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इ पटना है महाराज

दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक पटना आएं, तो आप खुद महसूस करेंगे कि बाहर से यह भले ही थोड़ा खुरदरा नजर आता हो, पर अंदर से रेशम-सा मुलायम है

By Babita KashyapEdited By: Updated: Thu, 20 Apr 2017 01:33 PM (IST)
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इ पटना है महाराज
पाटलिपुत्र से पटना बनने के सफर में यह शहर कई पड़ावों से होकर गुजरा है। मौर्य वंश हो या गुप्त, मुगलिया सल्तनत का दौर हो या अंग्रेजों की हुकूमत, हर दौर की झलक मिलती है यहां। दुनिया के प्राचीन शहरों में से एक पटना आएं, तो आप खुद महसूस करेंगे कि बाहर से यह भले ही थोड़ा खुरदरा नजर आता हो, पर अंदर से रेशम-सा मुलायम है यह शहर और यहां रहने वाले लोग भी...

शहर के सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखना चाहते हैं तो 1917 में स्थापित पटना संग्रहालय आकर अपने प्राचीन धरोहरों और संबंधित दस्तावेजों को देख सकते हैं। पटना संग्रहालय कोतवाली थाने के निकट स्थित है। यहां 50 हजार से भी अधिक वस्तुओं का संग्रह है। प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान काल तक के जीवन-चक्र की कई निशानियां मौजूद हैं। पुरा-पाषाण काल में इस्तेमाल किए जाने वाले अनगढ़ पत्थर के उपकरण यहां मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु से लाए गए हैं। यह एक पेड़ इतना पुराना है कि पत्थर का बना प्रतीत होता है। 

यह संग्रहालय इतना रोमांचित करता है कि लोग इसे 'जादू का घर' भी कहते हैं। यह भवन मुगल और राजपूत वास्तुकला शैली में बनाया गया है। अंग्रेजों के शासनकाल में पटना के अलावा आसपास पाई जाने वाली ऐतिहासिक कलाकृतियों को संरक्षित करने के लिए बनाया गया था, जिसमें यक्षिणी की मूर्ति भी है। यह शहर पढऩे-पढ़ाने और शोधार्थियों का प्रिय पड़ाव भी है। जैसे खुदाबख्श लाइब्रेरी में दुनिया भर के शोधार्थी प्रति वर्ष आते हैं। इसमें 22 हजार पांडुलिपियों का संग्रह है, खासकर मुगलकालीन। इनमें सबसे खास है अकबरकालीन फारसी में लिखी गई तारीख-एखा नदान-ए-तैमूरिया, जिसका नाम वल्र्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज है।

बनी रहे पटना की शान

प्रख्यात कवि एवं बिहार गीत के रचयिता सत्य नारायण के मुताबिक, पटना का मिजाज कभी नहीं बदला। ये वो पटना है, जो हजारों साल पहले भी राजधानी था और आज भी राजधानी है। ये वो पटना है, जिसकी मेधा आर्यभट्ट से लेकर तथागत तक जानी परखी जा सकती है। कहते हैं कि मगध की धरती लड़ाकू है, मगर ये अपने लिए नहीं देश और समाज के लिए लड़ा है। आज भी पटना में गंगा का वही किनारा है, जहां छठ पर जनसैलाब उमड़ता है। वही गांधी मैदान है, जहां हर शाम मेला लगता है। आधुनिक प्रतीकों के साथ-साथ पटना में आप मौर्यकालीन अगमकुआं देखकर दांतों तले अंगुलियां दबा लेंगे। मान्यता है कि सम्राट अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या कर उनके शव इसमें फेंके थे। शख्सियतों की बात करें तो उनके बिना भारत का इतिहास पूरा नहीं हो सकता।

अशोक, चंद्रगुप्त, चाणक्य की बात हो या फिर देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद और संपूर्ण क्रांति के प्रणेता जयप्रकाश नारायण की। आज यहां की शान लोकगायिका शारदा सिन्हा भी हैं। वे कहती हैं, 'यहीं से मैंने भारतीय नृत्य कला मंदिर में नृत्य सीखा।' सुपर-30 के संस्थापक आनंद कुमार कहते हैं, 'प्रतिदिन कई किमी. पैदल चलकर गर्दनीबाग हाईस्कूल जाता था। जब मैं संघ्द ार्ष कर रहा था, तब बहुत सारे लोगों ने मुझे पटना से बाहर जाने की सलाह दी थी। मैंने उनकी बात नहीं मानी। इसी ऐतिहासिक शहर में रहते हुए मैंने करीब 450 बच्चों की जिंदगी बदली है।'

