Move to Jagran APP

एक गांव ऐसा भी जहां नहीं होती है हनुमान की पूजा

कलियुग में ईश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर हनुमानजी पृथ्वी पर देह सहित मौजूद हैं। इसलिए हनुमान मंदिर में लोगों की लंबी कतार लगती है और लोग अपनी मन्‍नतें हनुमान जी को सुनाते हैं, लेकिन उत्‍तराखंड में एक गांव ऐसा भी है,जो हनुमान जी से नाराज है।

By sunil negiEdited By: Updated: Sun, 25 Oct 2015 09:20 PM (IST)
Hero Image

चमोली। कलियुग में ईश्वर के प्रतिनिधि के तौर पर हनुमानजी पृथ्वी पर देह सहित मौजूद हैं। इसलिए हनुमान मंदिर में लोगों की लंबी कतार लगती है और लोग अपनी मन्नतें हनुमान जी को सुनाते हैं, लेकिन उत्तराखंड में एक गांव ऐसा भी है,जो हनुमान जी से नाराज है। इसलिए उनकी पूजा नहीं करते हैं। आइये जानते हैं पूरी कहानी।

लोगों की यह नाराजगी आज की नहीं, बल्कि उस समय से है जब मेघनाद के नागपाश में बंधकर लक्ष्मण जी बेहोश हो गये थे। इस समय लक्ष्मण को होश में लाने के लिए सुषेण नामक वैद्य ने हनुमान जी को हिमालय से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा। हनुमान जी पवन की गति से उड़कर उत्तराखंड के चमोली जिला में स्थित द्रोणगिरी पर्वत पर पहुंचे। द्रोणगिरी पर्वत चमोली जिला के जोशीमठ ब्लॉक के अंतर्गत बसा हुआ है। इसी पर्वत की तलहटी में द्रोणागिरी नामक गांव बसा हुआ है।

यहां के लोगों का कहना है कि हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेने आये तब गांव की एक वृद्घ महिला ने हनुमान जी को पर्वत का वह हिस्सा दिखाया जहां संजीवनी बूटी उगती थी। इस बूटी तक पहुंचने का रास्ता भी महिला ने ही दिखाया।
हनुमान जी संजीवनी बूटी के बदले पहाड़ का वह हिस्सा ही उखाड़कर ले गये। इसलिए हनुमान जी से इनकी नाराजगी है। हनुमान जी के प्रति नाराजगी का आलम यह है कि, इस गांव में हनुमान जी का नाम लेने वाले और उनकी पूजा करने वाले को बिरादरी से बाहर भी कर दिया जाता है।

वैसे इस गांव के लोगों की राम जी से कोई नाराजगी नहीं है। राम की पूजा बड़ी ही श्रद्धा भक्ति से करते हैं। यहां के लोग हर साल द्रोणगिरी की पूजा करते हैं, लेकिन इस पूजा में महिलाओं को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि एक महिला ने ही द्रोणगिरी पर्वत का वह हिस्सा दिखाया था जहां संजीवनी बूटी उगती थी।

ग्रामीण बताते हैं कि वर्ष 1980 में द्रोणागिरी में रामलीला मंचन का आयोजन किया गया। उस समय कुछ ऐसी विचित्र घटनाएं हुई कि मंचन बंद करना पड़ा था। इतना ही नहीं ग्रामीण बाबा रामदेव के करीबी सहयोगी आचार्य बालकृष्ण का उदाहरण देना भी नहीं भूलते। बताते हैं कि वर्ष 2008 में आचार्य बालकृष्ण जड़ी-बूटियों पर शोध के सिलसिले में द्रोणागिरी आए। लोगों ने उन्हें गांव की परंपरा और मान्यताओं से अवगत करा दिया था। वह कहते हैं 'ग्रामीणों के लाख मना करने के बावजूद उन्होंने गांव में हनुमान चालीसा का पाठ किया। ग्रामीण तभी से आशंकित थे।
प्रधान द्रोणागिरी दीपा रावत का कहना है कि इस गांव में रामलीला का आयोजन तीन दिन तक होता है। श्रीराम जन्म व सीता स्वयंवर के बाद राम का राज्याभिषेक कर दिया जाता है। इस रामलीला में हनुमान लीला का मंचन नहीं किया जाता है। ग्रामीण उदय सिंह द्रोणागिरी का कहना है कि इस गांव के लोग हनुमानी सिंदूर व लाल पिठाई का प्रयोग नहीं करते। साथ ही लाल ध्वज भी इस गांव में नहीं फहराया जाता है।

लंका में मौजूद 'संजीवनी' पर्वत
श्रीलंका में एक ऐसा पहाड़ का टुकड़ा है। जहां से लक्ष्मण के लिए हनुमानजी संजीवनी लाए थे। ऐसा माना जाता है कि श्रीलंका के सुदूर इलाके में मौजूद 'श्रीपद' नाम की जगह पर स्थित पहाड़ ही वह पहाड़ है जो द्रोणागिरी का एक टुकड़ा था और जिसे उठाकर हनुमानजी ले गए थे। इस जगह को 'एडम्स पीक' भी कहते हैं। श्रीलंका के दक्षिणी तट गाले में एक बहुत रोमांचित करने वाली इस पहाड़ को श्रीलंकाई लोग रहुमाशाला कांडा कहते हैं। हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि वह द्रोणागिरी का पहाड़ था। द्रोणागिरी हिमालय में स्थित था। कहते हैं कि हनुमानजी हिमालय से ही यह पहाड़ उठाकर लाए थे बाद में उन्होंने इसे (रहुमाशाला कांडा) को यहीं छोड़ दिया। मान्यताओं के अनुसार यह द्रोणागिरी पहाड़ का एक टुकड़ा है।

पढ़ें:-नि:संतानों की झोली भरती हैं हिंग्लादेवी