गूगल की भारतीय चित्रकार जैमिनी रॉय को खास श्रद्धांजलि, बनाया खास डूडल
20वीं शताब्दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जैमिनी राय एक प्रख्या्त चित्रकार बने। डूडल उनके ब्लैक हॉर्स पेंटिंग से प्रेरित है
By Sakshi PandyaEdited By: Updated: Tue, 11 Apr 2017 02:16 PM (IST)
नई दिल्ली (जेएनएन)। भारत के प्रसिद्ध चित्रकार जैमिनी रॉय की आज 130वीं वर्षगांठ है। इस मौके पर गूगल ने डूडल के जरिये उन्हें श्रद्धांजलि दी है। गूगल ने उनकी पेंटिंग ब्लैक हॉर्स से प्रेरित एक डूडल बनाया है। पश्चिम बंगाल में जन्में इस चित्रकार ने दुनिया भर में भारतीय कला को एक अलग पहचान दिलाई। 20वीं शताब्दी के शुरू के दशकों में चित्रकारी की ब्रिटिश शैली में प्रशिक्षित जैमिनी राय एक प्रख्या्त चित्रकार बने।
कौन थे जैमिनी रॉय ?जैमिनी रॉय का जन्म 11 अप्रैल, 1887 को पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले के बेलियातोर गांव में हुआ था। उनका परिवार जमींदारी से जुड़ा हुआ था। रॉय ने गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट से शिक्षा ली थी। यहां उन्होंने ब्रिटिश एकेडमिक शैली में चित्रकला सीखी। लेकिन वो संतुष्ट नहीं थे। वो बने-बनाए रास्ते पर न चलकर अपने लिए नया रास्ता बनाना चाहते थे। शायद इसी वजह से उन्होंने गांवों के परिदृश्य, जानवरों, आम लोगों, गांव के जीवन को अपने चित्रकारी का विषय बनाया।
उन्हें इसके लिए ब्रिटिश एकेडमी स्टाइल की जरूरत नहीं थी। उन्हें कला की आत्मा और बारीकियों का ज्ञान बंगाल स्कूल के संस्थापक अबनिंद्रनाथ टैगोर से मिला, जो उस समय कॉलेज ऑफ कोलकाता के वाइस प्रिंसिपल थे। उन्होंने ईस्ट एशियन कैलीग्राफी से भी प्रेरणा ली। 1920 के दौरान उनकी पेंटिंग पर राष्ट्रवाद का प्रभाव पड़ा. साथ ही वो ग्रामीण जीवन को भी अपनी तस्वीरों में उभारते रहे. उन्होंने पौराणिक कहानियों और किरदारों को भी अपने चित्रकारी का विषय बनाया।
रॉय ने पश्चिमी कला और भारतीय लोक कला के सम्मिश्रण से अभूतपूर्व चित्रों का निर्माण किया। 1940 के दशक में रॉय की लोकप्रियता चरम पर थी। उन्होंने लंदन और न्यूयॉर्क में अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगायी। 1946 में रामायण पर बनाए उनके 17 कैनवास उनकी कला का सर्वोच्च शिखर समझे जाते हैं। करीब 60 साल तक जैमिन राय ने भारत सहित दुनिया भर में हुए बदला को दृश्य भाषा से प्रस्तुत किया। यही वजह है कि उन्हें आधुनिकतावादी महान कलाकारों में से माना जाता है। कला में उनके इसी योगदान को देखते हुए 1955 में भारत सरकार ने उन्हें पदम भूषण सम्मान से नवाजा। 1972 में दुनिया को अलविदा कह गए।
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