यहां आए बिना यात्रा अधूरी

मनेरशरीफ की दरगाह: यह पटना से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। इसका इतिहास 1000 वर्ष पुराना है। यह दरगाह गंगा-जमुनी तहजीब का बेजोड़ नमूना है। यहां के चार हजारी मुहल्ले के हनीफ मुहम्मद कहते हैं, 'यहां सबसे प्रसिद्ध दरगाह मखदूम शाह कमालउद्दीन मनेरी और सैय्यद दौलत मनेरी की है। उनका मकबरा मुगल स्थापत्य का उत्कृष्ट नमूना है। इसकी दीवारों पर कुरआन की आयतें लिखी हुई हैं। उत्तर प्रदेश के चुनारगढ़ से मंगवाए गए पत्थरों से निर्मित इस मकबरे के चारों ओर लगायी गयी फुलवारी सुंदरता को चार चांद लगाती है। 'मुगल बादशाह बाबर की जीवनी 'बाबरनामा' में भी इस स्थान का जिक्र है।

वैशाली का स्तूप: वैशाली पटना से करीब 50 किलोमीटर दूर स्थित है। यहां कोल्हुआ यानी बखरा गांव में बौद्धकालीन स्तूप और अशोक स्तंभ है। वैशाली के स्थानीय लोग अशोक स्तंभ को 'भीमसेन की लाठी' कहकर पुकारते हैं।

नालंदा विश्वविद्यालय: पटना से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर विश्वविख्यात नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष हैं। यह दुनिया का पहला आवासीय और प्राचीन विश्वविद्यालय था, जहां देश-विदेश के करीब 10 हजार छात्र और 2,000 शिक्षक रहते थे। फिलहाल यहां 14 हेक्टेयर क्षेत्र में इसके अवशेष हैं। इस नाम से नया केंद्रीय विश्वविद्यालय खोला गया है। 

पावापुरी का जलमंदिर: पटना से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर पावापुरी है। यहां कमल तालाब के बीच संगमरमर से बना शानदार जल मंदिर है। जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर को यहीं मोक्ष की

प्राप्ति हुई थी। मंदिर का निर्माण भगवान महावीर के बड़े भाई राजा नंदिवद्र्धन ने कराया था। तालाब के किनारे से जल मंदिर तक पहुंचने के लिए 600 फीट लंबा पत्थर का पुल भी है। 

राजगीर के गर्मकुंड: पांच पहाडिय़ों से घिरा राजगीर पटना से 100 किलोमीटर दूर है। यह पाटलिपुत्र की प्राचीन राजधानी रहा है। महाभारत में भी राजा जरासंध की नगरी के रूप में इसका जिक्र है। यह मनोरम स्थल बौद्ध पर्यटकों की आस्था का भी केंद्र है। यहां गर्म पानी के 22 कुंड हैं। पुरातात्विक महत्व के स्थलों में सप्तपर्णि गुफा, विश्व शांति स्तूप, सोन भंडार गुफा, मणियार मठ, जरासंध का अखाड़ा, बिम्बिसार की जेल और जापानी मंदिर हैं। दो पहाड़ों के बीच रोप-वे यहां का मुख्य आकर्षण है। 

इन्हें भी जानें 

-10वें और सिखों के अंतिम गुरू गोविंद सिंह का जन्म यहीं हुआ था। यहां पटना साहिब में तख्त श्री हरिमंदिर पवित्र धर्मस्थल है।

-पालिन फोऊ चीनी यात्री फाह्यान ने पटना को यह नाम दिया था।

-11 अगस्त, 1942 को सचिवालय में झंडा फहराने वाले छात्रों को अंग्रेजों ने छलनी कर दिया था। उनकी स्मृति में

-पुराने सचिवालय के पास शहीद स्मारक है।

-वैशाली में स्थापित किया गया था दुनिया का पहला गणराज्य।

-3 नदियों गंगा, सोन और पुनपुन से घिरा है यह शहर। गंडक भी इसी के पास गंगा में आकर मिलती है।

 यहां की सैर कैसे-कब?

