कुंआरी कन्याओं द्वारा इस पूजन विधि से अच्छे वर की प्राप्ति होती है
जिस तरह मालवा-निमाड़ की लोकसंस्कृति श्राद्ध पक्ष में 'संझा पर्व' के रूप में झलकती है, वैसे ही पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में आश्विन मास के नौ दिन यानी शारदीय नवरात्र में कुंआरी कन्याओं द्वारा लोक माता 'सांझी की पूजा की जाती है। पूरे नौ दिनों तक
By Preeti jhaEdited By: Updated: Sat, 17 Oct 2015 04:24 PM (IST)
जिस तरह मालवा-निमाड़ की लोकसंस्कृति श्राद्ध पक्ष में 'संझा पर्व' के रूप में झलकती है, वैसे ही पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में आश्विन मास के नौ दिन यानी शारदीय नवरात्र में कुंआरी कन्याओं द्वारा लोक माता 'सांझी की पूजा की जाती है। पूरे नौ दिनों तक सांझी माता के रूप में पूजा का यह सिलसिला बड़ी जोर-शोर से चलता रहता है।
सांझी पूजा सांझी माता को गोबर या पीली मिट्टी की मदद से दीवार पर उकेरा जाता है। उनके आसपास तमाम तरह के सूरज, चंदा, तारे, बरोडा और काणा कद्दू बनाए जाते हैं। इसके अलावा देवी के मुखौटे, हाथ और पैर यहां तक की गहने भी आजकल स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाए जाते हैं, जिन्हें गोबर की आकृति पर चिपका दिया जाता है। सेलखड़ी या अन्य देसी रंगों से मां का श्रंगार किया जाता है। चमकीले कागजों की मदद से पूरी दीवार को एकदम सुंदर रूप दिया जाता है।कैसी बैठी विकट पहाड़ों में मां...
दुर्गा पूजा शुरू होने के पहले से सांझी माता की पूजा की जाती है। हर दिन महिलाएं व कन्याएं सांझी के सामने एकत्र होकर 'कैसी बैठी विकट पहाड़ों में, जय दुर्गे महारानी' जैसे लोकगीतों को गाकर माता की स्तुति कर भोग लगाती हैं और फिर आरती करती हैं। पूरे नौ दिनों तक यही क्रम चलता रहता है। दशहरे वाले दिन सांझी को गांव के जोहड़ (तालाब) में विसर्जन किया जाता है। बड़ी महिलाओं के मार्गदर्शन में कन्याएं इन रीति-रिवाजों को पूरा करती जाती हैं। कुंआरी कन्याओं द्वारा माता पूजन की इस विधि के जरिए उनकी रक्षा के साथ अच्छा वर मिलने की कामना भी होती है।
पंखिया पट्टी निवासी उदयभान के अनुसार ग्रामीण महिलाओं द्वारा घरों के बाहर सांझी बनाकर पूजा-अर्चना करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, जो आज भी कायम है। वर्षों पहले सांझी प्रतिमा का सोने-चांदी के आभूषणों के साथ पूरा श्रंगार किया जाता था, जिसकी सुरक्षा के लिए गांवों में पहरेदार दिन-रात पहरेदारी करते थे। पहले इस सांझी पूजन के लिए गांव की सैकड़ों महिलाएं एकत्रित होकर देर शाम से अर्धरात्रि तक गीत गाकर पूजा करती थीं, जिससे आपस में सद्भाव और भाईचारे को बढ़ावा मिलता था। प्राचीन परंपरा के अनुसार मान्यता के अनुसार इस सांझी प्रतिमा का भोग लगे प्रसाद का सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है। सांझी माता के नाम पर ही वैष्णोदेवी में स्थित एक पड़ाव का नाम 'सांझी छत' पड़ा है।