करवा चौथ की व्रत कथा, पूजा विधि
करवा चौथ के दिन लकड़ी के पाट पर जल का भरा लौटा रखें। बायना निकालने के बाद एक मिट्टी का करवा रखें। करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी और नकद रुपये रखें, फिर उसे रोली से बांधकर गुड़ व चावल से पूजा करें। इसके बाद तेरह बार करवे का टीका करके उसे सात बार पाट के चारों ओर घुमाएं।
करवा पूजन विधि
करवा चौथ के दिन लकड़ी के पाट पर जल का भरा लौटा रखें। बायना निकालने के बाद एक मिट्टी का करवा रखें। करवे में गेहूं और उसके ढक्कन में चीनी और नकद रुपये रखें, फिर उसे रोली से बांधकर गुड़ व चावल से पूजा करें। इसके बाद तेरह बार करवे का टीका करके उसे सात बार पाट के चारों ओर घुमाएं।
इसके बाद श्रीगणेश जी, शिव जी, महागौरी की मूर्तियां या पिंडोल रखकर उसे रोली, गुड़ व चावल चढ़ाएं और हाथ में तेरह गेहूं के दाने लेकर कहानी सुनें। ये मूर्तियां काली चिकनी मिट्टी से बना सकती हैं या फिर बाजार से खरीदी जा सकती हैं। महागौरी को लाल चुनरी पहनाकर सुहाग का सामान चढ़ाना चाहिए। कहानी सुनने के बाद करवे पर हाथ फेरकर सास के पांव छुएं। उन्हें लड्डू, एक लोटा, साड़ी, दक्षिणा और करवा दें। सास न हो तो ननद या फिर मंदिर में मां गौरी के चरण स्पर्श करके उपरोक्त वस्तुएं दें। इसके बाद वह तेरह कनक के दाने व लोटा यथास्थान पर रख दें। रात होने पर चांद देखकर चंद्रमा को अर्ध्य दें। इसके बाद प्रसाद रखकर व्रत रखने वाली स्त्रियां अपना व्रत खोल सकती हैं। करवा चौथ का व्रत रखने वाली महिलाओं को अपनी बहन और बेटी को भी व्रत की सामग्री भेजनी चाहिए। इस सामग्री में सुहाग का सामान जैसे साड़ी, चूड़ी, बिछिया आदि तो होने ही चाहिएं, इसके अलावा पूजा की सामग्री, नैवैद्य, चीनी के करवे, पुरी, पुए, मिठाई और दक्षिणा आदि भी रखी जानी चाहिए। करवा चौथ कथा
द्रोपदी द्वारा शुरू किए गए करवा चौथ व्रत की आज भी वही मान्यता है। सबसे पहले द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी आयु के लिए चौथ के दिन यह व्रत रखा था और निर्जल रहीं थीं। यह माना जाता है कि पांडवों की विजय में द्रौपदी के इस व्रत का भी महत्व था।
विवाहित स्त्रियों के लिए व्रत रखना अखंड सौभाग्यकारक है, स्त्रियां शादी के पहले साल से ही यह व्रत शुरू करके सुख-सौभाग्य के लिए चंद्रदेव की पूजा करती हैं।
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उसकी बहन करवा ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-कारोबार निपटा कर घर लौटे तो बहन को व्याकुल देखा। सभी भाई खाना खाने बैठे और बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे जबकि बहन ने बताया कि उसने करवा चौथ का निर्जला व्रत रखा है और चंद्रमा को देखकर उसे अर्ध्य देकर ही खा सकती हूं। चूंकि चंद्रमा अभी निकला नहीं, इसलिए भूख प्यास की व्याकुलता है।
सबसे छोटे भाई से बहन की हालत देखी नहीं जाती और दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्ध्य देकर भोजन कर सकती हो, बहन खुशी के मारे सीढि़यों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्ध्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है कि उसे छींक आ जाती है, दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा निवाला मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है, वह बौखला जाती है। उसकी भाभी उसे सच्चाई बताती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चत करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है, उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सुईनुमा घास को वह एकत्र करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है, उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं, जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी को यम सुई ले लो, प्रिय सुई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कहकर चली जाती है। छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की से उसका व्रत टूटा था, अत: उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है। जब वो आए तो उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जीवित न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। सबसे छोटी भाभी से यही आग्रह करने पर वो टालमटोल करने लगती है, पर करवा उसे जोर से पकड़े रखती है। भाभी उसे नोचती-खसोटती है पर करवा उसे नहीं छोड़ती। आखिर उसकी तपस्या देखकर भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली चीरकर इसमें से निकला अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्रीगणेश मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले। सवा आठ बजे होगा चंद्रोदय
करवा चौथ पर चंद्र दर्शन की अधीरता रात सवा आठ बजे शांत हो सकेगी, चंद्रमा रात 8 बजकर 13 मिनट के बाद दिखाई देने लगेगा और 8 बजकर 30 मिनट तक पूर्ण रूप से प्रकट हो जाएंगा। पंडित सच्चिदानंद के अनुसार इस शुभ घड़ी को पूरे श्रद्धाभाव से चंद्रमा को अर्ध्य देना और आरती करना शुभ फलदायी है।
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