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ये हैं 55 बेटियों के माता-पिता

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : सपने तो हर आंख में होते हैं, लेकिन चंद लोग ही उसे पूरा कर पाते हैं। कुछ

By Edited By: Updated: Wed, 07 Jan 2015 08:48 PM (IST)

जागरण संवाददाता, इलाहाबाद : सपने तो हर आंख में होते हैं, लेकिन चंद लोग ही उसे पूरा कर पाते हैं। कुछ करने का इरादा और उसे अमल में लाने का साहस करने वाला व्यक्ति ही इतिहास के पन्नों पर दर्ज होता है। डॉ. अरुण प्रकाश और उनकी पत्‍‌नी मृदुला प्रकाश ने कुछ ऐसा ही जज्बा दिखाया और आधा दर्जन गांवों की झोली खुशियों से भर दी। कुछ साल पहले तक जिन गांवों में लड़कियों की किलकारी को अनसुना किया जाता था, आज वहां उनके लिए सम्मान का भाव है। डॉक्टर दंपती ने बेटियों को बचाने की न सिर्फ मुहिम छेड़कर लोगों को जागरूक किया, बल्कि स्वयं दांदूपुर, घूरपुर, चंपतपुर, पालपुर सहित आधा दर्जन गांव की 55 लड़कियों को गोद लेकर उनकी परवरिश भी कर रहे हैं। डॉ. दंपती इन छात्राओं की शिक्षा-दीक्षा की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले रखी है।

डॉ. अरुण ने पत्‍‌नी के साथ मिलकर दांदूपुर में छोटे बच्चों के लिए अंग्रेजी माध्यम स्कूल की स्थापना की। इसके जरिए उन्होंने गांव की लड़कियों को शिक्षित करने के साथ मुफ्त कौशल विकास कार्यक्रम भी शुरू किया। जब नारियों के सम्मान से खिलवाड़ होता वह जान की परवाह किए बिना लड़ाई में कूद पड़ते। इसी कारण उन्हें 2003 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने सर्वश्रेष्ठ प्रधानाचार्य के सम्मान से नवाजा।

डॉ. अरुण ने आठ प्रदेशों के ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगाने को स्कूल खोले। बताते हैं कि जब उन्होंने आसाम के बगई गांव में स्कूल खोला तो उसी दौरान उनकी पत्‍‌नी की नजर पास में रहने वाली 16 वर्षीय सुनीता पर पड़ी। वह काफी गरीब परिवार से थी, लेकिन उसके अंदर सीखने की ललक थी। सुनीता को डॉ. अरुण और मृदुला ने पढ़ाने के साथ ही कम्प्यूटर सिखाना शुरू किया, धीरे-धीरे उसको कम्प्यूटर की इतनी अच्छी जानकारी हो गई कि आज गांव में उसका खुद का कम्प्यूटर कोचिंग सेंटर खुल गया है।

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कौशल विकास के जरिए शुरू हुआ प्रयाग उत्थान

डॉ. अरुण और मृदुला ने प्रयाग के दांदूपुर गांव में कौशल विकास केंद्र की शुरुआत की है। इसके जरिए वह आस-पास के आधा दर्जन गांवों की लड़कियों को कम्प्यूटर, रेडियो प्रोग्राम, फिल्मों की एडिटिंग, फोटोग्राफी, पेंटिंग, सिलाई-कढ़ाई आदि की मुफ्त शिक्षा दे रहे हैं। गांव की ही तनु मिश्र बताती हैं कि उनको फोटोग्राफी और कम्प्यूटर सीखने का शौक था, लेकिन संसाधनों के न रहने के कारण नहीं सीख पा रही थीं। अब कौशल विकास कार्यक्रम के जरिए अपने शौक को वह अपना कार्य क्षेत्र बनाने की कोशिश कर रही हैं।

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