ किया था। यज्ञ की पूर्णाहुति के पहले उसका सिर कंपित होने लगा।

By Edited By: Updated: Thu, 26 Sep 2013 06:56 AM (IST)

गया। आश्विन कृष्ण सप्तमी बृहस्पतिवार त्रिपाक्षिक गया श्राद्ध का 8वां दिवस है। उक्त तिथि को 16 वेदी नामक तीर्थ पर 6ठी वेदी से 10 वीं वेदी तक पांच वेदियों पर श्राद्ध होता है। यह तीर्थ गयासुर के सिर पर तथा धर्मशिला पर है।

कठिन तपस्या करके विष्णु से वरदान प्राप्त करके गयासुर सभी तीर्थो एवं देवताओं से पवित्र हो चुका था। उसके दर्शन मात्र से पितर को स्वर्ग प्राप्ति हो जाती थी। उसके सिर पर ब्रह्म ने यज्ञ किया था। यज्ञ की पूर्णाहुति के पहले उसका सिर कंपित होने लगा। धर्मशिला एवं सभी देव-देवी के साथ विष्णु भगवान ने उसके सिर पर स्थित होकर अपनी आदि गदा के सहारे उसके कंपन को स्थित किया। विष्णु भगवान से गयासुर ने पुन: वरदान प्राप्त किया कि यहां श्राद्ध करने वाले के 101 कुल का उद्धार होगा तथा विष्णु आदि देवता सदा निवास करेंगे। पांच वेदियों में से चंद्रपद, आव सथ्य पद, दधीचि पद एवं कण्व पद पर श्राद्ध से पितर ब्रह्मालोक जाते हैं तथा गणेश पद पर श्राद्ध से रुद्रलोक को पितर प्राप्त करते हैं। सभ्य पद पर श्राद्ध करने से ज्योतिष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है।

-[आचार्य लालभूषण मिश्र]

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