हवाई, सड़क और रेल तीनों में किसी भी मार्ग से आप भारत के इस समृद्ध ऐतिहासिक शहर की सैर कर सकते हैं। देश के सभी बड़े शहरों से यहां हवाई मार्ग से जयप्रकाश नारायण इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। पटना देश के व्यस्ततम रेलमार्ग में से एक है। यह बड़े शहरों से जुड़ा है। सड़क मार्ग से भी यहां सरकारी और निजी बस सेवा से यहां पहुंच सकते हैं। यहां आने के लिए अक्टूबर से फरवरी के बीच का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।

ये हैं यहां की नई पहचान

सिर्फ गोलघर, बिस्कोमान भवन और महावीर मंदिर से ही नहीं है पटना की पहचान, बल्कि इसमें बेली रोड का बिहार संग्रहालय भी है, गांधी मैदान का अशोक कन्वेंशन हॉल और शहर को आपस में जोडऩे वाले आधा दर्जन नए

फ्लाईओवर भी। आज यह हर कदम बदला-बदला सा है।

500 करोड़ से बन रहा बिहार म्यूजियम

बेली रोड पर हड़ताली मोड़ के समीप बन रहे बिहार म्यूजियम का डिजाइन दूर से ही लोगों को आकर्षित करता है। 13.5 एकड़ जमीन पर करीब 500 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण किया जा रहा है। बिहार म्यूजियम के  अपर निदेशक जेपीएन सिंह ने बताया कि फिलहाल चिल्ड्रेन गैलरी, डिस्कवरी गैलरी व ओरिएंटेशन गैलरी दर्शकों के लिए खोल दिए गए हैं। अक्टूबर से यह पूर्ण स्वरूप में आ जाएगा।

चमचमाता कन्वेंशन सेंटर

गांधी मैदान के पास से पहली बार गुजरने वाले लोग ओवल शेप वाले कन्वेंशन सेंटर को एक बार रुककर जरूर देखते हैं। 490 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा यह भवन देश के सबसे बड़े कन्वेंशन सेंटर में से एक होगा। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह इमारत 90 फीसद स्टील से बनी है। अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं से लैस इस कन्वेंशन सेंटर में करीब 5,000लोगों के बैठने की व्यवस्था है। इसी परिसर में ज्ञान भवन भी बन रहा है। इस पांच मंजिला भवन में आठ लिद्ब्रट और चार एक्सलेटर लगे हुए हैं। इसमें पांच कांफ्रेंस हॉल हैं।

मरीन ड्राइव से निहारिए गंगा नदी

दीघा से दीदारगंज तक गंगा नदी के किनारे 21.5 किलोमीटर लंबा छह लेन वाला मरीन ड्राइव जल्द ही पटना के सबसे बड़े आकर्षणों में से एक होगा। 2013में ही इसके निर्माण की शुरुआत हो गई थी, जिसके वर्ष 2020 तक

बनकर तैयार हो जाने की उम्मीद है। लगभग 3500 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा मरीन ड्राइव न केवल पर्यटकों को आकर्षित करेगा, बल्कि शहर आने वाली गाडिय़ों को भी नई रद्ब्रतार देगा। इसके बन जाने के बाद राजधानी में गाडिय़ों का दबाव आधे से भी कम हो जाएगा।

नया विधानमंडल भवन

एकबारगी देखने पर यह दिल्ली के संसद भवन की तरह दिखता है। भवन निर्माण विभाग के प्रधान सचिव अमृत लाल मीणा कहते हैं कि इसकी डिजाइन ऐसी है कि दिन में बिना बिजली के भी यह रोशन रहता है। इसका नया भवन 25,840वर्गमीटर क्षेत्र में बना है। विधानमंडल के संयुक्त सत्र के लिए सेंट्रल हॉल भी है। इसमें 525 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। यह गोलाकार भवन 118फीट ऊंचा है। 

ये नए मिजाज का शहर है

सद्गुरु शरण

गंगा तट, बाजार और सड़कों-गलियों में घूमते हुए यह यकीन करना मुश्किल है। पटना चिर युवा है जो आपको कभी थकने नहीं देता। उदास नहीं होने देता। कोई एक विशिष्टता चुननी हो तो वह यहां के युवाओं में देख सकते हैं। वे बिंदास, पारदर्शी, मस्त, आधुनिक और बेहद सरोकारी नजर आएंगे जो सांस्कृतिक विरासत को सीने में छिपाए दुनिया की हर आधुनिकतम शैली अपनाने को आतुर हैं।

साधनहीन परिवारों के मेधावी बच्चों को आइआइटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में दाखिला दिलाने के लिए असाधारण मुहिम चला रहे सुपर-30 कोचिंग के संचालक आनंद कुमार हों या फिर म िलन बस्तियों के बच्चों को शिक्षा देने के लिए 'बावले ज्ञानशालाÓ के संचालक ऋषिकेश नारायण, ऐसे युवा महानगरों में जल्दी नहीं मिलते। पढऩे और पढ़ाने का ऐसा जुनून बाकी शहरों में नहीं दिखता। शायद यही वजह है कि हर पब्लिशर अपनी किताबें सबसे पहले पटना भेजता है। यहां गांधी मैदान में आयोजित होने वाले पुस्तक मेले में साल दर साल बढ़ रही युवाओं की मौजूदगी यह भ्रम तोड़ती है कि युवाओं की किताबें पढऩे में दिलचस्पी घट रही है।

