न्यायपालिका की शुचिता के लिए कोलेजियम उचित
बस्ती : उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग की व्यवस्था को खारिज किए जाने को अधिवक्
By Edited By: Updated: Fri, 16 Oct 2015 11:03 PM (IST)
बस्ती : उच्चतम न्यायालय द्वारा केंद्रीय न्यायिक नियुक्त आयोग की व्यवस्था को खारिज किए जाने को अधिवक्ताओं उचित ठहराया है। अधिवक्ताओं ने कहा कि कोलेजियम व्यवस्था के तहत न्यायाधीशों का चयन किया जाना न्याय पालिका की स्वतंत्रता व शुचिता के लिए उचित है। उनका कहना है कि इस व्यवस्था में भी थोड़ी पारदर्शिता लाई जाए।
शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित बहुप्रतीक्षित याचिका पर अपना फैसला सुना दिया। पांच न्यायाधीशों की गठित कमेटी के चार का फैसला तो एक जैसा था, मगर एक ने उनके विपरीत फैसला दिया। याचिका कर्ता द्वारा कहा गया कि एनजेएसी के जरिए न्यायाधीशों की नियुक्ति में भ्रष्टाचार पनप सकता है। राजनेता अपने लोगों को न्यायाधीशों की कुर्सी पर बैठना चाहते हैं। इन मुद्दों को लेकर जागरण ने अधिवक्ताओं से बातचीत की पेश हैं अंश- वरिष्ठ अधिवक्ता अयोध्या प्रसाद शुक्ल ने कहा कि भारत सरकार ने जो न्यायिक आयोग का गठन किया था वह संवैधानिक नहीं था। सर्वोच्च अदालत ने इस व्यवस्था को खारिज कर सराहनीय काम किया है। केंद्र सरकार ने न्यायिक नियुक्ति आयोग पर अपना दबदबा बनाने का प्रयास किया था। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते हुए न्यायाधीशों के तबादले का निर्णय केंद्र ने लिया था जिसे नौ जजों की बेंच ने सही ठहराया था, लेकिन नियुक्ति में हस्तक्षेप अनुचित था।
फौजदारी अधिवक्ता फूलचंद्र पांडेय ने कहा कि संविधान में न्याय पालिका को काम करने की स्वतंत्रता हासिल है। इस आयोग के बने रहने से न्याय पालिका में हस्तक्षेप की पूरी संभावना थी। अधिवक्ता शशि प्रकाश शुक्ल ने कहा कि आयोग में केंद्रीय कानून मंत्री विपक्ष के नेता व दो मनोनीत सदस्य के अलावा दो न्यायाधीशों की व्यवस्था रखी गई थी, इससे संतुलन सरकार के पक्ष में था। जो पूरी तरह गलत था।
अधिवक्ता उपेंद्र नाथ दूबे कहते हैं कि कोलेजियम में वरिष्ठतम न्यायाधीशों को रखा जाता है। वह तय करते हैं कि कौन होगा उच्च न्यायालय व उच्चतम न्यायालय में जज। कहा कि कोलेजियम व्यवस्था में न्यायाधीश अपने चहेतों को लाभ दे सकते हैं। ऐसे में इसमें पारदर्शिता जरूरी है।
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