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विष्णु के उपासक ठहरेंगे बुद्ध के आंगन में

पितरों के पिंड को विष्णु के चरण में अर्पित करने वाले पुत्र अपने गयाजी प्रवास के दौरान आवासन की व्यवस्था से थोड़ी अकुलाहट महसूस कर रहे हैं। जबकि प्रशासन और गयापाल पंडा समाज के द्वारा तीर्थ नगरी गया में उनके रहने की व्यवस्था की जा रही है। फिर भी, गयाजी आने वाले पिंडदानी अभी से ही धर्मशाला, होटल और प्राइवेट आ

By Edited By: Updated: Tue, 02 Sep 2014 01:24 PM (IST)

गया, [कमल नयन]। पितरों के पिंड को विष्णु के चरण में अर्पित करने वाले पुत्र अपने गयाजी प्रवास के दौरान आवासन की व्यवस्था से थोड़ी अकुलाहट महसूस कर रहे हैं। जबकि प्रशासन और गयापाल पंडा समाज के द्वारा तीर्थ नगरी गया में उनके रहने की व्यवस्था की जा रही है। फिर भी, गयाजी आने वाले पिंडदानी अभी से ही धर्मशाला, होटल और प्राइवेट आवासों की तलाश में भटकते देखे गए हैं। यह प्रक्रिया अब तेज हो गई है। चूंकि समय कम है और यात्रियों की संख्या अधिक।

8 सितंबर से गयाजी में पितृपक्ष मेला प्रारंभ हो रहा है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष 5 से 7 लाख के बीच तीर्थयात्री यहां आते रहे हैं। इनकी संख्या में वृद्धि भी हुई है। इस कारण स्थान का भी अभाव खटकता है। कई स्थानों पर तो टेंट की व्यवस्था भी की जा रही है। जहां यात्री रात गुजार सकें।

गौरतलब है कि एक पखवारे तक चलने वाले इस मेले में कर्मकांड का विधि-विधान कुछ अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और सत्रह दिन का कर्मकांड करते हैं। 15 व 17 दिन तक कर्मकांड करने वाले श्रद्धालु सबसे पहले अपने रहने की व्यवस्था पर जोर देते हैं। इस कारण वे तीन-चार महीने पहले से ही अपनी बुकिंग कर खुद के आवासन को सुरक्षित कर लिया करते हैं। गयाजी का दक्षिणी क्षेत्र मेला क्षेत्र के रूप में जाना जाता है। अधिकतर श्रद्धालु इसी क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। जहां कई छोटे-बड़े धर्मशालाएं और आवासन गृह हैं। प्राइवेट मकानों को भी इस मौके पर किराए पर लगा दिया जाता है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण आर्थिक पक्ष रहा है। 15 दिनों में उन्हें अच्छे किराए की आमदनी हो जाती है। वैसे कई मकान इस क्षेत्र में चिन्हित हैं। जिन्हें पूर्व से आरक्षित कर दिया गया है। धर्मशालाओं में अधिकतर वैसे श्रद्धालु रहते हैं जो तीन दिन या सात दिन के कर्मकांड के बाद वापस हो जाते हैं। यहां यह बता दें कि 15 व 17 दिन तक के कार्य करने वाले लोग आर्थिक पक्ष से थोड़ा ज्यादा मजबूत होते हैं। इसलिए उन्हें हर तरह की सुविधा चाहिए। वैसे में आवासन गृहों को वैसे लोग नकार चुके हैं और वे अपनी व्यवस्था अच्छे होटलों में करते हैं।

तो फिर, गया ही क्यों?

सात किलोमीटर दूर बोधगया (भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली) में प्रवास करना ज्यादा उचित और सुविधा जनक माना जाता है। सिर्फ उनके पास वाहन की सुविधा उपलब्ध होनी चाहिए। चूंकि बोधगया में शांति के साथ-साथ सफाई भी दिखती है। दिन भर के पूजा-पाठ की थकान के बाद सकुन से श्रद्धालु वहां आवास करते हैं। जिला प्रशासन ने गया और बोधगया के वैसे 68 होटलों व धर्मशाला को यात्री ठहराने की अनुमति दी है। जहां 6200 यात्री ठहर सकते हैं। प्रशासन ने 30 स्कूल और 429 पंडा आवासों को भी इसके लिए अनुमति दी है। ये अनुज्ञप्ति प्रशासन द्वारा वैसे सभी आवासों के जांच के उपरांत दिया गया है। बोधगया में भी भीड़ बढ़ने लगी है। वातानुकूलित कमरे के भाव भी बढ़ गए हैं। होटल और सीजन के अनुसार इनके रेट में उतार चढ़ाव आता है। प्रशासन इसमें कहीं से हस्तक्षेप नहीं करती।

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