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सालों से बदरीनाथ में तपस्या में लीन हैं 13 साधु

भारत-चीन सीमा पर पसरे वीराने में धूसर पहाड़ जिंदगी से बेजार नजर आते हैं। हाड़ कंपा देने वाली हवा के बीच फौजी गतिविधियां ही जीवन का अहसास कराती हैं। करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो चुके हैं। असीम शांति के इस सागर में 13

By Preeti jhaEdited By: Updated: Mon, 01 Dec 2014 02:54 PM (IST)
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गोपेश्वर। भारत-चीन सीमा पर पसरे वीराने में धूसर पहाड़ जिंदगी से बेजार नजर आते हैं। हाड़ कंपा देने वाली हवा के बीच फौजी गतिविधियां ही जीवन का अहसास कराती हैं। करोड़ों हिंदुओं की आस्था के प्रतीक बदरीनाथ धाम के कपाट बंद हो चुके हैं। असीम शांति के इस सागर में 13 साधु भगवद भक्ति में लीन हैं। अंदाज ऐसा मानो इनकी 'वज्रÓ देह से टकराकर मौसम भी पराजित हो गया हो। वस्त्र के नाम पर ये कंबल लपेटे हैं और कुछ दिगंबर रूप में ही यहां रह रहे हैं।

सर्दियों में जब बदरीनाथ धाम सहित यह पूरा उच्च हिमालयी क्षेत्र चार से छह फीट बर्फ से ढक जाता है तो पारा भी माइनस 20 डिग्री पर पहुंच ठिठुरने लगता है। ऐसे में ये साधक अपनी साधना की अलख जगाए रखते हैं। जर्जर काया पर लंबी दाढ़ी उनके जुनून की दास्तां बताने के लिए काफी है। इन्हीं में से एक हैं 52 साल के अमृतानंद। अपना मूल नाम और गांव उजागर करने से इन्कार करते हुए वह कहते हैं कि 'माया के बंधन को तोड़ हम यहां तक पहुंचे हैं, अब उस पर चर्चा करने से क्या लाभ।Ó वह बताते हैं कि हम 12 वर्षो से यहां रह रहे हैं। संकल्प लिया था, उसे पूरा कर रहा हूं। दस वर्षों से बदरीनाथ में तपश्चर्या में लीन 58 वर्षीय स्वामी सुखरामाचार्य दास त्यागी भी यही दोहराते हैं। उनका कहना है कि 'जिस दिन गेरुवा वस्त्र धारण किया तभी घर, संसार त्यागकर भगवान के चरणों में अपने को समर्पित कर दिया था।Ó भोजन व्यवस्था को लेकर ये तपस्वी बताते हैं कि आमतौर पर वे एक ही समय भोजन करते हैं, इसीलिए ज्यादा खाद्य सामाग्री की जरूरत नहीं पड़ती। इतना जरूर है कि खाद्य सामाग्री वे कपाट बंद होने से पहले जमा कर लेते हैं।

12 वर्षो से तप कर रहे 34 वर्षीय युवा साधु धर्मराज भारती उर्फ मौनी बाबा किसी से बात नहीं करते। एक अन्य साधु धर्मराज भारती बताते हैं कि उन्होंने भी वर्ष 2010 तक 12 वर्ष मौन रखा। संकल्प पूरा होने के बाद हरिद्वार कुंभ में स्नान किया। मौनी बाबा का कहना है कि इस धरती पर बदरीनाथ धाम ही तप करने के लिए सही जगह है। ये साधु गुफाओं और धर्मशालाओं में रहकर साधना करते हैं। शीतकाल में जब अलकनंदा भी बर्फ का आवरण ओढ़ लेती है तो बर्फ खुरच कर पीने के पानी की व्यवस्था की जाती है। जोशीमठ के उपजिलाधिकारी एके नौटियाल बताते हैं कि बदरीनाथ में रहने के लिए साधुओं को विशेष अनुमति लेनी होती है। इसके लिए हर साल साधुओं की गोपनीय रिपोर्ट ली जाती है।

बदरीनाथ धाम में कपाट बंद होने के बाद सन्नाटा छा जाता है। वहीं कुछ साधु तप के लिए प्रशासन की अनुमति लेकर बदरीनाथ में ही रहते हैं। कड़ाके की सर्दी और बर्फबारी के बीच साधु कुछ इस तरह तपस्या में लीन रहते हैं।