यही बात पटना के पुस्तकालयों में युवाओं की भीड़ से साबित होती है। जीवन की हर जरूरत से संबंधित हर प्रतिष्ठित ब्रांड के स्टोर की पटना में मौजूदगी साबित करती है कि इस शहर के लोग, खासकर युवा किस तरह दुनिया की तरक्की के साथ कदमताल कर रहे हैं। शहर के युवकों में लड़कियों के प्रति सम्मान की शानदार परंपरा दिखती है। लड़कियों के साथ यौन अपराध की घटनाएं पटना में अन्य महानगरों के मुकाबले नगण्य हैं। अपने संस्कारों से लगाव और आधुनिकता अपनाने की आतुरता ही पटना की विशिष्टता है, जो गंगा तट पर बसी बिहार की राजधानी को अन्य नगरों से अलग खड़ा करती है।

पटनिया स्वाद बेमिसाल 

खाने-पीने के शौकीन हैं तो समझ जाइए आप एक ऐसे शहर में हैं जहां गली-गली स्वाद का पड़ाव है। मीठा खाना पसंद करते हैं या नमकीन दोनों के दीवानों के लिए मुफीद जगह है यह शहर। यहां आकर चंद्रकला जरूर खाएं। नाम की तरह ही स्वाद  में भी यह अनोखा आनंद देगा।

पटना स्टेशन के नजदीक महावीर मंदिर के ठीक पीछे जहां प्रसाद के लड्डू बिकते हैं, वहीं शाही चंद्रकला की दुकान है। करीब 40 वर्ष पुरानी दुकान को चलाने वाले भोला जी बताते हैं, 'इसकी ऊपरी परत मैदे से बनती है और अंदर खोवा और ड्राइ फ्रूट्स डाले जाते हैं। घी में छानकर यह चीनी की चाशनी में डुबाई जाती है।' 60 के दशक में एमएफ शाही ने दुकान की स्थापना की थी। अपने अनोखे स्वाद के कारण जल्द ही यह मिठाई लोकप्रिय हो गई। पटना सिटी की कचौड़ी गली स्थित 150 साल पुरानी दुकान की स्पेशल मिठाई खुरचन के दीवाने विदेशों में भी हैं।

मनेर का लड्डू भी कम स्पेशल नहीं। इस लड्डू का स्वाद चखे बिना पटनिया स्वाद अधूरा है।

लिट्टी चोखा के बिना पटना की बात पूरी नहीं होती। यह वास्तव में भोजपुर का व्यंजन है। पटना जंक्शन से बमुश्किल 500 मीटर दूर न्यू मार्केट में पुरानी लिट्टी की दुकान है। यह दुकान 60 साल पुरानी है। दुकानदार अजय कुमार चौरसिया बताते हैं, 1956 में उनके पिता गोविंद प्रसाद चौरसिया ने इसकी शुरुआत की थी।

उनके मुताबिक, 'लिट्टी-चोखे में मसाले की मात्रा सही होनी चाहिए। लिट्टी के मसाले के लिए सत्तू में मिर्च, नमक, जीरा, अजवाइन, लहसुन और थोड़ा-सा सरसों का तेल डालते हैं। इसके बाद आटे की लोई में उसे भरकर कोयले की आंच पर धीरे-धीरे सेंकाई की जाती है। लिट्टी सेंकना भी एक आर्ट है।' लिट्टी के साथ परोसे जाने वाले चटक चोखे के बारे में अजय बताते हैं कि, 'उबले आलू के साथ कोयले की आंच पर पकाए हुए बैंगन और टमाटर को मिलाकर उसमें प्याज, नमक, हरी मिर्च, धनिया पत्ता, सरसों तेल मिलाया जाता है।'

शॉपिंग के पड़ाव

पटना में शॉपिंग करने को उत्सुक हैं, तो इसके लिए ज्यादा भटकने की जरूरत नहीं। पांच किलोमीटर के दायरे में ही तीन-चार बड़े और पुराने मार्केट हैं। यहां कपड़े से लेकर ज्वेलरी तक की खरीदारी की जा सकती है।

