Move to Jagran APP

दंतकथाओं के 'देश' में राजजात

रिमझिम फुहारों और घने कोहरे के बीच नंदा राजजात ने नौ किलोमीटर का सफर तय कर पातर नचौणियां में पड़ाव डाला। समुद्र तल से 12744 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पड़ाव पर सर्द हवाएं यात्रियों की परीक्षा लेती प्रतीत हो रही है। बावजूद इसके यात्रियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। तीन

By Edited By: Updated: Tue, 02 Sep 2014 01:25 PM (IST)

पातर नचौणियां, जागरण संवाददाता। रिमझिम फुहारों और घने कोहरे के बीच नंदा राजजात ने नौ किलोमीटर का सफर तय कर पातर नचौणियां में पड़ाव डाला। समुद्र तल से 12744 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पड़ाव पर सर्द हवाएं यात्रियों की परीक्षा लेती प्रतीत हो रही है। बावजूद इसके यात्रियों के उत्साह में कोई कमी नहीं आई है। तीन से चार हजार लोग पहले से ही पातर नचौणियां से आगे पहुंच कर यात्रा का इंतजार कर रहे हैं, जबकि इतने ही संख्या वेदिनी से राजजात के रवाना होते वक्त थी।

रातभर रुक-रुक कर बारिश जारी रही। सोमवार सुबह भी यह क्रम जारी रहा। कुछ देर के लिए सूर्य नारायण के दर्शन जरूर हुए, लेकिन जल्द ही बादलों ने उन्हें अपनी ओट में ले लिया। वेदिनी कुंड के पास दैनिक पूजा अर्चना के बाद पूर्वाह्न साढ़े दस बजे शंख ध्वनि होते ही नंदा के धर्मभाई लाटू देवता की अगुआई में यात्रा ने अगले पड़ाव के लिए प्रस्थान किया। हजारों श्रद्धालु खराब मौसम, घने कोहरे में दुष्कर रास्ते पर धीरे-धीरे आगे बढ़े। साढ़े तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई के बाद राजजात एक पहाड़ की चोटी पर पहुंची। यहां यात्रियों ने कुछ दे विश्राम किया। इससे आगे दो किलोमीटर की दूरी समतल रही और फिर शुरू हुआ चढ़ाई का एक और दौर। इस बीच बूंदा-बांदी लगातार जारी रही। बारिश के कारण रास्तों पर फिसलन से यात्रियों को दिक्कतें बढ़ रही थीं। दरअसल, उच्च हिमालय के क्षेत्र में मौसम का यह रूप सामान्य माना जाता है। इन रास्तों पर आम आदमी का आना-जाना नहीं होता। केवल साहसिक पर्यटन के शौकीन ही जून से सितंबर तक इस क्षेत्र में ट्रैकिंग करते हैं। यात्रा के दौरान मार्ग में एक भी वृक्ष नजर नहीं आ रहा। चारों ओर नजर आ रही हैं तो घास के ढलवां मैदान और खड़ी चट्टानें। यात्रा शाम चार बजे पड़ाव पर पहुंची।

हालांकि पातर नचौणियां में प्रशासन की ओर से टेंट लगाए गए हैं, लेकिन यात्रियों की संख्या के लिहाज से ये पर्याप्त नहीं थे। फिलहाल यात्रा में आठ से दस हजार यात्री बताए जा रहे हैं। ऐसे में जिनके पास निजी टेंट हैं, वे टेंट के लिए जगह की तलाश में आगे बढ़ गए। पातर नचौणियां के बारे में लोक मान्यता है कि कन्नौज के राजा यशोधवल जब राजजात में शामिल हुए तो उनके लाव-लश्कर में नर्तकियां (स्थानीय बोली में इन्हें पातर कहते हैं) भी शामिल थीं। इसी स्थान पर उन्होंने नृत्य किया था। इस पर देवी ने कुपित होकर नर्तकियों को शिला बना दिया। यहां चारों ओर बिखरी शिलाओं में कई नृत्य की मुद्रा वाली भी हैं।

पढ़े: बैसाखी के सहारे हिमालय सा हौसला

पथरीली डगर के रंग हजार