दुधवा नेशनल पार्क: जंगल का असली रोमांच
उत्तर प्रदेश का राष्ट्रीय उद्यान दुधवा अपने प्राकृतिक सौंदर्य और विविधता से भरे वन्यजीवन के लिए मशहूर है। पड़ोसी नेपाल से लगे इस तराई क्षेत्र में स्थित दुधवा नेशनल पार्क यूं तो जाना जाता है टाइगर रिजर्व के लिए, लेकिन यहां करीब 400 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। इसके अलावा, सांपों की कई प्रजातियां, विशालकाय अजगर, कछुए,मगरमच्छ आदि पाए जाते हैं। यहां पहुंचते ही आपको हाथी, गैंडे, बारहसिंघे आदि का दीदार हो जाएगा।
By molly.sethEdited By: Updated: Wed, 03 May 2017 03:46 PM (IST)
पार्क का इतिहास
लंबे अरसे तक दुधवा के ये जंगल स्थानीय रियासत के अधीन थे। यहां शाही शिकार के अनेक रोचक किस्से लोककथाओं का हिस्सा बन चुके हैं। राष्ट्रीय उद्यान बनने से पहले थारू जनजाति बहुल दुधवा क्षेत्र एक अभयारण्य था। इसकी स्थापना 1969 में हुई थी। उस समय इसका क्षेत्रफल सिर्फ 212 वर्ग किलोमीटर था, जो अब बढ़कर 498 वर्ग किमी. हो गया है। फरवरी 1977 में इसे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया। वर्ष 1973 में यहां बाघ परियोजना शुरू की गई थी। थारू जनजाति
दुधवा के इलाके में थारू जनजाति के लोग निवास करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस जनजाति की महिलाएं राजस्थान के राजवंश से ताल्लुक रखती हैं। इनके पुरुष सदस्य युद्ध में मारे गए और ऐसी स्थिति में अनेक थारू महिलाओं ने अपने सेवकों को पति के रूप में स्वीकार कर लिया। दुधवा के इर्द-गिर्द थारुओं के अनेक गांव हैं, जिनके बीच पहुंचकर सैलानी अपने वन पर्यटन की रोचकता को बढ़ा सकते हैं। यहां भ्रमण के लिए प्रशिक्षित हाथी, सफारी वाहन और कुशल गाइड की समुचित व्यवस्था है। कौन-सा जानवर किस स्थान पर होगा, इसका पता लगाने में इन्हें महारत हासिल है। Top 10 wildlife destinations : इस गर्मी बच्चे तंग करें बारी-बारी तो उन्हें घुमाएं जंगल सफारी
वन्यजीवों की प्रजातियां दुधवा में बाघ देखना दूसरे अनेक राष्ट्रीय उद्यानों की अपेक्षा अधिक सुगम है। इसकी वजह यह है कि यहां बाघों की अच्छी आबादी है। अभयारण्य में 400 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं। जंगल की सैर के समय कई अपरिचित पक्षियों से मुलाकात हो जाती है। बारहसिंघों के अलावा, यहां हिरणों की छह और प्रजातियां भी पाई जाती हैं। मसलन-चीतल, सांभर, काला हिरण, काकड और पाडा। जंगली हाथी, सूअर, भालू, तेंदुआ, लकड़बग्घा, लोमड़ी, खरगोश, लंगूर और साही भी यहां देखे जा सकते हैं। यहां वर्ष 1984 में गैंडा पुनर्वास परियोजना शुरू की गई। हालांकि अभी तक गैंडों की संख्या में अनुमान के अनुरूप वृद्धि तो नहीं हुई। यह उम्मीद अवश्य जगी है कि कुछ वर्षों में गैंडे पहले की तरह ही निर्भय विचरण कर सकेंगे। खतरों के हैं खिलाड़ी तो यह 'फुटपाथ' आपके लिए चैलेंज, एडवेंचर के लिए स्पेन में 5 जगहबारहसिंघा की सौगात सिर पर सींगों का मुकुट सजाये बारहसिंघा दुधवा की एक बेशकीमती सौगात है। हिरणों की यह विशेष प्रजाति 'स्वैंप डियर' भारत और दक्षिण नेपाल के अतिरिक्त दुनिया में और कहीं नहीं पाई जाती है। नाम के अनुरूप सामान्यत: यह माना जाता है कि इस प्रजाति के हिरणों के बारह सींग होंगे, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। बारहसिंघा के सिर पर दो सींग होते हैं और वे ऊपर जाकर अनेक शाखाओं में विभक्त हो जाते हैं। दुधवा के कीचड़ वाले दलदली इलाकों में बारहसिंघा के झुंड नजर आते हैं। गर्मी सताए तो यहां जाएं, देश के टॉप 10 झरने जो आपको ठंडा-ठंडा कूल-कूल अहसास कराएटाइगर का दीदार दुधवा में सबसे अधिक रोमांच और कौतूहल टाइगर हैवन पैदा करती है। पार्क के दक्षिणी छोर पर स्थित टाइगर हैवन बिली अर्जन सिंह नामक एक स्वतंत्र वन्य जीव संरक्षणवादी का खूबसूरत आवास है। वर्ष 1959 में सेना की नौकरी छोड़ने के बाद से 'बिली' विडाल परिवार के वन्य पशुओं विशेषकर तेंदुओं और बाघों की भलाई में जुटे रहे। उनकी पुस्तक 'टाइगर-टाइगर' बेहद लोकप्रिय हुई, जिसमें दुधवा के नरभक्षी बाघों का सजीव चित्रण है। बिली को चिड़ियाघरों में पैदा हुए या परित्यक्त वन्य प्राणियों को पाल-पोसकर बड़ा करने और उन्हें फिर से वन्यजीवन में प्रविष्ट कराने की कला में महारत हासिल रहा है। कब जाएं : यह आम लोगों के लिए 15 नवंबर से 15 जून तक खुला रहता है। कैसे जाएं : निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ है। यहां से आगे का सफर कार, बस या ट्रेन से तय किया जा सकता है। दुधवा दिल्ली, बरेली, पीलीभीत, मैलानी, सीतापुर, लखीमपुर खीरी और लखनऊ से रेलमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। कहां ठहरें : उद्यान में पर्यटकों के ठहरने की समुचित व्यवस्था है। वन विभाग का विश्रामगृह शांति और एकांत चाहने वालों के लए उपयुक्त जगह है।
प्रस्तुति: अवैद्यनाथ दुबे