1 जुलाई के बाद 4G और कॉल्स के लिए चुकानी होगी इतनी कीमत, जानिए
इस पोस्ट में हम आपको जीएसटी के मोबाइल बिल्स पर पड़ने वाले असर के बारे में बताने जा रहे हैं
नई दिल्ली (जेएनएन)। श्रीनगर में बीते महीने हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में टेलीकॉम क्षेत्र के लिए मूलत: दो दरें तय हुईं। दूरसंचार सेवाओं और टेलीफोन सेट के लिए 18 फीसद दर निर्धारित की गई जबकि मोबाइल फोन और मोबाइल के पार्ट्स को 12 फीसद की श्रेणी में रखा गया। इसका मतलब यह हुआ कि पहली जुलाई के बाद जब जीएसटी अमल में आएगा तो आपके मोबाइल बिल में वृद्धि हो जाएगी। यानी आपको वर्तमान के मुकाबले अपने बिल पर करीब तीन फीसद अधिक शुल्क चुकाना होगा क्योंकि अभी आप सर्विस टैक्स के तौर पर अपने बिल पर 15 फीसद शुल्क देते हैं।
मोबाइल फोन होंगे सस्ते:
जहां तक मोबाइल फोन हैंडसेट का सवाल है जीएसटी आने के बाद इसकी कीमत में कमी आएगी। वर्तमान में पूरे देश में औसतन 14.5 फीसद वैट लगता है। लेकिन जीएसटी के दायरे में आने के बाद मोबाइल फोन पर 12 फीसद शुल्क लगेगा। इसका मतलब यह है कि आपको जुलाई के बाद मोबाइल फोन खरीदने पर कीमत कम चुकानी होगी। लेकिन यह तभी संभव होगा जब मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनियां शुल्क की दरों में होने वाली इस कमी का लाभ अपने ग्राहकों को दें।
ऐसे उठा पाएंगे कम कीमत का फायदा:
सरकार की कोशिश है और वह लगातार इस बात के प्रयास कर रही है कि कंपनियां दरों में कमी का फायदा ग्राहकों तक पहुंचाएं। इसके लिए ग्राहकों को भी आधिकारिक बिक्री चैनल से ही ये उत्पाद खरीदने होंगे। तभी कंपनियों की तरफ से मिलने वाले लाभ का फायदा उठा पाएंगे।
प्रीपेड प्लान होंगे महंगे:
देश में जीएसटी लागू होने के बाद टेलीकॉम क्षेत्र में सबसे अधिक प्रभाव यदि पड़ेगा तो वह मोबाइल सेवाओं पर होगा। इनमें भी प्रीपेड ग्राहक सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। चूंकि मोबाइल सेवाएं लेने वाले ग्राहकों में 90 फीसद हिस्सेदारी प्रीपेड ग्राहकों की ही है इसलिए माना जा रहा है कि सभी प्रीपेड प्लान महंगे हो जाएंगे। मोबाइल कंपनियां 100 रुपये से 1000 रुपये की कीमत में मिलने वाले सभी फुल टाक टाइम प्लान पर लगने वाले सर्विस टैक्स को इसी में शामिल कर लेती हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो 15 फीसद सर्विस टैक्स का बोझ कंपनियां खुद ही उठाती हैं। लेकिन ये कंपनियां जीएसटी लागू होने के बाद टैक्स का बोझ बढ़ जाने के बाद भी उठाएंगी या नहीं, यह अभी स्पष्ट नहीं है।
फुल टॉकटाइम प्रीपेड ग्राहकों को राहत:
इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि कंपनियां फुल टाकटाइम का प्लान लेने वाले अपने ग्राहकों को जुलाई के बाद भी ये राहत जारी रख सकती हैं। हालांकि ऐसा करने से उन पर तीन फीसद कर का बोझ बढ़ जाएगा। मोबाइल कंपनियों की तरफ से कहा जा रहा है कि इस तरह की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। इनमें फुल टाकटाइम वॉइस प्लान के साथ साथ डाटा प्लान भी शामिल हैं। दरअसल मोबाइल सेवा देने वाले तीन बड़े ऑपरेटरों के 35-40 फीसद प्रीपेड ग्राहक फुल टाकटाइम प्लान ही चुनते हैं। इसलिए ये कंपनियां नहीं चाहती कि 18 फीसद दर के चलते प्लान महंगा होने से ये ग्राहक उनसे छिटक जाए। वैसे भी रिलायंस जियो के बाजार में प्रवेश के बाद मोबाइल सेवा देने वाली कंपनियां दबाव में हैं। इसलिए कम से कम तीन बड़ी कंपनियों की तरफ से यह स्पष्ट संकेत है कि जुलाई के बाद भी वे फुल टाकटाइम और डाटा प्लान पर कर का बोझ खुद ही वहन करती रहेंगी।
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