उपभोक्ताओं को नहीं मिल पा रहा कॉल ड्रॉप से छुटकारा
कॉल ड्रॉप के मामले में टेलीकॉम कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए ट्राई ने टेलीकॉम कंपनियों के खिलाफ जुर्माना लगाने का प्रयास किया था
नई दिल्ली (संजय सिंह)। तमाम प्रयासों के बावजूद कॉल ड्रॉप की समस्या पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। यह अलग-अलग रूपों में उपभोक्ताओं का सिरदर्द बनी हुई है। पहले टेलीकॉम कंपनियां स्पेक्ट्रम और टावर की कमी का बहाना बनाती थीं। लेकिन स्पेक्ट्रम आवंटन के अलावा पिछले डेढ़ साल में दो लाख से यादा टावर लगाए जा चुके हैं। इसके बावजूद समस्या ज्यों की त्यों हैं। टेलीकॉम कंपनियों पर लगाम लगाने के लिए ट्राई ने टेलीकॉम कंपनियों के खिलाफ जुर्माना लगाने का प्रयास किया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इन्कार के बाद वह भी चुप्पी मार कर बैठ गया है। राजधानी दिल्ली में ही कॉल ड्राप की समस्या फिर से ग्राहकों के लिए सिरदर्द बन गई है। ग्राहकों की तरफ से कॉल बीच में कटने के अलावा कॉल कनेक्ट न होने की शिकायतें भी हैं। बीते साल सरकार के कठोर रवैये के बाद मोबाइल कंपनियों ने सेवाओं में कुछ सुधार किया था। लेकिन डाटा की लड़ाई में मोबाइल फोन पर वॉयस कॉल की गुणवत्ता लगातार गिरती जा रही है।
पहले टेलीकाम कंपनियां कॉल ड्रॉप के लिए स्पेक्ट्रम व टावरों की कमी का बहाना बनाती थीं। जिस पर सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में स्पेक्ट्रम की नीलामी की। लेकिन इसमें 2300, 1800 900, 800 मेगाहट्र्ज की बिक्री तो हुई मगर अत्यधिक ऊंची कीमत के कारण 700 मेगाहट्र्ज की खरीदारी से ऑपरेटर दूर ही रहे। अब टेलीकॉम कंपनियां इसे बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रही हैं। उनका कहना है कि इन दिनों सबसे लोकप्रिय 4जी नेटवर्क इसी स्पेक्ट्रम पर चलता है और उसकी कमी अभी भी यों की त्यों है। इसके अलावा नेट न्यूट्रेलिटी का मुद्दा भी है। जिसके कारण टेलिकॉम कंपनियां डाटा सर्विस की अलग कीमत नहीं रख सकतीं।
कॉल ड्रॉप की मुश्किल से निपटने के लिए दिसंबर में सरकार ने दिल्ली, मुंबई समेत कई शहरों में इंटीग्रेटेड वॉयस रिस्पांस सिस्टम (आइवीआरएस) शुरू कर दिया। जिसके तहत कोई भी उपभोक्ता 1955 नंबर पर एसएमएस कर कॉल ड्रॉप पर अपनी शिकायत अनुभव दर्ज करा सकता है। लेकिन इन शिकायतों के बावजूद कॉल ड्रॉप की मुश्किल से उपभोक्ताओं को निजात नहीं मिल रही। ट्राई के जनवरी 2017 के आंकड़ों के मुताबिक, कॉल ड्रॉप के मामले में सबसे यादा खराब स्थिति सरकारी कंपनी एमटीएनएल की है। जनवरी में इसकी औसतन 7.485 कॉल्स ड्रॉप हुईं। दिसंबर तक एमटीएनएल ने दिल्ली में केवल 21 टावर लगाए थे। कम उपभोक्ता बेस के कारण इसकी टावर लगाने में विशेष रुचि नहीं है।
एमटीएनएल के बाद सबसे खराब स्थिति आइडिया की है जिसकी औसतन 1.339 फीसद कॉल्स रोजाना ड्रॉप होती हैं। दिसंबर तक इसके 111 टावर दिल्ली में लग चुके हैं। 1.274 फीसद कॉल ड्रॉप दर के साथ वोडाफोन तीसरे नंबर पर है। एयरटेल के दिल्ली में सबसे यादा 236 टावर लग चुके हैं। इसके बावजूद उपभोक्ताओं की अधिक संख्या व घनी बस्तियों व इमारतों के भीतर यादा उपयोग के कारण इसकी सर्विस क्वालिटी में अपेक्षित सुधार नहीं हो पा रहा है। एयरटेल ने टावर लगाकर कॉल ड्रॉप की स्थिति में कुछ सुधार तो किया है। लेकिन अभी भी टावर के चार किमी के दायरे में इसके उपभोक्ताओं को 0.614 फीसद कॉल ड्राप का सामना करना पड़ता है।
एयरसेल की कॉल ड्रॉप दर 0.935 फीसद है। इसके केवल 95 टावर राजधानी में हैं। दूसरी ओर सबसे नया सर्विस प्रोवाइडर होने के बावजूद रिलायंस की स्थिति सबसे बढ़िया है। जनवरी में दिल्ली में इसकी सबसे कम केवल 0.312 फीसद कॉल्स ड्रॉप हुईं। ऐसा कंपनी द्वारा टावरों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी किए जाने से संभव हुआ। दिसंबर तक इसने 191 टावर लगा दिए थे। दूसरे नंबर पर बेहतर स्थिति एमटीएस की है। केवल 33 टावर होने के बावजूद इसके प्रभाव वाले इलाकों में जनवरी में केवल 0.348 फीसद कॉल ड्रॉप रिकार्ड की गईं हैं।
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