छोटे-बड़े आंदोलनों में सहभागी बने थे बाराबंकीवासी
By Edited By: Updated: Mon, 13 Aug 2012 11:38 PM (IST)
बाराबंकी : आजादी की लड़ाई में वर्ष 1922 से 1934 के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ चले खिलाफत आंदोलन, विदेशी कपड़ों की होली आदि आंदोलन में जिले ने बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की।
वरिष्ठ साहित्यकार अजय सिंह ने बताया कि देश की आजादी की लड़ाई को नई धार देते हुए जब गांधी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा की तो इस जिले में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और खिलाफत कमेटी की शाखाएं संगठित हुई। दोनों संगठनों के माध्यम से विदेशी शासन और विदेशी वस्तुओं व वस्त्रों के विरुद्ध वातावरण बनाने का भरपूर प्रयास किया गया। विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देने के कार्यक्रमों में महिलाओं और पुरुषों ने बढ़-चढ़कर सहभागिता की। ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को अवैध घोषित कर गिरफ्तारियां शुरू कर दीं। इस राष्ट्रीय आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने के कारण आंदोलन के अगुआ रफी अहमद किदवई को 18 जनवरी 1922 को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें एक वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गई। इसी समय जिले में खिलाफत आंदोलन भी जोरदार ढंग से चला। मुसलमान स्वयंसेवकों के जत्थे पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों के आदेशों का उल्लंघन करते रहे। जिले के कोने-कोने में बहुत सी सभाओं का आयोजन किया गया। ब्रिटिश शासन के अधिकारियों ने नोटिस जारी कर खिलाफत आंदोलन रोकने और अच्छे व्यवहार की गारंटी देने की मांग की। इसी दौरान जिले में सक्रिय किसान सभा ने किसानों की आर्थिक दशा में सुधार के लिए संघर्ष करते हुए असहयोग आंदोलन में भी पूरा सहयोग दिया। तीन फरवरी 1927 को साइमन कमीशन के बंबई आगमन पर राष्ट्रव्यापी हड़ताल में पूरा जिला बंद रहा। लोगों ने काले झंडों को लहराकर विरोध व्यक्त किया। दरियाबाद के निवासी यूपी लेजिस्लेटिव कौंसिल के सदस्य तथा तत्कालीन अंतरिम सरकार के शिक्षा मंत्री राय राजेश्वर बली ने अत्यंत साहस और दृढ़ता के साथ गवर्नर सर मुडीमैन की इच्छा के विरुद्ध कौंसिल में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए इसके विरोध में मतदान किया जिससे गवर्नर की हार हुई। केवल संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) ही ऐसा प्रदेश था, जिसने साइमन कमीशन के पक्ष का समर्थन नहीं किया था। लेजिस्लेटिव कौंसिल में अपनी इस जीत के बाद साइमन कमीशन के विरोध में जब समाजसेवी राय राजेश्वर बली ने शिक्षामंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया तो सारे देश में साइमन कमीशन के विरोध की आग भड़क उठी।
1930 में गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ किया। इस आंदोलन के अंतर्गत सार्वजनिक सभाओं का आयोजन, खादी वस्त्रों के निर्माण एवं प्रयोग, विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर धरना, किसानों द्वारा लगान बंदी तथा कांग्रेस के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार आदि कार्य किए गए। इस आंदोलन के सफल संचालन के लिए जिला कांग्रेस अध्यक्ष बाबू कृष्णानंद खरे तथा मंत्री हरप्रसाद मिश्र सत्यप्रेमी ने कांग्रेस संगठन को सुदृढ़ बनाने के लिए पूरे जिले भर का पैदल ही दौरा किया जिससे वे अस्वस्थ हो गए। लगान बंदी आंदोलन में किसानों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। लगान बंदी आंदोलन से किसान और जमींदार जो एक साथ आजादी की लड़ाई साथ-साथ लड़ रहे थे उनमें फूट पड़ गई। कुछ क्षेत्रों में तो संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो गई। इसी बीच ग्राम भयारा के जमींदारों ने जिला कांग्रेस के मंत्री सत्यप्रेमी तथा उनके साथियों को बुरी तरह पिटवा दिया। दंगे की आशंका से जिले में 144 धारा लागू कर दी गई। सभाएं करने पर रोक लगा दी गई। प्रांतीय कांग्रेस कमेटी के मंत्री रफी अहमद किदवई को लगान बंदी संबंधी एक बड़ी सभा को संबोधित करने पर 23 जनवरी 1932 को गिरफ्तार कर लिया गया।
छह जनवरी 1932 को कांग्रेस के अवैध घोषित हो जाने पर जिला कांग्रेस कार्यालय पर सरकारी ताला पड़ गया। जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बाबू कृष्णानंद खरे का निवास स्थान भी इसी इमारत में था। अत: पुलिस ने उनसे जबरदस्ती मकान खाली करा लिया। तो उन्हें नागेश्वरनाथ तालाब पर शरण लेनी पड़ी। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण जिले के विभिन्न भागों से बहुत से लोगों को गिरफ्तार किया गया जिनमें बाबू कृष्णानंद खरे, हरप्रसाद मिश्र सत्यप्रेमी, ठाकुर प्रसाद वर्मा, रफी अहमद किदवई आदि प्रमुख थे। सरकार की दमनात्मक नीति और पुलिस आतंक के बावजूद आंदोलन मई 1934 तक चलता रहा। इसी समय कांग्रेस ने अपना आंदोलन वापस ले लिया।मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर
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