कभी ये जगह थी दिल्ली की लाइफलाइन
सागर जैसी थी रिंग रोड जिसमें तमाम कालोनी से आने वाली सड़कें उसी तरह से मिल जाती थीं जैसे छोटी नदियां समुद्र में समा जाती हैं।
By Babita KashyapEdited By: Updated: Sat, 09 Jul 2016 11:10 AM (IST)
रिंग रोड। 87 किलोमीटर लंबी। कभी थी दिल्ली की लाइफलाइन। लेकिन अब ये भी किसी सामान्य
सड़क की तरह ही हो चुकी है। यकीन नहीं होता कि इस पर जाम लगने लगा है। साल 1965 के आसपास दिल्ली के शिखर नेताओं
जैसे चौधरी ब्रह्म प्रकाश, जग प्रवेश चंद्र, विजय कुमार मल्होत्रा ने रिंग रोड के निर्माण के संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने विस्तार से प्रस्ताव रखा। इंदिरा गांधी ने सारे प्रोजेक्ट में निजी दिलचस्पी दिखाई। पढ़ें: तो इस वीकेंड दिल्ली का कौन-सा Haunted Place देखना चाहेंगे आप
उसके बाद रिंग रोड के निर्माण पर काम चालू हो गया। ये सत्तर के शुरुआती दौर की बातें हैं। और फिर 1972 से रिंग रोड पर डीटीसी ने मुद्रिका बस सेवा चालू कर दी। तब दिल्ली में कहते थे कि मुद्रिका में बैठकर आप सारी राजधानी को देख सकते हैं। ये बात सच थी। अगर रिंग रोड पर चलने वाली मुद्रिका बस सर्विस की बात करें तो ये शालीमार बाग, वजीरपुर, शकरपुर टेलीफोन एक्सचेंज, ब्रिटानिया चौक, पंजाबी बाग, बसई दारापुर, राजा गार्डन, नारायणा, धौला कुआं, मोती बाग, आरके पुरम, नरौजी नगर, एम्स, साऊथ एक्सटेंशन, लाजपत नगर, सराय काले खां, आइटीओ, जीटीबी नगर वगैरह से होते हुए फिर शालीमार बाग तक करीब डेढ़ से दो घंटे में पहुंचती है। वहीं 90 के दशक तक सफर एक घंटे में पूरा हो जाता था रिंग रोड के निर्माण करने के पीछे एक इरादा ये भी था कि इससे सटी कालोनियों में रहने वाली आबादी इस पर आकर अपनी मंजिल तक पहुंच जाए। यानी रिंग रोड से बस पकड़ सकें।तब कार कहां होती थीं दिल्ली वालों के पास। कहें तो सागर जैसी थी रिंग रोड जिसमें तमाम कालोनी से आने वाली सड़कें उसी तरह से मिल जाती थीं जैसे छोटी नदियां समुद्र में समा जाती हैं। बदले हालात 1984 के बादआप कह सकते हैं कि साल 1982 के एशियाई खेलों तक तो सब कुछ सामान्य गति से चलता रहा रिंग रोड का रुतबा बना रहा। उसके बाद दिल्ली में मानों जनसंख्या विस्फोट होने लगा। तब तक कमोबेश दिल्ली रिंग रोड के आसपास ही बसी थी।उसके बाद तो बीसियों इलाके रिंग रोड से मीलों दूर बसने लगे। और फिर मारुति-800 के 1984-85 में सड़कों पर आने के साथ ही दिल्ली में कार खरीदने की महामारी तेजी से फैली। मोटर साइकिलों की भी सेल बढ़ी। नतीजा ये हुआ कि बाकी सड़कों की तरह रिंग रोड के कुछ भागों में भी जाम रहने लगा।पढ़ें: मानसून में अवश्य देखें झारखंड के ये प्रमुख आकर्षणसबसे पहले जाम को आश्रम से लेकर लाजपत नगर-पार्ट 4 और धौला कुआं में देखा जाने लगा। और उसके बाद धीरे-धीरे जाम की चपेट में सारी रिंग रोड ही आ गई। आइआइटी, दिल्ली के ट्रांसपोटेशन विभाग के डॉ. महेश गौड़ मानते हैं किअब तो रिंग रोड का कोई मतलब ही नहीं रहा। इस पर लगने वाले जाम के कारण ही यहां कम से कम एक दर्जन से ज्यादा फ्लाईओवर बनाने पड़े।रिंग रोड की उपयोगिता खत्म होती जा रही है।इसके ऊपर आइटीओ, आइएसबीटी, आजादपुर, वजीरपुर, ब्रिटानिया चौक, पंजाबी बाग, मोती नगर, राजा गार्डन, एम्स, साऊथ एक्सटेंशन, धौला कुआं वगैरह पर फ्लाईओवर बनाने पड़े। कुछ जगहों पर अंडरपास भी बने। फिर भी कुछ जगहों पर जाम लगा रहता है पीक आवर्स पर।पहले शायद कभी किसी ने कल्पना भी नहीं होगी कि रिंग रोड पर भी फ्लाईओवर बनेंगे। एक दौर में रिंग रोड से सटी कालोनियों में रहने से आपको लाभ होता था। आप आराम से रिंग पर आकर मुद्रिका लेकर अपने गंतव्य स्थान तक पहुंच जाते थे। अगर आपके पास अपना वाहन होता था तो भी आपके लिए अपनी मंजिल पर पहुंचना आसान होता था। अब तो अगर आप रिंग रोड पर रहते हैं तो आपका ध्वनि प्रदूषण से जीना दूभर हो जाएगा।रोज इससे लाखों छोटे-बड़े वाहन अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते हैं। लेकिन ये मानना होगा कि रिंग रोड लंबे समय तक दिल्ली की लाइफलाइन रही। पर दिल्ली के लगातार फैलाव के कारण रिंग रोड की पहले वाली अहमियत नहीं रही। पढ़ें: ये है इंडिया के बेस्ट मानसून स्पॉटविवेक शुक्ला, लेखकदिल्ली के हतिहासकार