प्रयत्न करने से कार्य सिद्ध नहीं हो रहा है, तो हमारे प्रयास में कहीं न कहीं कमी है
प्रयत्न करने से कार्य सिद्ध नहीं हो रहा है, तो हमारे प्रयास में कहीं न कहीं कमी है। भगवान की अनुकंपा पाने के लिए पात्र बनना पड़ेगा।
प्राय: लोगों का काफी वक्त शिकवा-शिकायत में व्यर्थ होता रहता है। कभी परिवार के लोगों से तो कभी मित्रों से और कभी समाज और सरकार से शिकवा-शिकायत करते हैं। यही नहीं, अनेक लोग अपने इष्ट देव की शिकायत कर बैठते हैं कि लंबी अवधि से पूजा-पाठ, यज्ञ-अनुष्ठान कर रहे हैं, पर भगवान उनकी मनोकामना पूरी नहीं कर रहे हैं। ऐसे लोग जब अपने इष्टदेव की शिकायत करते हैं, तो उसके दो तरीके से अर्थ निकलते हैं। पहला तो यह कि उनका इष्टदेव है, जिस पर उनकी गहरी आस्था है, वह बड़ा कठोर है, जो लगातार पूजा-उपासना और व्रत-उपवास से भी द्रवित नहीं हो रहे हैं या दूसरा अर्थ यह निकल रहा है कि वे खुद हमारी समस्या का समाधान नहीं करना चाहते। तभी तो पूजा-पाठ के बावजूद जीवन कष्ट में बीत रहा है।
जैसे अयोग्य व्यक्ति को जिम्मेदारी का पद नहीं दिया जाता, अपराधी को पुलिस का अधिकारी नहीं बनाया जा सकता, बल्कि पुलिस का अधिकारी भी अपराध-कर्म में लिप्त पाया जाता है, तो कानून उसे दंड देता है। वैसे ही पूजा-पाठ के बावजूद उपासक कष्ट में है, तो वह अपराधी है और भगवान उसे दंड दे रहे हैं। देखने में आता है कि अनेक लोग घर में वृद्ध मां-बाप की उपेक्षा कर मंदिरों में जाकर भगवान की मूर्ति के आगे प्रसाद चढ़ाते हैं।
बीमार मां एक गिलास पानी मांग रही है, तो उसे डांट-फटकार कर दुर्गा, काली, लक्ष्मी के मंदिर में फल-फूल, नारियल आदि यदि कोई चढ़ाता है, तो क्या मंदिरों में स्थापित देवी-मां इस प्रसाद को स्वीकार करेंगी? सच कहा जाए, तो हमारे मंदिर निकलने के पहले ही दैवी-शक्तियों ने हमारी परीक्षा ले ली और जिस प्रकार हमने वृद्ध मां की आवाज अनसुनी की, तो मंदिर में विराजमान देवी-देवता भी हमारी पुकार अनसुनी करने के लिए पहले से ही तय कर चुके हैं। हम मंदिर पहुंचकर भगवान के सामने अपनी मनोकामना पूरी करने की गुहार लगाते हैं, तो भगवान के पास भी बुद्धि-विवेक और आंख-कान हैं। वे समझ लेते हैं कि हमारे मन में लोगों का अपमान, तिरस्कार, छल-छद्म और धोखे का भाव सदैव विद्यमान रहता है। एक बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि प्रयत्न करने से कार्य सिद्ध नहीं हो रहा है, तो हमारे प्रयास में कहीं न कहीं कमी है। भगवान की अनुकंपा पाने के लिए पात्र बनना पड़ेगा।