न्यू मार्केट

यह पटना जंक्शन के पास है। बाजार का दायरा महावीर मंदिर की सीमा से ही शुरू हो जाता है। इस बाजार में आप खाने-पीने की दुकानों के साथ-साथ बाकी सभी जरूरी चीजों की खरीदारी कर सकते हैं। यहां बड़ी संख्या में फुटपाथी दुकानें भी हैं, जहां सस्ते दामों पर खरीददारी की जा सकती है।

हथुआ मार्केट

यह मार्केट गांधी मैदान के नजदीक है। यह काफी पुराना बाजार है। बारी पथ पर लगभग तीन एकड़ में बने हथुआ मार्केट में आए बिना पटना के लोगों की शादी की शॉपिंग पूरी नहीं होती। हथुआ मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष मुकेश जैन के अनुसार, 1959 में हथुआ महाराज बहादुर वीरेंद्र प्रसाद शाही ने इस बाजार की स्थापना की थी। यहां के दुकानदारों एवं ग्राहकों के बीच कई पीढिय़ों का रिश्ता है। यही यहां की सबसे बड़ी खासियत है। मार्केट में ही मोटा भाई साड़ी वाला की दुकान है। दुकान के मालिक विष्णु अग्रवाल कहते हैं, हथुआ मार्केट मुख्य रूप से रेडिमेड

कपड़ों के लिए ही जाना जाता है। यहां न केवल राजधानी बल्कि राज्य के कोने-कोने से ग्राहक आते हैं। पहले हथुआ मार्केट के बाहर हर मंगलवार को 'मंगला हाट' के नाम से फुटपाथी बाजार लगता था जो समय के साथ रोज के बाजार में तब्दील हो गया। दिल्ली के सरोजनी नगर मार्केट की तरह यहां भी आप स्ट्रीट शॉपिंग कर सकते हैं।

पटना मार्केट

अशोक राजपथ पर पटना मार्केट है, जो यहां के सबसे पुराने बाजारों में से एक है। 1947 में बना यह मार्केट महिलाओं का पसंदीदा शॉपिंग प्वाइंट है। यहां महिलाओं की खासी संख्या देखने को मिलती है। ज्वेलरी से लेकर सैंडल तक के लिए वे इसी मार्केट में आती हैं। मौर्यालोक कॉम्प्लेक्स स्टेशन से आधे किलोमीटर की दूरी पर ही यह बाजार स्थित है। शाम को यहां की रौनक देखते बनती है। यह पटना का बड़ा मल्टीप्लेक्स मार्केट है, जहां लोग बड़ी संख्या में आते हैं। मौर्यालोक शॉपकीपर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेश कुमार डब्लू बताते हैं कि 1985 में बने इस मार्केट में आपको सभी ब्रांडेड कंपनियों के शोरूम मिल जाएंगे। यहां दक्षिण भारतीय खाने से लेकर कांटिनेंटल, हर तरह के खाने-पीने का स्वाद ले सकते हैं। हैंडीक्राद्ब्रट आइटम की खरीदारी भी कर सकते हैं।

आइते हिला पटना...

रे अजयवा..। आइते हिला पापा। पटनहिया संवाद की लोकल बानगी है यह। प्रत्येक क्रियावाचक शब्द में हिला, यानी आइते हिला, जाइते हिला। यह अनायास नहीं है। दरअसल, पटना की मूल भाषा मगही है, जिसमें हे, हल और थिन का प्रयोग बहुतायत में है। वहीं, पटना के उत्तर से सटे हाजीपुर इलाके में वज्जिका, पश्चिम में कोईलवर से सटे भोजपुरी, दक्षिण और पूरब में मगही तथा पटना शहर में मैथिली, भोजपुरी, अंगिका, वज्जिका और मगही सब बोलियों का प्रभाव है। इसी मिश्रित प्रभाव से निकली पटनिया या पटनहिया बोली। भाषाविद राजेंद्र प्रसाद सिंह बताते हैं कि सिंधु सभ्यता में चित्रों से भाषा के भाव का प्रकटीकरण हुआ है। ऐसा ही चित्र साम्य पाटलिपुत्र में भी दिखता है। पटना म्यूजियम में लगी यक्षिणी की मूर्ति के सिर पर बना गोल आभूषण ठीक वैसा ही है जैसा सिंधु सभ्यता में प्राप्त मूर्तियों का है।

आधुनिक पटना की बोली मिश्रित हो गई है। का हो भईया, का ईयार, का ऐ बाबा, क्या गुरू और आह्लाद के क्षण में जिय, जिय ए जिला के जवान जैसे संबोधन यहां की बोलचाल की भाषा में आम हैं। वहीं सजग तबका भी मिलते ही तपाक से पूछता है-का भाईजी, का हाल बा।

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