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पथरीली डगर के रंग हजार

हमारे मन में पहले से ही था कि आज राह दुश्कर है। समिति के पैंफलेट में भी इसका जिक्र हुआ है। कोटी के लोगों का भी यही कहना था कि यहां से भगोती का रास्ता काफी लंबा व चढ़ाई वाला है। सो, हम सुबह आठ बजे ही रास्ता लग गए। हालांकि, छंतोली 10 बजे कोटी से चली। खड़ी चढ़ाई तय कर हम घतोड़ा पहुंचे, जहां देवी के गणों

By Edited By: Updated: Sun, 24 Aug 2014 03:45 PM (IST)

भगोती, [सुभाष भट्ट]। हमारे मन में पहले से ही था कि आज राह दुश्कर है। समिति के पैंफलेट में भी इसका जिक्र हुआ है। कोटी के लोगों का भी यही कहना था कि यहां से भगोती का रास्ता काफी लंबा व चढ़ाई वाला है। सो, हम सुबह आठ बजे ही रास्ता लग गए। हालांकि, छंतोली 10 बजे कोटी से चली। खड़ी चढ़ाई तय कर हम घतोड़ा पहुंचे, जहां देवी के गणों व असुरों के बीच मल्लयुद्ध का दृश्य मन में बसा लेने वाला है। यह ऐसी घटना है, जो पौराणिक ग्रंथों में मिलती है। इसे सांकेतिक रूप में साक्षात देख अलग ही अनुभूति हुई। दिमाग में तस्वीर बनने लगी कि जब देवता व असुरों के बीच संग्राम होता था, वह किस तरह का रहा होगा।

घतोड़ा में हमारी मुलाकात एक 86 वर्षीय वृद्ध कुशाल सिंह से हुई। चेहरा देख के ही लगा कि देवी के प्रति उनके मन में कितनी आस्था है। बातचीत में पता चला कि वह इससे पहले पांच बार राजजात देख चुके हैं। वह बताते हैं कि पहले बहुत कम लोग राजजात में आते थे, लेकिन प्रचार-प्रसार मिलने से आज जनसमूह उमड़ रहा है। हांलाकि आस्था में कोई बदलाव नहीं आया। वह तब जैसी थी, वैसी ही अब भी है। उन्होंने मल्ल युद्ध के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि देवी की शक्ति से असुर मालासिमार में समा जाता है। घतोड़ा के बाद तकरीबन साढ़े चार किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई है। सूरज का तेज चमक रहा है, हालांकि बांज के जंगल से मिल रही छाया ने हमें राहत दी। हां, इस बीच जल्दी पहुंचने की चाह में हमने किसी यात्री से रास्ता पूछा तो उसने गलत राह सुझा दी। नतीजा हमें बेवजह डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने को मजबूर होना पड़ा, जिसने हमें थकाकर चूर कर दिया। जात से मिलने के लिए हमें धार ही धार नीचे उतरना पड़ा। अब हम नौलापानी धार से बमियाला की तरफ उतर रहे हैं। बमियाला ऐसा गांव है, जहां हर मकान पठाल का है। परंपरा के दर्शन यहां होते हैं। पर, यहां मकानों में छज्जे देखने को नहीं मिले, जबकि अन्य गांवों में मकानों के छज्जे होते है।

हां, एक बात और। नौलापाणी धार व घतोड़ा में हमने पहाड़ की उत्सवधर्मिता के दिव्य दर्शन किए। झुमैलो पर झूमते लोग और वातावरण में गूंजते नंदा के गीत तन-मन को उल्लासित कर रहे हैं। यही तो है पहाड़ का सांस्कृतिक पक्ष। धर्म एवं संस्कृति का अद्भुत मेल। नौलापाणी धार में मेला सा लगा है। डिांझोड़ी, मरगारी व बुढ़ेणा के लोग देवी के दर्शनों को यहां पहुंचे हुए हैं। इनमें महिलाओं की तादाद अधिक है। लोग बता रहे थे कि ये तीनों गांव नंदा पथ से दूर हैं, इसलिए भगोती को पूजा देने धार में पहुंचते हैं। यहां से लगभग दो किलोमीटर की चढ़ाई और डेढ़ किलोमीटर की ढलान के बाद छेकुड़ा गांव है। इसके ठीक ऊपर घास का एक बड़ा तप्पड़ है, जो बुग्याल जैसा नजर आता है। यहां भी हमने संस्कृति की मनोहारी झांकी देखी। छेकुड़ा से एक-डेढ़ किमी पर मनोड़ा पड़ा, जहां जात में कनवाल गांव की छंतोली शामिल हुई।

सूरज ढलान पर है और भगोती भी अब नजर आने लगा है। हम देख रहे हैं कि वहां टेंट लगे हैं। सड़क पर गाड़ियों की कतारें हैं। लग रहा है कि प्रशासन का अमला वहां मौजूद है। काफी थक चुके हैं। और.. यह क्या, जैसे मन की मुराद पूरी हो गए। भगोती से लोग लस्सी लेकर आए हैं। कंठ तर कर अब हम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे..।

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