कौरवों का भाई युयुत्सु ने कौरवों के बदले पांडवों का युद्ध में साथ दिया था
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो धर्मराज युधिष्ठिर ने कौरवों और पांडवों की सेना की ओर देखते हुए कहा, ‘जो भी धर्म की रक्षा के लिए लड़ना चाहते हैं, वे पांडवों की सेना में शामिल हो जाएं।
By Preeti jhaEdited By: Updated: Wed, 23 Nov 2016 01:07 PM (IST)
हस्तिनापुर नरेश धृतराष्ट्र की एक दासी का होनहार पुत्र था युयुत्सु। वह धर्मात्मा था, इसलिए दुर्योधन की अनुचित चेष्टाओं का विरोध करता था। इस कारण दुर्योधन और उसके अन्य भाई उसको महत्व नहीं देते थे। अक्सर उसका उपहास भी करते थे।
जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो धर्मराज युधिष्ठिर ने कौरवों और पांडवों की सेना की ओर देखते हुए कहा, ‘जो भी धर्म की रक्षा के लिए लड़ना चाहते हैं, वे पांडवों की सेना में शामिल हो जाएं।’ युयुत्सु ने कौरवों की सेना का साथ छोड़कर पांडव सेना की ओर से युद्ध करने का निर्णय लिया। इस युद्ध में युयुत्सु ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। युधिष्ठिर ने उसे सीधे युद्ध के मैदान में नहीं उतारा, बल्कि उसे योद्धाओं के लिए हथियारों और रसदकी आपूर्ति व्यवस्था का प्रबंध देखने के लिए नियुक्त किया। उसने अपने इस दायित्व को जिम्मेदारी के साथनिभाया। अभावों के बावजूद हथियारों और रसद की कमी नहीं होने दी। युद्ध के बाद महाराज युधिष्ठिर ने उसे अपना मंत्री बना लिया। धृतराष्ट्र के लिए जो भूमिका विदुर ने निभाई थी, लगभग वही भूमिका युधिष्ठिर के लिए युयुत्सु ने निभाई। इतना ही नहीं, जब युधिष्ठिर महाप्रयाण करने लगे, तो उन्होंने परीक्षित को राजा बनाया। परीक्षित के लिए एक योग्य संरक्षक की जरूरत महसूस हुई। उनकी खोज युयुत्सु पर आकर ही खत्म हुई और उसे परीक्षित का संरक्षक बना दिया। युयुत्सु ने इस दायित्व को भी अपने जीवन के अंतिम क्षण तक पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया। जब भी राजा को किसी कठिन विषय पर महत्वपूर्ण सलाह की जरूरत पड़ती, युयुत्सु आगे बढ़कर उन्हें सही राह दिखाते।