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सावन के पहले दिन कण-कण हुआ शिवमय

बलिया : सावन महीने के पहले दिन बुधवार को नगर के बालेश्वर मंदिर सहित देहात क्षेत्रों के शिवालयों में

By Edited By: Updated: Wed, 20 Jul 2016 08:55 PM (IST)
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बलिया : सावन महीने के पहले दिन बुधवार को नगर के बालेश्वर मंदिर सहित देहात क्षेत्रों के शिवालयों में भी आस्था की भीड़ उमड़ी रही। मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। सभी शिव मंदिरों को आकर्षक रूप दिया गया था। भीड़-भाड़ व जाम के मद्देनजर ट्रैफिक पुलिस की विशेष व्यवस्था रही तो मंदिरों में भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम रखे गए थे। शिव मंदिरों समेत नगर के अन्य सभी मंदिरों में पूजा-अर्चना की विशेष तैयारियां की गई थी। बाबा भोलेनाथ पर जलाभिषेक के लिए सुबह से ही मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। श्रावण मास के शुरूआत के मद्देनजर रात तक शिव मंदिरों की सजावट को अंतिम रूप दिया गया। भोले बाबा के दर्शन की होड़ का आलम रहा कि कई श्रद्धालु भोर से ही मंदिरों में जुटने लगे। मंदिरों में दूध के साथ ही गंगाजल से

औघड़दानी का अभिषेक किया गया। श्रावण मास के पावन पर्व पर शिव भक्त बोलबम का जयकारा लगाते रहे।

प्रमुख मंदिरों पर उमड़ी रही भीड़

शहर स्थित बालेश्वर मंदिर, हरपुर मिड्ढी शिव मंदिर, देवकली के विमलेश्वर नाथ मंदिर, नगरी के नक्कटा महादेव, सहतवार पंचमंदिर, कुसौरा शिवमंदिर, असेगा शिव मंदिर, बांसडीहरोड बाबा बालखंडी नाथ मंदिर, छितौनी के छित्तेश्वर नाथ मंदिर, बाबा मुक्तिनाथ मंदिर, चितबड़ागांव स्थित चित्तेश्वरनाथ मंदिर, कारो धाम आदि मंदिरों पर शिव भक्तों का तांता लगा रहा। पहले दिन विभिन्न स्थानों पर मेले जैसे ²श्य रहा। शिवालयों में बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक के साथ ही लोगों ने भांग, धतूरा, विल्व पत्र आदि भी चढ़ाया।

सड़कों पर कांवरियों का लगा रहा रेलाश्रावण मास के शुरू होते ही देवघर जाने वाले कांवरियों का सड़कों पर रेला शुरू हो गया। सड़क पर भगवा वस्त्र धारण किए कांवरिए बालेश्वर नाथ मंदिर पर मत्था टेक देवघर के लिए रवाना हुए। इस दौरान सड़कों पर कांवरियों

का तांता लगा रहा। विभिन्न वाहनों पर सवार होकर कांवरियां बोलबम का नारा लगाते हुए देवघर को रवाना हुए।

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भगवान शिव ने कामदेव को जलाया तो बना कामेश्वर धाम

बलिया : जनपद के चितबड़ागांव के समीप कारो स्थित कामेश्वर धाम देश के प्राचीन मंदिरों में शुमार है। इसके बारे में मान्यता है कि यह शिव पुराण में वर्णित वही जगह है जहां भगवान शिव ने देवताओं के सेनापति कामदेव को जला कर भस्म कर दिया था। यहां पर आज भी वह हरा भरा आम का वृक्ष है जिसके पीछे छिप कर कामदेव ने समाधि में लीन भोले नाथ को जगाने के लिए कामदेव ने पुष्प बाण चलाए थे। मंदिर में पिछले 15 वर्षों से पुजारी के रूप में रहने वाले रमाशंकर दास ने कहा कि भगवान शिव द्वारा कामदेव को भस्म करने कि कथा शिव पुराण में इस प्रकार है कि भगवान शिव कि पत्नी सती अपने पिता द्वारा आयोजित यज्ञ में अपने पति भोलेनाथ का अपमान सहन नहीं कर सकीं और यज्ञ वेदी में कूद कर आत्मदाह कर लीं। यह बात जब शिवजी को पता चली तो वो तांडव कर पूरी सृष्टि में हाहाकार मचा दिए। इससे व्याकुल सारे देवता भगवान शंकर को समझाने पहुंचते है जिससे शांत होकर परम शांति के लिए बाबा भोले नाथ गंगा तमसा के इस पवित्र संगम पर आकर समाधि में लीन हो जाते हैं। इसी बीच महाबली राक्षस तारकासुर अपने तप से ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके ऐसा वरदान प्राप्त कर लेता है जिससे कि उसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो सकती थी। यह एक तरह से अमरता का वरदान था क्योंकि सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव समाधि मे लीन हो चुके थे। इस कारण तारकासुर का उत्पात दिनों दिन बढ़ता चला गया और वो स्वर्ग पर अधिकार करने कि चेष्टा करने लगा। यह बात जब देवताओं को पता चली तो वो सब ¨चतित होकर भगवान शिव को समाधि स जगाने का निश्चय किए। इसके लिए वो कामदेव को सेनापति बनाकर यह काम उन्हें सौंपा गया। कामदेव भोले नाथ को जगाने लिए खुद को आम के पेड़ के पीछे छिपा कर शिवजी पर पुष्प बाण चलाए जो सीधे उनके हृदय में लगा जिससे उनकी समाधि टूट गई। समाधि टूट जाने से भगवान शिव अति क्रोधित होकर कामदेव को अपने त्रिनेत्र से जला कर भस्म कर दिए। तबसे यह मंदिर कामेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।

कई संतों की तपोभूमि रहा कामेश्वर धाम

पुजारी रमाशंकर दास ने कहा कि पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में इस स्थान पर महर्षि विश्वामित्र के साथ भगवान श्रीराम व उनके अनुज लक्ष्मण जी आए थे। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में भी है। अघोर पंथ के प्रतिष्ठापक श्री कीनाराम बाबा की प्रथम दीक्षा भी यहीं पर र्हुइ थी। यहां पर दुर्वासा ऋषि ने भी तप किया था। किवदंतियों के अनुसार इस स्थान का नाम पूर्व में कामकारू कामशिला था। यही कामकारू पहले अपभ्रंश में काम शब्द खोकर कारुं फिर कारुन और अब कारों के नाम से जाना जाता है। यहां स्थिति कवलेश्वर नाथ शिवालय की स्थापना अयोध्या के राजा कमलेश्वर ने की थी। कहते हैं कि यहां आकर उनका कुष्ट का रोग ठीक हो गया था जिससे इस शिवालय के पास में ही उन्होंने विशाल तालाब बनवाया जिसे रानी पोखरा कहते हैं। श्री कामेश्वर नाथ शिवालय रानी पोखरा के पूर्वी तट पर विशाल आम के वृक्ष के नीचे स्थित है। इसमें स्थापित शिव¨लग खोदाई में मिला था जो कि ऊपर से थोड़ा सा खंडित है।

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