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जुलूस में औरतों का शामिल होना नाजायज

By Edited By: Updated: Thu, 09 Jan 2014 01:05 AM (IST)
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वसीम अख्तर, बरेली

जुलूस में नाच व फसाद के साथ औरतों के शामिल होने को भी दारुल उलूम मजहर-ए-इस्लाम ने नाजायज करार दिया है। मुफ्ती मुहम्मद सईद अहमद बरकाती ने फतवा जारी करते हुए ईद मिलादुन्नबी के सिलसिले में घरों पर झंडे लगाने को सही ठहराया है।

ईदमिलादुन्नबी 14 जनवरी को मनाई जाएगी। इस दिन इस्लामी कैलेंडर के महीने रबिउल अव्वल की 12 तारीख होगी। यह दिन पैगंबर-ए-इस्लाम की विलादत का दिन है। आपके आने की खुशी मनाने में मुसलमान ईदमिलादुन्नबी पर जुलूस निकालकर और घरों को सजाकर जश्न मनाते हैं। झंडे भी लगाए जाते हैं। इसी को लेकर दारुल उलूम मजहरे इस्लाम से हाफिज जुबेर रजा खालिदी ने फतवा लिया। उनका सवाल था-हुजूर की आमद को किस तरह मनाना सही है? शरई हुक्म बताया जाए। इसका जवाब दारुल उलूम के प्रधानाचार्य मुफ्ती मुहम्मद सगीर अहमद बरकाती ने दिया है। उन्होंने कहा है कि सरकारे दो आलम का मिलाद और जुलूस शरीयत से सही साबित होता है। खुशी के इजहार को घरों पर झंडे लगाना जायज है। अलबत्ता गैर शरई चीजों का इस्तेमाल नाच, फसाद या झगड़ा पैदा करना नाजायज है। शरीयत में इसे हराम करार दिया गया है। औरतों को भी जुलूस में हिस्सा लेने से मना फरमाया गया है। उन्हें इससे बचना भी चाहिए। ईदमिलादुन्नबी को अदब व एहतराम और अमन-चैन कायम रखते हुए मनाना चाहिए। इसका सही तरीका भी यही है।

नहीं लगाएं पाकिस्तान जैसे झंडे

दरगाह आला हजरत के मदरसा मंजर-ए-इस्लाम के मुफ्ती मुहम्मद सलीम अहमद नूरी ने आह्वान किया कि ईदमिलादुन्नबी पर झंडे लगाएं लेकिन इस बात का ख्याल रखा जाए कि वे पाकिस्तान जैसे नहीं दिखाई दें। ईदमिलादुन्नबी पर खुशी का इजहार करते वक्त दूसरे संप्रदाय की भावनाओं का ख्याल रखें। जुलूस में हिस्सा लें और नमाज की पाबंदी भी करें। जुलूस में डीजे का इस्तेमाल गलत है। इससे बचा जाए।

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