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विवाह दो आत्माओं के मिलन का महापर्व है

विवाह दो आत्माओं के मिलन का महापर्व है। विवाह न केवल आध्यात्मिक बंधन है, बल्कि एक सामाजिक और उससे अधिक दो लोगों के बीच एक व्यक्तिगत बंधन भी है। विवाह का मतलब दो व्यक्तियों का एक हो जाना है। दोनों व्यक्ति एक-दूसरे में विसर्जित हो जाते हैं और इनमें किसी तरह का अलगाव नहीं रह जाता, क्याेंकि दोनों अभी तक अपूर्ण थे और जब उनका विवाह संप

By Edited By: Updated: Tue, 31 Dec 2013 01:37 PM (IST)
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विवाह दो आत्माओं के मिलन का महापर्व है। विवाह न केवल आध्यात्मिक बंधन है, बल्कि एक सामाजिक और उससे अधिक दो लोगों के बीच एक व्यक्तिगत बंधन भी है। विवाह का मतलब दो व्यक्तियों का एक हो जाना है। दोनों व्यक्ति एक-दूसरे में विसर्जित हो जाते हैं और इनमें किसी तरह का अलगाव नहीं रह जाता, क्याेंकि दोनों अभी तक अपूर्ण थे और जब उनका विवाह संपन्न हो जाता है तो एक पूर्ण इकाई बन जाते हैं।

नारी स्वयं में किसी जीव को धारण करती है। इसलिए उसे धरती भी कहते हैं और उसमें ममत्व अधिक होता है। इसलिए वह मां कही जाती है। जब कभी पुरुष अशांत होता है तो नारी अपने प्रेम से उसके अशांत मन को सहानुभूति प्रदान करती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रकृति का नियम है कि स्त्री या पुरुष अकेले में अधूरे हैं, अपूर्ण हैं। इसलिए प्रकृति ने नारी और पुरुष के प्रेम को स्थापित करने के लिए विधिपूर्वक विवाह का प्रावधान किया है। विधिपूर्वक इसलिए कि यह कोई शरीर का औपचारिक मिलन नहीं है। यह आत्मा का मिलन है। प्रेम, करुणा और सहानुभूति का मिलन है। इसलिए विवाह को आध्यात्मिक मिलन कहा जाता है।

यह सामाजिक व्यवस्था इसलिए है कि पति-पत्‍‌नी के मर्यादित जीवन से एक सुंदर और स्वस्थ समाज बनता है। समाज में नई पीढ़ी का सृजन होता है। विवाह को व्यक्तिगत इसलिए माना गया है कि पति-पत्‍‌नी का विवाह आपसी आत्मविश्वास और एक-दूसरे के प्रति प्रेम का संबंध स्थापित करता है। इसी लालित्यपूर्ण संबंध के लिए पति-पत्‍‌नी के बीच मोहक संबंध बना रहता है।

भारत में सोलह संस्कार प्रचलन में हैं। इनमें विवाह संस्कार महत्वपूर्ण है। इसी दृष्टि से यहां माना जाता है कि जब दो व्यक्ति को परिणय-सूत्र में बांधा जाता है, तो उसमें कुछ विश्वास और भरोसे का बंधन भी होना चाहिए ताकि वह बंधन स्थायी रूप से कायम रहे। दोनों के बीच में जो स्थाई बंधन बांधे जाते हैं उसके लिए नियम यह बनाया गया कि दोनों पक्षों के माता-पिता के समक्ष और समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगों के सामने कई मजबूत प्रतिज्ञाएं कराई जाती हैं ताकि दोनों नैतिकता के बंधन में बंधे रहें।

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