संत रविदास जयंती: कर्म ही पूजा है
संत रविदास जी ने कर्म को ही ईश्वर की सच्ची पूजा बताया है। उनकी जयंती (3 फरवरी) पर विशेष...
By Preeti jhaEdited By: Updated: Tue, 03 Feb 2015 10:06 AM (IST)
संत रविदास जी ने कर्म को ही ईश्वर की सच्ची पूजा बताया
है। उनकी जयंती (3 फरवरी) पर विशेष...भक्तिकाल के संतों में रविदास जी का विशिष्ट स्थान है। उन्होंने सदियों से स्थापित रूढि़यों को तोड़कर धर्म और
ईश्वर की अवधारणा को नई दृष्टि दी। उन्होंने अध्यात्म को मानवीय समानता व कल्याण का विषय प्रतिपादित किया। उन्होंने कर्म को ही पूजा बतलाया। संत कबीर के समकालीन रविदास जी अपना पारंपरिक कार्य करते थे और उसी कार्य में दत्तचित्त होकर परमात्मा के दर्शन भी करते थे। संत रविदास जी के बारे में कुछ कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार, उनकी श्रेष्ठता और धनाभाव को देखकर एक बार एक व्यक्ति उन्हें अमूल्य पारस पत्थर दे गया। कहा जाता है कि पारस पत्थर से लोहे की वस्तु सोने में बदल जाती थी। रविदास जी ने उसे छुआ भी नहीं। काफी समय बाद जब वह व्यक्ति लौटा, तो रविदास जी ने कहा कि पारस पत्थर वहींहै, जहां वह उसे छोड़ कर गया था।
रविदास जी की यह निस्पृहता उनके लोभ रहित चैतन्य स्वरूप का प्रतीक थी। जब गुरु नानक देव जी अपनी यात्रा के दौरान बनारस गए, तो वहां उन्होंने संत रविदास जी की वाणी को एकत्र किया। गुरु अरजन देव जी ने उस वाणी को श्रीगुरुग्रंथ साहिब में शामिल किया। रविदास जी के कुल चालीस शबद श्री गुरु ग्रंथ साहिब में दर्ज हैं। संत रविदास जी ने परमात्मा को प्रीति की डोर से जोड़कर उसे पा लेने की राह जान ली थी, इसीलिए उन्होंने कहा कि परमात्मा से संबंध जोड़ कर अपने 'स्वÓ (अहंकार) को मिटा देना चाहिए, ताकि मन में परमात्मा का ही वास हो। संत रविदास जी की जीवन के प्रति सूक्ष्म दृष्टि थी। उन्होंने कहा कि मनुष्य संसार में जो भी कर ले, अंत में शरीर भस्म हो जाना है। इसलिए कोई भी जाति, कुल या वर्ग हो, सारे अभिमान मिथ्या हैं। उन्होंने कर्म को प्रमुखता दी। संत रविदास जी ने एक ऐसी सामाजिक स्थिति और व्यवस्था की कल्पना की थी, जहां कोई दुख-शोक न हो, कोई चिंता, कोई विघ्न न हो, बस आनंद ही आनंद हो। उसे उन्होंने 'बेगमपुरा शहरÓ का नाम दिया। उनकी कल्पना के शहर में कोई भेद-भाव, कोई ऊंच-नीच नहीं है। जहां बसने वाले लोग आत्मिक गुणों से भरपूर तथा संतोष व धैर्य वाले हैं। रविदास जी का बेगमपुरा आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है।